भारतीय संस्कृति में लैंगिक भूमिका सम्बन्धी कौनकौनसी चुनौतियाँ हैं ? स्पष्ट कीजिए तथा इसके समाधान के उपाय बताइए।
भारतीय संस्कृति में लैंगिक भूमिका सम्बन्धी कौनकौनसी चुनौतियाँ हैं ? स्पष्ट कीजिए तथा इसके समाधान के उपाय बताइए।
उत्तर – भारतीय संस्कृति में लैंगिक भूमिका सम्बन्धी चुनौतियाँ – भारतीय संस्कृति में लैंगिक भूमिका सम्बन्धी निम्न चुनौतियाँ हैं जिसके समाधान के उपाय भी निम्न हैं—
(I) परिवार में लैंगिक भूमिका सम्बन्धी चुनौतियाँ – भारतीय समाज में पितृ सत्तात्मक परिवारों का स्वरूप व्यापकता से देखा जाता है। इसलिये परिवार में लैंगिक भूमिकाओं में अनेक प्रकार की विसंगतियाँ पायी जाती हैं जो कि चुनौती के रूप में स्वीकार की जाती हैं। लैंगिक भूमिका सम्बन्धी इन पारिवारिक चुनौतियों को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है—
( 1 ) शिक्षा के क्षेत्र में चुनौतियाँ – शिक्षा के क्षेत्र में परिवार में जेण्डर के अन्तर्गत अनेक चुनौतियाँ देखी जाती हैं जिनका समाधान करना आवश्यक माना जाता है, जैसे- पिछड़े परिवारों में बालकों को विद्यालय भेजा जाता है तथा बालिकाओं को विद्यालय नहीं भेजा जाता क्योंकि बालिकाओं को पराया धन मानकर उनकी शादी करके बाहर भेजा जाता है। अनेक अभिभावक बालकों को उच्च स्तरीय विद्यालयों में पढ़ाते हैं जबकि बालिकाओं को निम्न स्तरीय विद्यालयों में पढ़ाते हैं। इस प्रकार की चुनौतियाँ शिक्षा के क्षेत्र में देखी जाती हैं जो कि लैंगिक असमानता को प्रदर्शित करती हैं।
( 2 ) कार्य क्षेत्र में चुनौतियाँ–परिवार के कार्य क्षेत्र में भी व्यापक अन्तर पाया जाता है। एक बालक अपनी बहन की सहायता करने के लिये उसके साथ बर्तन साफ करने लगता है तो उसके पिता कहते हैं कि क्या लड़कियों के काम करते हो। इस प्रकार कार्य के क्षेत्रों को भी परिवार में विभाजित कर दिया जाता है जो कि अनुचित है। प्रत्येक व्यक्ति को उसकी रुचि एवं योग्यता के अनुसार परिवार में कार्य नहीं दिया जाता जो कि पारिवारिक विकास एवं परिवार के सदस्यों के विकास के लिये चुनौती है।
( 3 ) अभिभावक व्यवहार सम्बन्धी चुनौतियाँ – परिवार में अभिभावकों के व्यवहार से भी अनेक प्रकार की चुनौतियाँ उत्पन्न होती है; जैसे— एक परिवार में बालक को इसलिये महत्त्व दिया जाता है क्योंकि वह पुत्र है तथा वंश परम्परा को आगे बढ़ायेगा । इसलिये जब वह अपनी बहन से किसी बात पर विवाद करता है तो बहन की त्रुटि न होने पर भी उसको ही डाँट पड़ती है। इस प्रकार की स्थिति परिवारों में व्यापक रूप से देखी जाती है जो कि लिंग समानता के लिये प्रमुख चुनौती है।.
