भारत में शिक्षा की प्रमुख बाधायें कौन-कौनसी हैं ? संक्षेप में लिखिए |
भारत में शिक्षा की प्रमुख बाधायें कौन-कौनसी हैं ? संक्षेप में लिखिए |
उत्तर— भारत में शिक्षा की बाधाएँ– वर्तमान युग में मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन ही परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं। इन परिवर्तनों के कारण कई नई समस्याएँ भी उत्पन्न हो रही हैं। शिक्षा का क्षेत्र भी इनसे अछूता नहीं रहा है और शिक्षा के क्षेत्र में भी अनेक समस्याएँ एवं बाधाएँ उत्पन्न हो गई हैं, जिनकी वजह से शिक्षा के उद्देश्यों व लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं हो रही है । भारत में शिक्षा की प्रमुख बाधाएँ निम्न हैं—
(1) गुणवत्ता – “भारत के भाग्य का निर्माण उसकी कक्षाओं में हो रहा है।” कोठारी शिक्षा आयोग का यह कथन पूरी तरह सत्य है। भारत के भविष्य के निर्माता वे बच्चे हैं जो आज कक्षाओं में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं । वे जैसी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं वैसा ही राष्ट्र का भविष्य होगा। आयोग का यह कथन स्पष्ट रूप से यह संकेत देता है कि अच्छी एवं गुणात्मक शिक्षा ही हमारे भारत को भविष्य में विकास की ओर ले जा सकती है। यह तो ठीक है कि भारतीय संविधान में प्राथमिक शिक्षा को सार्वभौमिक बनाने की बात कही गयी है और हम इस दिशा में निरन्तर प्रयास कर रहे हैं। अनेक शैक्षिक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जिनसे प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकीकरण के लक्ष्य को प्राप्त कर लेना ही काफी नहीं है। शिक्षा परिमाणात्मक ही नहीं, गुणात्मक दृष्टि से भी उच्च कोटि की हो तभी उसकी सार्थकता है। यही कारण है कि भारत में विभिन्न आयोगों द्वारा तथा 1986 में तैयार नई शिक्षा नीति में गुणात्मक शिक्षा पर विशेष बल दिया गया है। प्राथमिक शिक्षा में तो शिक्षा की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह स्तर वही नींव है जिस पर माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा की गुणात्मकता निर्भर करती है।
(2) सुविधाएँ – पूर्व में हमने पढ़ा कि विभिन्न शिक्षा आयोगों ने अपने प्रतिवेदनों (Reports) में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (Quality education) पर बल दिया है। परन्तु भारत जैसे विकासशील देश में गुणवत्ता के साथ-साथ सुविधाओं में भारी कमी है। शिक्षा में सुविधाओं से अभिप्राय उन समस्त संसाधनों से है जिसमें शिक्षार्थी अपनी क्षमताओं का सहज एवं सन्तुलित विकास कर सके। साथ ही भवन, उपकरण आदि भी शैक्षिक सुविधाओं में शामिल किये जाते हैं। उच्च कोटि की शैक्षिक सुविधाओं के अभाव में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की प्राप्ति सम्भव नहीं है। अतः सुविधाओं की कमी भी भारत में शिक्षा की प्रमुख बाधा है।
(3) युवा असन्तोष –आज के युवक-युवतियाँ अनेक प्रकार के तनावों से ग्रसित रहते हैं, इससे उनमें असन्तोष की स्थिति उत्पन्न होती है और उसकी अभिव्यक्तिकरण वे प्रदर्शन, दंगों, तोड़-फोड़, हड़ताल, मार-पीट आदि विभिन्न क्रियाओं में भाग लेकर करते हैं। युवक-युवतियों में इस प्रकार के तनाव तथा असन्तोष का कारण उनका मौजूदा व्यवस्थाओं से असन्तुष्ट होना है। इस प्रकार हम सामान्य अर्थ में युवा असन्तोष का अर्थ छात्रों का मौजूदा व्यवस्था से सन्तुष्ट न होने से लगा सकते हैं। वर्तमान में युवा असन्तोष की समस्या एक सामाजिक समस्या के रूप में समाज में व्याप्त है।
