भारत में समाजीकरण की प्रक्रिया में विविध पारिवारिक स्वरूप क्या है ?

भारत में समाजीकरण की प्रक्रिया में विविध पारिवारिक स्वरूप क्या है ?

उत्तर —  भारत में समाजीकरण की प्रक्रिया में विविध पारिवारिक स्वरूप- भारत में भिन्न-भिन्न प्रकार के परिवार पाये जाते हैं और उनका वर्गीकरण विभिन्न प्रकृति के आधार पर किया जा सकता है। परिवार का वर्गीकरण विवाह के स्वरूप स्त्री-पुरुष की सत्ता, सदस्यों की संख्या आदि के आधार पर किया जा सकता है। हम विभिन्न दृष्टिकोणों से परिवार के प्रकार का अध्ययन निम्नलिखित प्रकार से कर सकते हैं—
( 1 ) रक्त सम्बन्ध के आधार पर  — भारत में रक्त सम्बन्धों के आधार पर परिवार को दो भागों में विभाजित किया जाता है। ये दो प्रकार निम्नलिखित हैं —
(i) अभिविन्यास का परिवार – ऐसे परिवार में पिता के परिवार की पहचान उसके पुत्र के आधार पर होती है। भारतीय समाज में हिन्दू एवं मुस्लिम समाज के परिवार इसके प्रमुख उदाहरण हैं। प्राचीन काल से वर्तमान तक भारतीय समाज में लड़कों को अधिक महत्त्व दिया जाता है और उन्हीं के आधार पर परिवार की पहचान होती है।
(ii) वंशवृद्धि — ऐसे परिवारों का संगठन शादी के बाद होता है। इस परिवार की सम्बद्धता पिता के रूप में होती है।
(2) संरचना के आधार पर भारत में संरचना के आधार पर परिवार का वर्गीकरण तीन प्रकार से किया जाता है। ये तीन प्रकार निम्नलिखित हैं–
(i) एकल या नाभिक परिवार – एकल या नाभिक परिवार, परिवार का सबसे छोटा रूप है जो एक पुरुष, उसकी पत्नी और उस पर आश्रित बच्चों से मिलकर बना होता है। इसमें अन्य रिश्तेदारों को सम्मिलित नहीं किया जाता है तथा बच्चे भी अविवाहित रहने तक ही सम्मिलित किए जाते हैं। इस तरह के परिवार विशिष्ट रूप से भारतीय समाज में, मॉडेन यूरोपीय में पाए जाते हैं इसके साथ कुछ आदिवासी समाज, जैसे— लोढ़ा, संथाल और उरांव में भी पाए जाते हैं।
(ii) संयुक्त परिवार – संयुक्त परिवार के अन्तर्गत तीन या तीन से अधिक पीढ़ियों के सदस्य साथ-साथ एक घर में रहते हैं, वे एक ही रसोई का बना खाना खाते हैं सामूहिक रूप से पूजा में भाग लेते हैं और परस्पर एक-दूसरे से किसी न किसी नातेदारी व्यवस्था से जुड़े हुए रहते हैं। हिन्दू संयुक्त परिवार इस तरह के परिवार का सबसे अच्छा उदाहरण है। जे. डी. मेन ने अपनी पुस्तक ‘ हिन्दू लॉ एण्ड कस्टम’ में मालाबार के नायरों में प्रचलित संयुक्त परिवारों जिन्हें थारवाड कहते हैं को संयुक्त परिवार का श्रेष्ठ उदाहरण माना है।
(iii) विस्तृत परिवार – जब एकल परिवार में पत्नी या पति के पक्ष के या दोनों पक्षों के रिश्तेदार उनके साथ रहते हैं तो ऐसे परिवारों को विस्तृत परिवार कहते हैं। भारत के पितृ या पुरुष सत्तात्मक समाज में ऐसे परिवार प्रायः देखने को मिल जाते हैं।
( 3 ) शादी के आधार पर भारतीय समाज में शादी के आधार पर परिवार का विभाजन तीन आधार पर किया जाता है। शादी के आधार पर परिवार के प्रकार निम्नलिखित हैं—
(i) एक पत्नीक परिवार – एक पत्नीक परिवार दो शादीशुदा विपरीत लिंगी वयस्कों के सम्मिलन से बनता है। इसमें पति-पत्नी एवं उनके अविवाहित बच्चों को शामिल किया जाता है। ऐसे परिवार में पति को पत्नी के होते हुए दूसरी शादी करने की अनुमति नहीं होती है किन्तु किसी कारणवश पत्नी की मृत्यु या तलाक होने के बाद पति दूसरा विवाह कर सकता है।