समाधान के उपाय – परिवार में विविध प्रकार की परिस्थितियों में लैंगिक भूमिका के त्रुटिपूर्ण होने से जो चुनौतियाँ उत्पन्न होती है वह परिवार एवं समाज दोनों के लिये घातक होती है। इसलिये इन चुनौतियाँ का समाधान निम्नलिखित उपायों के माध्यम से करना चाहिये जिससे लैंगिक असमानता समाप्त हो सके
(1) परिवार में अभिभावकों को बालक एवं बालिकाओं को समान रूप से शिक्षित करने का प्रयास करना चाहिये जिससे कि सम्पूर्ण परिवार में शैक्षिक वातावरण का सृजन हो सके एवं विकसित समाज का निर्माण हो सके—
(2) परिवार में इस प्रकार का वातावरण निर्मित किया जाये कि किसी भी कार्य को बालक या बालिका में विभाजित न किया जाय। यदि आवश्यकता है तो बालक को भी झाडू लगानी चाहिये तथा बर्तन साफ करने चाहिये। बालिकाओं को बाहर खेलने का अवसर दिया जाना चाहिये ।
(3) अभिभावकों को अपने बालक एवं बालिकाओं के साथ व्यवहार या प्यार करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि किसी के मन में भी हीन भावना उत्पन्न न हो अर्थात् प्रत्येक क्षेत्र में बालक एवं बालिका के साथ आत्मीय एवं प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिये ।
(II) जाति में लैंगिक भूमिका सम्बन्धी चुनौतियाँ—कुछ जातियों में महिलाओं को शिक्षित बनाया जाता है तो कुछ जातियों में महिलाओं को चहारदीवारी में रखा जाता है। इस प्रकार लैंगिक भूमिका में भी पृथकता देखी जाती है जिससे अनेक प्रकार की चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है—
( 1 ) शैक्षिक क्षेत्र में चुनौतियाँ – भारतीय समाज में जातिगत आधार पर शैक्षिक विभेद देखा जाता है। अनुसूचित जाति एवं जनजाति में पुरुष या बालक वर्ग को शिक्षा से जोड़ने के लिये अभिभावक तत्पर दिखायी देते हैं परन्तु बालिकाओं को विद्यालय भेजने में उनकी कोई रुचि नहीं होती। इससे लिंग असमानता की स्थिति उत्पन्न होती है। आँकड़े यह बताते हैं कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति में बालिकाओं की शिक्षा का स्तर बालकों की तुलना में निम्न है जो कि प्रमुख चुनौती है। इस प्रकार अनेक चुनौतियाँ शैक्षिक क्षेत्र में देखी जाती है !
( 2 ) कार्य क्षेत्र में चुनौतियाँ – भारतीय समाज में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़े वर्ग में लैंगिक विभेद सम्बन्धी चुनौतियाँ व्यापक रूप से देखी जाती है । इन जातियों में पुरुष वर्ग स्वयं कार्य नहीं करना चाहता वरन् स्त्रियों को घर के कार्य के साथ-साथ बाहरी कार्य करने के लिये विवश करता है। इससे स्त्री वर्ग पूर्णतः असमानता एवं शोचनीय स्थिति में होता है। यह समाज एवं जाति वर्ग के लिये प्रमुख चुनौती होती है।
( 3 ) अभिभावक व्यवहार सम्बन्धी चुनौतियाँ—–अनेक जातियों में अभिभावक अपने प्रेम व्यवहार का सर्वोत्तम प्रदर्शन बालकों पर करते हैं क्योंकि वे बालकों को बलिष्ठ एवं अपना सहारा मानते हैं जिससे बालिकाओं के साथ विभेद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। पिछड़े वर्ग की जातियों में इस प्रकार की स्थिति व्यापक रूप से देखी जाती है। इसी आधार पर इन जातियों में लिंग असमानता की स्थिति पायी जाती है ।
