महिलाओं के साथ पास -पड़ोस तथा कार्य क्षेत्र में होने वाले उत्पीड़न के प्रकार बताइये तथा इनकी रोकथाम हेतु उपाय सुझाइये |

महिलाओं के साथ पास -पड़ोस तथा कार्य क्षेत्र में होने वाले उत्पीड़न के प्रकार बताइये तथा इनकी रोकथाम हेतु उपाय सुझाइये |

अथवा
पास-पड़ोस तथा कार्य क्षेत्र में उत्पीड़न के कारणों का उल्लेख कीजिए।
                               अथवा
टिप्पणी लिखिये-महिला उत्पीड़न
उत्तर— महिलाओं के साथ पास-पड़ोस तथा कार्य क्षेत्र में होने वाले उत्पीड़न के प्रकार – पास-पड़ोस तथा कार्य क्षेत्र में होने वाले उत्पीड़न निम्नलिखित प्रकार के होते हैं—
( 1 ) आर्थिक उत्पीड़न – पास-पड़ोस तथा कार्य क्षेत्र में महिलाओं का आर्थिक उत्पीड़न किया जाता है, जैसे—समान कार्य हेतु समान वेतन न मिलना, बेगार कराना, असम्मान जनक कार्यों में लगाना, कार्य की समुचित दशायें न मिल पाना तथा पुरुषों की अपेक्षा उनके कार्य को कम सम्मान और महत्त्व देना इत्यादि ।
( 2 ) मानसिक उत्पीड़न – महिलाओं को पास-पड़ोस तथा उनके कार्य क्षेत्र में मानसिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है। मानसिक उत्पीड़न के अन्तर्गत महिलाओं के साथ उनकी गरिमा के विरुद्ध कार्यों का सम्पादन, उनके ऊपर मानसिक दबाव बनाना इत्यादि आता है। पासपड़ोस में जैसे ही महिलाएँ निकलती हैं, उन्हें सदैव यह भय रहता है कि उनके साथ कुछ अभद्र और असम्भावित घटना घट सकती है। इसी प्रकार कार्यस्थल पर भी वे मानसिक दबावों को झेलती हैं, जिस कारण वे अपनी प्रतिभा और शक्तियों का समुचित प्रयोग नहीं कर पाती हैं।
( 3 ) सामाजिक उत्पीड़न – पास-पड़ोस तथा कार्यस्थल पर होने वाले उत्पीड़न के द्वारा महिलाओं को सामाजिक असम्मान तथा उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है।
( 4 ) भाषायी उत्पीड़न – पास-पड़ोस तथा कार्यस्थल पर महिलाओं को भी उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है। उन्हें अभद्र भाषावली, गाली-गलौच, हीनता सूचक सम्बोधनों, वस्त्रादि पर टीका-टिप्पणी की जाती है। कार्यस्थल पर महिलाओं को उनके लिंगादि के कारण हीनता सूचक भाषा का सामना करना पड़ता है।
( 5 ) शारीरिक उत्पीड़न – पास-पड़ोस के वातावरण में स्थित कुछ अराजक तत्त्व महिलाओं और छोटी बच्चियों के साथ शारीरिक उत्पीड़न करते हैं। उनके निजी अंगों को छूना, उन पर टिप्पणी करना तथा शारीरिक शोषण किया जाता है। इसी प्रकार कार्यस्थल पर भी महिलाओं के साथ पुरुष सहकर्मी तथा उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों द्वारा शोषण किया जाता है। महिलाओं को उनकी अश्लील फोटो, एम. एम. एस. आदि बनाकर उत्पीड़ित किया जाता है।
पास-पड़ोस तथा कार्य क्षेत्र में उत्पीड़न के कारण – वर्तमान समय में पास-पड़ोस तथा कार्य क्षेत्र में यौन उत्पीड़न सम्बन्धी समस्याएँ दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं। इसके उत्तरदायी कारण निम्नलिखित प्रकार से हैं—
