भारत में नैतिक संकट की स्थिति की संक्षेप में विवेचना कीजिए।

भारत में नैतिक संकट की स्थिति की संक्षेप में विवेचना कीजिए। 

उत्तर— भारत में नैतिक संकट–भारत की वर्तमान स्थिति का अवलोकन करने पर यह ज्ञात होता है कि यहाँ प्रतिदिन घटनाओं, विपदाओं, विकृतियों, अपराधों की बाढ़, राजनैतिक विग्रह, अनैतिक क्रियाकलाप आदि सभी के कारण समाज में ऐसी परिस्थिति व्याप्त हो गई है कि इन मनोविकारों के कारण मनुष्य अपनी सीमाएँ लाँघकर अपने जीवन को पतन की तरफ ले जा रहा है और वह अपने मूल उद्देश्यों में भटक गया है। आज इक्कीसवीं सदी के विकास में ज्यादा से ज्यादा भोगने की चाह में व्यक्तिवादी भावों की अधिकता बढ़ती जा रही है तथा मनुष्य अपनी संवेदनशीलता का परित्याग कर असहिष्णु व नैतिक रूप से कमजोर होता जा रहा है।
शिक्षा व्यवस्था में यह संकट अकेले नैतिकता की कमी की वजह से ही नहीं आता है। इसके कई कारण हैं । आज शैशवावस्था से बच्चों को नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाया जाता है परन्तु फिर भी नैतिकता में इतनी गिरावट क्यों हैं ? यह सब व्यवस्था की कमी के कारण भी है। आज संसार में इतना भ्रष्टाचार व्याप्त है कि बिना रिश्वत के कोई काम नहीं होता है। छोटे से छोटा काम भी ईमानदारी से करने में अनेक परेशानियाँ आती हैं। आज सूचनाकृति के इसी युग में इस देश में इतने अधिक माध्यमों से नैतिक सन्देश लोगों तक पहुँच रहे हैं परन्तु फिर भी भतिकता का संकट एक बाधा की तरह आज शिक्षा के समक्ष खड़ा है। इक्कीसवीं सदी की भारतीय शिक्षा व्यवस्था की चुनौतियों को समझाने के लिए यूनेस्को द्वारा गठित डेलर्म आयोग ने सन् 1996 में प्रस्तुत प्रतिवेदन – लर्निंग द ट्रेजर विदिन में विश्व स्तर पर प्रत्येक राष्ट्र के समक्ष/ तीन प्रकार के संकट बताये थे । आर्थिक संकट, प्रगति का संकट व नैतिक संकट। ये तीनों ही संकट भारत के समक्ष भी विकराल रूप में उपस्थित हैं। आज नैतिक संकट की यदि बात करें तो आज भौतिक उपलब्धियों की होड़ में मानवीय संवेदनायें शून्य होती जा रही हैं। लोग एक दूसरे के पास नहीं आ रहे हैं बल्कि पूरे होते जा रहे हैं। लोग एक दूसरे से क्षणों में सम्पर्क कर सकते हैं दूरियों की परिभाषाएँ बदल रही है। विश्व भर के किसी क्षेत्र में भी सम्पर्क करना अब क्षणिक हो गया है। फिर भी हम पड़ोसियों जैसा व्यवहार क्यों नहीं कर पा रहे हैं।
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