समाधान के उपाय – जातिगत आधार पर उत्पन्न होने वाली विविध चुनौतियों का समाधान करने पर ही जातियों में लिंग असमानता का सुधार करना सम्भव हो सकता है । इसके लिये निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं जिससे इन जातियों का सर्वांगीण विकास सम्भव हो सकता है—
(1) अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़ी जातियों में शिक्षा का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिये । उनको समाज एवं विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास करना चाहिये जिससे वे सभी शिक्षा के महत्त्व को समझ सकें तथा बालक-बालिकाओं को समान रूप से शिक्षित कर सकें ।
(2) पिछड़ी जातियों में पुरुष वर्ग को आत्मीयता एवं सहयोग से स्त्री वर्ग के साथ घर के काम एवं बाहर के काम में सहायता करनी चाहिये जिससे सभी परिवार एवं समाज के विकास में योगदान दे सकें।
(3) पिछड़ी जातियों में उच्च जातियों से शिक्षा ग्रहण करते हुए स्त्रियों के अधिकारों में वृद्धि करनी चाहिये, उनके सम्मान की रक्षा के लिये उनको अधिक अधिकार वास्तविक रूप से मिलने चाहिये ।
(III) धर्म में लैंगिक भूमिका सम्बन्धी चुनौतियाँ–अनेक धर्मों का अध्ययन किया जाय तो यह सत्य स्पष्ट होता है कि समाज में पुरुष के स्थान को सर्वोपरि बताया गया तथा स्त्री के अधिकार को निम्नतम बताया गया है जो कि पूर्णतः अनुचित है। महिलाओं को अनेक धार्मिक अनुष्ठानों से भी वंचित कर दिया गया है। अतः धर्म सम्बन्धी इस प्रकार की लैंगिक चुनौतियों का वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है-
( 1 ) स्वतन्त्रता सम्बन्धी चुनौतियाँ— अनेक धर्मों में स्त्रियों की स्वतन्त्रता को प्रतिबन्धित कर दिया गया है । इसके लिये अनेक प्रकार के निराधार तर्क भी प्रस्तुत किये गये हैं। ये तर्क निराधार होते हुए भी समाज में आज भी विद्यमान हैं। आज भी समाज में धर्म के नाम पर स्त्रियों की स्वतन्त्रता प्रतिबन्धित है । यदि कोई स्त्री स्वतन्त्रता पाना चाहती है तो उसे धर्म विरोधी बताया जाता है। इस प्रकार की चुनौती भारतीय समाज में व्यापक रूप से देखी जाती है ।
( 2 ) समानता सम्बन्धी चुनौतियाँ— धर्म के आधार पर स्त्री एवं पुरुषों की समानता को भी बाधित कर दिया जाता है। भारतीय समाज में पुरुष को पत्नी का सम्मान करने के लिये कोई विशेष नियम निर्धारित नहीं किये गये हैं जबकि पत्नी के लिये पति की सेवा एवं सम्मान के लिये नियमों की श्रृंखला तैयार कर दी गयी है। इस प्रकार की असमानता प्रत्येक धर्म में व्यापक रूप से देखने को मिलती है ।
(3) कर्त्तव्य सम्बन्धी चुनौतियाँ–धर्म के आधार पर स्त्री एवं पुरुष कर्त्तव्यों में विविध प्रकार के अन्तर स्थापित किये गये हैं। स्त्रियों के लिये पति सेवा तथा सास एवं श्वसुर सेवा का कर्त्तव्य निर्धारित किया है जबकि स्त्री के लिये पति सेवा करने का प्रयास करता है तो उसे धर्म विरुद्ध माना जाता है। पति यदि पत्नी के पैर दबाता है तो अधर्म है, पत्नी पति के पैर दबाती है तो धर्म है । इस प्रकार की धार्मिक मर्यादाओं एवं कर्त्तव्यों का प्रचलन समाज में एक प्रकार की चुनौती है।
