भारतीय लोकतंत्र में उभरती प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
भारतीय लोकतंत्र में उभरती प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
अथवा
भारतीय लोकतंत्र में उभरती सकारात्मक प्रवृत्तियों पर फोकस करते हुए इनका विश्लेषण करें।
उत्तर – भारतीय लोकतंत्र की स्थापना 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के साथ ही हो गयी। स्वतंत्रता के अनेक दशक के बाद अब भारतीय लोकतंत्र में परिपक्वता के गुण देखे जा सकते हैं। इसके साथ ही कई सकारात्मक प्रवृत्तियां उभरी लेकिन साथ ही कई नकारात्मक प्रवृत्तियां भी हावी हुई हैं जो हमारे लोकतंत्र के भविष्य के लिए खतरनाक हैं।
भारतीय लोकतंत्र क्रमिक रूप से लोगों के प्रति जबावदेह एवं कल्याणकारी राज्य की संकल्पना के अनुरूप होता चला गया। देश के समाजवादी स्वरूप को स्वीकार करते हुए 42वें संविधान संशोधन के तहत ‘समाजवादी शब्द’ जोड़ा गया। जबकि 44वें संविधान संशोधन के तहत संपत्ति के मूल अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से निकालकर कानूनी अधिकारों की श्रेणी में रखा गया। भारतीय लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति गठबंधन सरकार की उभरी है। 1977 में केन्द्र में सर्वप्रथम गठबंधन सरकार का गठन हुआ। इसके बाद विभिन्न राज्यों एवं केन्द्र में लगातार गठबंधन सरकार की बहुलता रही है। गठबंधन की सरकार का मूल कारण छोटे-छोटे एवं क्षेत्रीय दलों का तीव्रता से गठन है। क्षेत्रीय दलों का गठन लोगों की राजनीति तथा लोकतंत्र के प्रति जागरूकता को प्रदर्शित करता है जिसके कई सकारात्मक चिन्ह दिखे हैं। गठबंधन की राजनीति यद्यपि ज्यादा स्थायी नहीं रही है लेकिन विगत कुछ वर्षों से भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता के अनुरूप ठीक काम कर रही है। केन्द्र में एनडीए ने अपना कार्यकाल पूरा किया था। उसके बाद यूपीए-1 के भी सफलतापूर्वक कार्यकाल पूरा करने के बाद यूपीए-2 का गठन हुआ। कुछ वर्ष तक बिहार में भी एनडीए की सरकार ने सफलतापूर्वक काम किया था।
भारत की जनता अब ज्यादा जागरूक हो योजनाओं पर ज्यादा ध्यान दे रही है। 2005 ई. में केन्द्र की यूपीए सरकार ने MNREGA तथा RTI कानून बनाए जो लोकतंत्र की मजबूती के लिए मील का पत्थर साबित हो रहे हैं। जनता की जागरूकता का ही परिणाम है कि आज भ्रष्टाचार, काले धन पर देशभर में व्यापक विचार-विमर्श चल रहा है। सरकार भी इस पर गंभीर दिख रही है। भ्रष्टाचार रोकने के लिए सरकार ‘लोकपाल’ विधेयक लाने की सोच रही है। जनता की जागरूकता के कारण ही जाति एवं धर्म की राजनीति करने वाले दलों का अस्तित्व संकट में आ गया है। इसका ज्वलंत उदाहरण बिहार है। बिहार में विकास के आधार पर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को पुनः सत्ता सौंपी गई।
भारतीय लोकतंत्र में विगत कुछ वर्षों से युवाओं का रूझान बढ़ा है। राज्य तथा केन्द्र में कई युवा विधायक, सांसद तथा मंत्री है। चुनाव लोकतंत्र की आत्मा है। चुनाव आयोग की सक्रियता के कारण चुनाव अब आपराधिक गतिविधियों से दूर निष्पक्ष एवं स्वच्छ होने लगे हैं। ईवीएम (EVM) मशीनों के प्रयोग से चुनाव और भी स्वच्छ होने लगे हैं।
अतः भारतीय लोकतंत्र में अनेक सकारात्मक प्रवृत्तियां उभरी हैं जो इसकी परिपक्वता को दर्शाती हैं। लेकिन साथ ही हमारे लोकतंत्र में अनेक नकारात्मक चीजों का भी प्रभाव बढ़ा है। जैसे- अब राजनीति का स्तर पहले की अपेक्षा काफी गिर गया है। आज राजनेता का उद्देश्य मात्र चुनाव जीतना ही रह गया है। इसके कारण ऐसी चीजों को उभारा जाता है जो राष्ट्रीय एकता-अखंडता एवं सद्भाव के लिए घातक हैं। कुछ पार्टियां जाति आधारित राजनीति के कारण चुनाव जीतने की रणनीति बना रही हैं, तो कुछ पार्टियां अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की नीति अपनाकर अपना वोट बैंक बढ़ा रही हैं। भारतीय लोकतंत्र में भ्रष्टाचार एक गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है। जनता इसके लिए अब सड़कों पर उतरने लगी है।
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