भारत में समावेशी शिक्षा के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये ।
भारत में समावेशी शिक्षा के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये ।
उत्तर – भारत में समावेशी शिक्षा का विकास–भारत में इन बालकों को अत्यधिक अपमान एवं कष्ट सहन करने पड़े, इन्हें किसी भी स्थान पर आने-जाने की भी अनुमति नहीं थी। धीरे-धीरे सामान्य लोगों की भाँति विशिष्ट आवश्यकता वाले बालकों की शिक्षा का उदय होना प्रारम्भ हो गया था।
समय परिवर्तन के साथ-साथ निर्योग्य बालकों के लिए विभिन्न विद्यालय स्थापित किए गए। विशिष्ट शिक्षा हेतु राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में प्रावधान दिए गए।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) में यह दृढ़तापूर्वक कहा गया है कि जहाँ तक सम्भव हो शारीरिक रूप से बाधित तथा अन्य सामान्य बाधित बालकों की शिक्षा एक साथ तथा सामान्य बालकों के समान होनी चाहिए। केवल जिला मुख्यालयों में गम्भीर रूप से बाधितों की शिक्षा के लिए विशिष्ट शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश होगा।
हमारे संविधान में प्रत्येक बालक की प्रारम्भिक स्तर की शिक्षा का प्रावधान है जो सभी के लिए आवश्यक है। अधिकांश ऐसे समूह के बालक या तो शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश ही नहीं लेते अथवा किसी-नकिसी कारणवश शिक्षा आधी-अधूरी छोड़ देते हैं।
सर्व शिक्षा अभियान आदि विशिष्ट शिक्षा को प्रोत्साहित करते हैं। भारत में इन विशिष्ट आवश्यकता वाले बालकों हेतु विभिन्न शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान खोले गए हैं जिन्होंने समावेशी शिक्षा को विशेष योगदान प्रदान किया है।
सन् 1986 तथा 1992 का क्रियान्वयन का प्रारूप (POA) प्राचीन स्थापना के सिद्धान्तों को अपनाने की सलाह देता है। इसका ऐसा मानना है कि ऐसे बाधित बालक जिनकी शिक्षा सामान्य स्कूलों में सम्भव है, उनकी शिक्षा केवल सामान्य स्कूलों में ही होनी चाहिए विशिष्ट स्कूलों में नहीं ।
जैसे ही वे प्रारम्भिक शैक्षणिक निपुणता सम्प्रेषण कौशल तथा दैनिक जीवन के लिए आवश्यक निपुणताओं को प्राप्त कर लें उनकी शिक्षा सामान्य स्कूल में होनी चाहिए। शिक्षा के समान अवसरों को प्राप्त करने के लिए, क्रियान्वयन के प्रारूप (Programme of Action) ने यह भी आशा दिखाई कि शारीरिक रूप से बाधित बालक अन्य सामान्य बालकों की अपेक्षा अधिक गुणवान तथा प्रभावशाली शिक्षा में प्रवेश करें, इसकी स्वयं सिद्धियाँ निम्नलिखित हैं—
(1) ऐसे बालकों के लिए जो सामान्य प्राथमिक स्कूलों में शिक्षित किए जा सकते हैं—
(i) 19वीं पंचवर्षीय योजना के अन्त तक बालकों का व्यापक प्रवेश |
(ii) विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षा और पाठ्यक्रम के समायोजन के माध्यम से अधिगम का न्यूनतम स्तर सुनिश्चित करना ।
(2) सामान्य बालकों के अनुरूप बाधित बालकों के स्कूल छोड़कर जाने में कमी करना। उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप व्यवस्था करना ।
(3) बाधित बालकों का माध्यमिक व उच्चतर माध्यमिक शिक्षा संस्थाओं में विशिष्ट संसाधन उपलब्ध कराना तथा इन बालकों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण उपलब्ध करना ।
(4) सामान्य शिक्षा संस्था में विशिष्ट कक्षाओं या विशिष्ट शिक्षा संस्थाओं से शिक्षण हेतु बालक के लिए—
(i) 9वीं पंचवर्षीय योजना के अन्त तक बालकों का व्यापक प्रवेश |
(ii) बालकों की सामर्थ्य के अनुरूप अधिगम स्तर की उपलब्धियों को सुनिश्चित करना ।
(5) सेवाओं से पहले या सेवायुक्त शिक्षकों के लिए शिक्षा के कार्यक्रमों को बार-बार दोहराना जो कक्षा में विशिष्ट आवश्यकताओं के प्राप्त करने में सहायक हो। ऐसे छात्रों को अधिक प्रोत्साहन देना।
(6) शारीरिक रूप से बाधित व्यक्तियों की शिक्षण एवं व्यावसायिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सामान्य नियमों से हटकर शिक्षा के कार्य प्रारूप बनाना तथा उनका पुनः अभिविन्यास करना ।
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