(4) नैतिक संकट – नैतिक संकट दो शब्दों से मिलकर बना है। नैतिक का अर्थ है नीति सम्मत प्रयास तथा संकट का अर्थ है इस प्रयास की प्राप्ति में बाधक भौतिक एवं अभौतिक कारक । अतः नैतिक संकट का अभिप्राय नैतिक नियमों में ह्रास की स्थिति से है जैसे कि सहयोग, शान्ति, विनम्रता एवं क्षमा की कमी हो जाना है तथा मानसिक सन्तुष्टि का स्तर निम्न हो जाना तथा भौतिक सन्तुष्टि के स्तर को उच्चतम रखना। नैतिक संकट के परिणामस्वरूप शिक्षा के उद्देश्य में भी परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगे हैं। जहाँ पहले शिक्षा का उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति था, वहीं यह अब केवल भौतिक साधनों तक ही सीमित रह गया है जो कि भारतीय प्राचीन संस्कृति के अनुरूप नहीं है। स्पष्ट है कि नैतिक संकट भी भारत में शिक्षा की एक प्रमुख बाधा है।
(5) पहुँच – शिक्षा में पहुँच (Access) शब्द का प्रयोग पैठ के अर्थ में किया जाता है जिसका अर्थ है शैक्षिक नीतियाँ। यह आश्वस्त करें कि शिक्षार्थी शिक्षा प्राप्त करने की समस्त सुविधाओं एवं अवसरों पर समान अधिकार रखते हैं। पहुँच को प्रभावित करने वाले कई कारक होते हैं। इनका प्रभाव सकारात्मक व नकारात्मक दोनों रूपों में देखा जा सकता है। धर्म, लिंग-भेद, सामाजिक स्तर, आर्थिक स्तर, सामाजिक परम्पराएँ, भौगोलिक परिस्थितियाँ, राजनीतिक तत्त्व आदि अनेक कारक शिक्षा में पहुँच को प्रभावित करते हैं।
(6) लागत – शिक्षा की लागत (Cost) भी भारत में शिक्षा की प्रमुख बाधा है। शिक्षा के अर्थशास्त्र के अनुसार, विद्यार्थी पर व्यय की जाने वाली राशि निवेश के रूप में होती है। यदि उस निवेश से विद्यार्थी, अभिभावक एवं समाज को लाभ प्राप्त नहीं होता है तो निवेश महत्त्वहीन हो जाता है। भारत में शिक्षा पर किया जाने वाला व्यय, आय की तुलना में अधिक है । भारत में शिक्षा की लागत अधिक होने के कई कारण हैं। प्रथम तो यह कि राजकीय एवं गैर राजकीय विद्यालयों के शुल्क में काफी अधिक अन्तर है। दूसरा, विद्यालय के अतिरिक्त कोचिंग आदि का व्यय भार बहुत ज्यादा है। अफसरशाही के कारण भी शिक्षा की लागत बढ़ी है। स्थानीय स्रोतों का उपयोग नगण्य है। इस तरह कई कारण जिनकी वजह से शिक्षा की लागत बढ़ जाती है और फिर यह लागत शिक्षा मार्ग में बाधा बन जाती है।
(7) राजनीतिक अनिच्छा – भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहाँ राजनीति के विभिन्न रूप दिखाई देते हैं। शिक्षा एवं राजनीति के सम्बन्ध पर विस्तृत चर्चा हम सम्राट की इस पुस्तक की इकाई-3 में करेंगे। राजनीति का शिक्षा के विभिन्न आयामों पर सीधा-सीधा प्रभाव पड़ता है। वर्तमान समय में शिक्षा के प्रति राजनीतिक अनिच्छा की प्रवृत्ति साफ दिखाई देती है। राजनीतिज्ञों के निहित स्वार्थों की वजह से शिक्षा का विकास पिछड़ जाता है। राजनीतिक अनिच्छा का शिक्षा के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ता है। विद्यालयों की संख्या, संसाधनों की उपलब्धता, पाठ्यक्रम, शिक्षा की लागत, गुणवत्ता, स्तर आदि पर राजनीतिक इच्छा, अनिच्छा का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। स्पष्ट है कि राजनीतिक अनिच्छा भारत में शिक्षा की प्रमुख बाधा है।
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