(ii) बहु पत्नीक परिवार – ऐसे परिवार में पुरुषों को एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करने की अनुमति होती है। प्राचीन समय में हिन्दू जमींदार एवं मुस्लिम सुल्तान के परिवार इसके उत्तम उदाहरण हैं। भारत में नागा, बैगा तथा गोंड जनजातियों में तथा मुस्लिम में ऐसे परिवार देखने को मिलते हैं।
(iii) बहु पतित्व परिवार – वे परिवार जिनमें स्त्री एक से अधिक पुरुषों से विवाह करती है ऐसे परिवार को बहुपतित्व परिवार कहते हैं। भारत में ऐसे परिवार भारत के दक्षिण में स्थित नीलगिरि के टोडा एवं मालाबार के नायर, तिब्बत में, जौनसार बाबर के खस में पाए जाते हैं। ऐसे परिवारों के भी दो रूप होते हैं—पहला भ्रातृ बहुपतिक परिवार, ऐसे परिवार जिसमें सभी भाई मिलकर एक स्त्री से विवाह करते हैं। दूसरा अभ्रातृ बहुपतिक परिवार, वह परिवार जिसमें पति एकदूसरे के भाई न होकर अन्य रिश्तेदार भी हो सकते हैं।
( 4 ) निवास के आधार पर –  निवास के आधार पर परिवार को छ: भागों में बाँटा जा सकता है। शादी के बाद दम्पति का निवास स्थान कहाँ हो इस आधार पर भी परिवारों का वर्गीकरण किया जाता है। ये वर्गीकरण निम्नलिखित हैं-
(i) पितृ स्थानीय परिवार—ऐसे परिवार जहाँ स्त्री शादी के बाद अपने पति के घर पर उसके माता-पिता के साथ रहने लगती है उन्हें पितृ स्थानीय परिवार कहते हैं। ऐसे परिवार हिन्दुओं, मुसलमानों, खरिया, भील तथा कई पितृवंशीय परिवारों में पाए जाते हैं।
(ii) मातृ स्थानीय परिवार इस प्रकार के परिवारों में पति, पत्नी के घर उसके माता-पिता के साथ रहने लगता है। खासी और गोरी जनजातियों में ऐसे परिवार मिलते हैं।
(iii) नव स्थानीय परिवार-ऐसे परिवार जिनमें पति पत्नी शादी के बाद न तो पति के घरवालों के साथ और न ही पत्नी के घरवालों के साथ रहते हैं बल्कि वे अलग नया घर बनाकर रहते हैं। आधुनिक बंगाल और कुछ प्रबुद्ध आदिवासी समाज में ऐसे परिवार देखने को मिलते हैं।
( 5 ) उत्तराधिकार के आधार पर-उत्तराधिकार के आधार पर परिवार को दो भागों में विभाजित किया जाता है। ये दोनों प्रकार के निम्नलिखित है—
(i) पितृवंशीय परिवार – वे परिवार जिनमें अधिकार एवं उत्तराधिकार पुरुष या पिता द्वारा तय किए जाते हैं। ऐसे परिवार में बेटे अपने पैतृक घर में स्थायी रूप से रहते हैं जबकि लड़कियाँ शादी के बाद घर छोड़ देती हैं। वे अपने पति के घर में रहती हैं। पिता की सम्पत्ति पर बेटों का अधिकार होता है।
(ii) मातृवंशी परिवार –  ऐसे परिवार जिसमें पति पत्नी के घर में अर्थात् उसके माँ के घर में रहने लगते हैं। खासी और गोरो जनजाति में बेटियाँ अपने घर में स्थायी रूप से रहती हैं और पुरुष विवाह के पश्चात् उनके घर निवास करने आते हैं। ऐसे परिवारों में सारी शक्ति माँ के पास होती है उसके बाद ये शक्ति उसके भाई की होती है। ऐसे परिवार में उत्तराधिकार एवं अधिकार स्त्रियों द्वारा तय किए जाते हैं।
(iii) मातृ-पितृ स्थानीय परिवार– वे परिवार जिसमें नव विवाहित दम्पति के रहने में कोई बाध्यता नहीं रहती हैं वे किसी के भी ( पति या पत्नी) माता-पिता के साथ रह सकते हैं। इसलिए ऐसे परिवारों को मातृ-पितृ स्थानीय परिवार कहते हैं ।
(iv) मामा स्थानीय परिवार – वे परिवार जिसमें शादी के बाद पति-पत्नी पति के मामा के घर में रहने लगते हैं, मामा स्थानीय परिवार कहलाते हैं। ट्रो ब्रियाण्डा द्वीप एवं भारत के दक्षिण में नायरों में ऐसे परिवार देखने को मिलते हैं।
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