समाधान के उपाय – धर्म के क्षेत्र में लिंग असमानता एवं लैंगिक भूमिका सम्बन्धी चुनौतियों का समाधान निम्नलिखित उपायों के माध्यम से किया जा सकता है–
(1) धर्म में जिस प्रकार पुरुषों को स्वतन्त्रता प्रदान की गयी है ठीक उसी प्रकार स्त्रियों को भी स्वतन्त्रता प्रदान करनी चाहिये। उद्दण्डता किसी भी वर्ग द्वारा की जाय उसको प्रतिबन्धित करना चाहिये एवं धर्म में दोनों ही वर्गों को स्वतन्त्रता से क्रियाओं को सम्पन्न करने की अनुमति मिलनी चाहिये ।
(2) स्त्री एवं पुरुष में असमानता उत्पन्न करने वाले नियमों को धर्माचार्यों द्वारा संशोधित करना चाहिये तथा समानता उत्पन्न करने वाली व्यवस्थाओं को जन्म देना चाहिये; जैसेवर्तमान समय में स्त्री एवं पुरुष दोनों ही भागवत कथा का वाचन करते हैं। यह एक अच्छी परम्परा है। –
(3) धर्म के आधार पर कर्त्तव्यों में भी समानता का व्यवहार होना चाहिये । आपत्ति काल में पति-पत्नी या स्त्री-पुरुष को समान रूप से एक-दूसरे की सेवा करनी चाहिये तथा एक-दूसरे के दायित्व निर्वहन में सहयोग करने को धर्म के रूप में स्वीकार करना चाहिये ।
(IV) लोकप्रिय संस्कृति ( फिल्म, विज्ञापन ‘संगीत आदि) में लैंगिक भूमिका सम्बन्धी चुनौतियाँ— लोकप्रिय संस्कृति में स्त्रियों की भूमिका को नकारात्मक रूप में प्रदर्शित किया जाता है जो कि समाज में पुरुष वर्ग की मानसिकता पर प्रभाव डालता है। वर्तमान समय में फिल्मों में प्राय: यह दिखाया जाता है कि अभिनेत्री खलनायक के भय से भागती है तथा बचाओ-बचाओ चिल्लाती है। इस प्रकार के दृश्य से स्त्री वर्ग यह समझता है कि वह कमजोर है तथा पुरुष वर्ग यह समझता है कि वह शक्तिशाली है जिससे लिंग असमानता की स्थिति उत्पन्न होती है । इस प्रकार की स्थितियाँ नृत्य, संगीत, नाटक एवं विज्ञापन आदि में देखी जाती है। लोकप्रिय संस्कृति में स्त्रियों का निरूपण या उनकी भूमिका पुरुष की तुलना में निम्न दिखायी जाती है। इससे समाज में अनेक प्रकार की चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं जिनका वर्णन अग्रलिखित रूप में किया जा सकता है—
( 1 ) फिल्मों में भूमिका सम्बन्धी चुनौतियाँ – भारतीय फिल्मों पर विचार किया जाय तो अनेक दृश्यों से यह प्रदर्शित होता है कि नारी को सदैव असहाय एवं शोषण का शिकार बनाया जाता है। इसमें पुरुष की भूमिका को सदैव शक्तिशाली रूप में प्रदर्शित किया है। इससे नारी वर्ग यह अनुभव करता है कि वह निम्न स्थिति में है तथा पुरुष वर्ग अपने आपको शक्तिशाली रूप में समझता है । इस स्थिति में पुरुष वर्ग द्वारा अन्य उपायों का सहारा लेकर नारी के शोषण तथा उसको अपने अधीन रखने की योजनाएँ तैयार की जाती है । इस प्रकार फिल्म जगत् के लिये यह चुनौती है कि वह इस प्रकार के प्रदर्शन का स्वरूप किस प्रकार परिवर्तित करे। यह चुनौती सम्पूर्ण समाज के लिये भी है कि स्त्री की हीनता का प्रदर्शन आज भी फिल्मों में व्यापक रूप से किया जा रहा है तथा इस पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है ।
