भय शब्द को स्पष्ट करते हुए इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए ।

भय शब्द को स्पष्ट करते हुए इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए ।

                               अथवा
भय की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
                               अथवा
डर किसे कहते हैं?
                                 अथवा
भय की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उनके प्रकारों का उल्लेख कीजिये ।
उत्तर— भय या डर का अर्थ एवं परिभाषाएँ–भय शब्द सापेक्ष है। प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग ढंग से भय महसूस करता है अप्रिय होने की भावना से खतरे की भावना से ( बुराई का होना या बाह्य पीड़ा का होना तथा काल्पनिक डर की भावना से या वास्तविक डर की भावना से) ये व्यक्ति तक ही सीमित नहीं है अपितु सभी प्राणियों में होता है। इस भय से व्यक्ति या अन्य प्राणी इस पृथ्वी पर अपने अस्तित्व की रक्षा करते हैं।
भय का सम्बन्ध स्वयं की पहचान से होता है जो व्यक्ति स्वयं में अधिक विश्वास रखता है वह भय को अपनी सोचने की शक्ति से आसानी से नियन्त्रित कर लेता है, भय जीवन में घटित होने वाली कई घटनाओं से जन्म लेता है। जहाँ भय नकारात्मक सोच से आता है वहां स्थिति अधिक अनियन्त्रित होती है; जैसे—यदि मैं परीक्षा में प्रथम श्रेणी नहीं प्राप्त कर पाया तो मेरे परिवार वाले मुझसे खुश नहीं होंगे उनके सपने अधूरे रह जाएँगे।
महात्मा गाँधी के अनुसार, “हम घृणा को शत्रु मानते हैं लेकिन ये वास्तव में घृणा नहीं अपितु भय हमारा शत्रु है । “
सिगमण्ड फ्रायड के अनुसार भय और इच्छाएँ अवचेतन (Unconscious) मन में रहते हैं जो कि बाह्य प्रेरकों द्वारा प्रदर्शित होते हैं या व्यवहार में दिखायी देते हैं ।
“भय मूल प्रवृत्ति के रूप में व्यक्ति एवं अन्य प्राणियों के अवचेतन मन में रहता है तथा समय-समय पर प्रतिक्रियाओं से स्वतः नियंत्रित होता रहता है क्योंकि जब भय के विचार मस्तिष्क तक पहुँचते हैं तब वह उन प्रतिमाओं का निर्माण करते हैं जो आत्मरक्षा के लिए आवश्यक होती है । “
भय के प्रकार— भय कई प्रकार के होते हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित हैं—
(1) कुछ खो देने का भय संसार में प्रत्येक व्यक्ति प्रायः किसी न किसी रूप में भय से ग्रस्त है। कुछ व्यक्तियों को अपना कुछ खो देने का भय रहता है। जैसे-छोटे बच्चों को हमेशा अपने माता-पिता से बिछड़ने का भय रहता है। छात्रों को अपने सहपाठी छात्र से दूर होने का भय रहता है। व्यापारी को अपने व्यापार में घाटे का भय रहता है। इसे प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को कुछ न कुछ खोने का भय रहता है।
(2) अनिश्चितता का भय –  वास्तव में कुछ मनुष्य कुत्सित मानसिक दुर्बलता से ग्रसित होते हैं। ऐसे व्यक्ति प्रत्येक कार्य अनिश्चितता या संदिग्ध चित से करते हैं। मनोवैज्ञानिकों का निष्कर्ष है कि अनिश्चितता जन्मजात दुर्गुण नहीं हैं। यह एक प्रकार की आदत होती है अनिश्चितता निराशावाद के साथ-साथ रहती है। ऐसे व्यक्ति अपने किसी भी कार्य को निश्चित समय पर सम्पन्न नहीं कर पाते हैं हमेशा अनिश्चितता के भय से ग्रसित रहते हैं।
(3) असफल होने का भय – मनुष्य दो-चार बार किसी कार्य में असफल हो जाता है तो उसके अन्दर निराशा उत्पन्न हो जाती है तथा उसे चारों तरफ अन्धकार ही अन्धकार नजर आता है। असफलता का भय एक प्रकार के भयंकर राक्षस के समान है। असफलता के भय से ग्रसित व्यक्ति हमेशा बुराई की तरफ देखता है तथा असफ़लता के वचन ही उच्चारित किया करता है। ऐसा व्यक्ति हमेशा अपने लिए अहित की संकीर्णता की, असिद्धि की ही बात सोचता है।
(4) अस्तित्व बनाए रखने का भय — वर्तमान समय में मनुष्य अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए हर सम्भव प्रयास करता है। अस्तित्व को बनाए रखने के लिए मनुष्य के जीवन में चैन, स्थिरता तथा शान्ति नहीं है फिर भी उन्हें अपने अस्तित्व के हनेन का भय बना रहता है।
(5) काल्पनिक भय – अनहोनी, अनिष्ट बुरी बातों की थोथी कल्पनाएँ दूसरों को बुरी हालत देखकर स्वयं अपने लिए भी वैसी ही स्थितियों को स्मृति पटल पर बार-बार लाना, अपनी व्याधियों को कल्पित जगत में उद्दीप्त करके देखना, अनुचित बातों से कल्पना लोक में सामंजस्य स्थापित करना काल्पनिक भय से मुख्य कारण हैं। रात-दिन जो व्यक्ति दु:ख, शोक, रोग की कल्पनाओं से आच्छादित रहते हैं वे काल्पनिक भय का चिन्तन किया करते हैं।
(6) विलुप्त होने का भय – कुछ व्यक्तियों को विलुप्त होने का भय रहता है। भय शंका का किला है। भय के कारण मस्तिष्क की कार्यवाहिनी शक्ति विकृत या संकुचित हो जाती है जिससे मनुष्य में अपने लिए कुछ मनोग्रन्थियाँ बन जाती हैं। अतः कुछ मनुष्यों के अन्दर एक प्रकार का विलुप्त होने का भय कभी-कभी उत्पन्न होता है।
(7) बहिष्कार का भय – इसे एक प्रकार का सामाजिक भय भी कहा जा सकता है। इस प्रकार के भय में व्यक्ति को समाज के लोगों से डर लगा रहता है कि उसके द्वारा किसी प्रकार की गलती हो जाने पर समाज द्वारा उसे बहिष्कृत न कर दिया जाए। छात्रों को अनुशासनहीनता करने पर कक्षा या स्कूल से बहिष्कृत होने का भय रहता है।
(8) वास्तविक भय — मनुष्य जब किसी वास्तविक वस्तु से भयभीत होता है तो किंचित समय के लिए उसके हाथ-पैर फूल जाते हैं। कुछ समय के लिए सम्पूर्ण शरीर आन्दोलित हो जाता है। वास्तविक भय का प्रभाव विशेषतः हृदय पर पड़ता है जिसके फलस्वरूप वह निज कार्य यथोचित प्रकार से नहीं कर पाता है। उदाहरण के लिए यदि मनुष्य के सामने अचानक शेर आ जाए तो वह वास्तविक रूप से भयभीत हो जाता हैं।
(9) घटना से जनित भय – जब व्यक्ति के साथ कोई विशेष घटना घटित हो जाती है तो उसके हृदय एवं मन में एक प्रकार का भय उत्पन्न हो जाता है कि ऐसी दुर्घटना दोबारा न घटित हो जाए। हर समय व्यक्ति के मन में घटना से उत्पन्न होने वाला भय बना रहता हैं।
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