( 2 ) विज्ञापन प्रदर्शन सम्बन्धी चुनौतियाँ – वर्तमान समय में विज्ञापनों का प्रचलन व्यापक रूप से देखा जाता है। विज्ञापनों में नारी की भूमिका को संकीर्ण रूप में प्रदर्शित किया जाता है; जैसे—सिगरेट के विज्ञापनं में स्त्री को साथ में दिखाया जाता है जिससे उसका कोई सम्बन्ध नहीं है। इसी प्रकार उसके अंग प्रदर्शन को भी विज्ञापनों में बढ़ावा मिल रहा है। जनता उन विज्ञापनों को ध्यान से देखती है जिनमें अंग प्रदर्शन अधिक होता है। इस प्रकार स्त्री के प्रति पुरुष वर्ग की नकारात्मक सोच बढ़ती जा रही है जो कि वर्तमान समय की प्रमुख चुनौती मानी जा रही
( 3 ) संगीत में भूमिका सम्बन्धी चुनौतियाँ-संगीत का प्रचलन लोकप्रिय संस्कृति में प्राय: देखा जाता है। संगीत का सम्बन्ध भी स्त्री एवं पुरुषों से ही होता है। विविध प्रकार के लोक संगीत में पुरुषों की वीरता को प्रदर्शित किया जाता है। स्त्रियों की वीरता से सम्बन्धित संगीत एवं गीत बहुत कम देखे जाते हैं। कविता सम्बन्धी काव्यों में भी स्त्री की भूमिका नगण्य होती है। पुरुष की भूमिका शक्तिशाली रूप में होती है। रामचरित मानस महाकाव्य में सीताजी की तुलना में राम की भूमिका शक्ति सम्पन्न रूप में है। इसी प्रकार फिल्म संगीत में स्त्री की तुलना हवा से की जाती है तो पुरुष की तुलना तूफान से की जाती है। इस प्रकार की स्थितियाँ वर्तमान समय में लिंग समानता के विकास के लिये चुनौती के रूप में हैं।
समाधान के उपाय – लोकप्रिय संस्कृति का प्रभाव व्यापक रूप से होता है क्योंकि इसका क्षेत्र भी व्यापक होता है। इसलिये इसकी चुनौतियों के समाधान करने से इसका उपयोग लिंग समानता एवं सर्वोत्तम लैंगिक भूमिकाओं को विकसित करने में किया जा सकता है। लोकप्रिय संस्कृति सम्बन्धी समस्याओं का समाधान अग्रलिखित रूप में किया जा सकता है –
(1) फिल्मों में प्रदर्शित विभिन्न प्रकार के दृश्यों में नारी एवं पुरुष की भूमिका को सन्तुलित एवं सकारात्मक रूप में प्रस्तुत करना चाहिये जिससे पुरुष एवं स्त्री वर्ग के मध्य सामंजस्य एवं समन्वयन की भावना उत्पन्न हो सके तथा प्रत्येक पुरुष स्त्री के बिना अपने अस्तित्व एवं प्रतिष्ठा को अधूरा समझे। इससे समाज में लिंग असमानता का उन्मूलन होगा तथा लिंग समानता विकसित हो सकेगी।
(2) विज्ञापनों का उद्देश्य धन कमाना नहीं होना चाहिये वरन् विज्ञापन के माध्यम से स्त्री-पुरुष की समानता को प्रदर्शित करना चाहिये। स्त्री को मात्र प्रदर्शन की विषयवस्तु समझकर उसका उपयोग नहीं करना चाहिये वरन् उसको पुरुष की भाँति ही प्रस्तुत करना चाहिये ।
(3) संगीत का अन्तर्गत पुरुष प्रशस्ति एवं वीरता सम्बन्धी गीतों के साथ-साथ स्त्री वीरता की गाथा भी होनी चाहिये। शिवाजी को वीरता के साथ-साथ रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का वर्णन भी संगीत एवं गीत में व्यापक रूप से होना चाहिये । इससे लैंगिक भूमिका में समानता आयेगी ।
(4) संगीत का उद्देश्य मनोरंजन करना नहीं होना चाहिये वरन् नारी एवं नर की भूमिका को सामंजस्यपूर्ण रूप में प्रस्तुत करना होना चाहिये। विविध गीत-संगीत एवं कविताओं का उद्देश्य स्त्री-पुरुष की समानता को प्रदर्शित करना हो
चाहिये जिससे कि पुरुष एवं स्त्री वर्ग दोनों ही सामाजिक एवं राष्ट्रीय विकास के लिये समान रूप से योगदान दे सकें ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here