( 1 ) पुरुष प्रधान समाज–सामाजिक ताने-बाने में पुरुषों को महत्त्व दिया गया है। वे वंश चलाने वाले, पितरों का उद्धार करने वाले, वंश की गरिमा को बढ़ाने वाले, आर्थिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन करने वाले, परिवार का भरण-पोषण करने वाले, निर्णय लेने वाले, धार्मिक क्रियाकलापों को सम्पन्न करने वाले होते हैं, जिसके कारण पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की स्थिति समाज में निम्न हो जाती है। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं का उत्पीड़न पास-पड़ोस तथा कार्यक्षेत्र का कोई पुरुष करता है, क्योंकि वह स्वयं को श्रेष्ठ तथा स्त्रियों को हीन समझता आया है।
(2) महिलाओं की चुप्पी – जिस प्रकार किसी पक्षी को चिरकाल तक पिंजरे में कैद रखा जाये तो वह अपने उड़ने की शक्ति भी नहीं जान पाता, कुछ ऐसा ही महिलाओं के साथ हुआ। चिरकाल से उनके साथ शोषणपूर्ण व्यवहार होता आया और माँ अपनी बेटी को यही सीख देती है कि वे सहती रहें ये सब, परन्तु सहन-शक्ति की सीमा होती है। ऐसी सहन-शक्ति और धैर्य से क्या लाभ है, जब अस्मिता पर ही संकट उत्पन्न हो जाये। बेटियाँ कभी भी अपनी माँ और पिता से उनके साथ हो रहे उत्पीड़न पर खुलकर बात नहीं कर पाती हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि उल्टा उन्हें ही दोषी समझा जाने लगेगा। घर से निकलना और लिखनापढ़ना भी दूभर हो जायेगा या किसी लड़के को ढूँढकर आनन-फानन में विवाह करा दिया जायेगा। वे इन विषयों पर चुप्पी साधना ही बेहतर समझती हैं, जिससे उत्पीड़न करने वालों के मनोबल में वृद्धि होती है।
( 3 ) घर, परिवार और समाज का असहयोग—महिलाओं का उत्पीड़न इसलिए भी होता है कि उन्हें घर, परिवार और समाज का असहयोग ही प्राप्त होगा। महिलाओं के सामने अनेक ऐसे उदाहरण होते हैं, जब वे उत्पीड़न का शिकार भी होती हैं तथा घर, परिवार और समाज की उपेक्षा को भी झेलती हैं। अतः वे इस विषय में अपने माता-पिता, परिवारजनों और समाज का दृष्टिकोण भली प्रकार समझती हैं, जिसके कारण उत्पीड़न करने वाले बच जाते हैं और एक के बाद दूसरी महिला को अपनी बदनियती का शिकार बनाते रहते हैं।
(4) लोगों का दृष्टिकोण – लोगों का स्त्रियों के प्रति दृष्टिकोण संकुचित है। वे महिलाओं को पैर की जूती और घर की सजावट की सामग्री मात्र मानते हैं और जब भी कोई महिला उत्पीड़न की शिकार होती है तो सर्वप्रथम उसके वस्त्रों, बाहर निकलने इत्यादि को दोषी ठहराया जाता है। परन्तु उस समय हम भूल जाते हैं कि छः साल तथा कुछ महीनों और वृद्ध महिलाओं के साथ भी तो उत्पीड़न की घटनाएँ हो रही हैं। इस प्रकार लोगों का संकुचित दृष्टिकोण उत्पीड़न के एक प्रमुख कारक के रूप में उभरता है।
(5) आर्थिक कमजोरी – पितृसत्तात्मकता के कारण सम्पत्ति पर पिता के पश्चात् पुत्र का अधिकार होता है। ससुराल में भी पति ही सम्पत्ति का अधिकारी होता है, उसके पश्चात् पुत्र । कार्य करने में महिलाओं से बेगारी, समान कार्य हेतु समान वेतन न देकर आर्थिक शोषण किया जाता है । आर्थिक कमज़ोरी के कारण महिलाएँ जब उत्पीड़न की शिकार होती हैं तो वे इसके विरुद्ध आवाज नहीं उठा पातीं। आर्थिक पराश्रितता के कारण और उत्पीड़न का चक्र चलता रहता है।
(6) प्रशासनिक असहयोग – प्रशासनिक असहयोग के कारण महिलाओं का पास-पड़ोस और कार्यस्थल पर उत्पीड़न किया जाता है, क्योंकि महिलाओं को प्रशासनिक असहयोग का सामना करना पड़ता है  जिसके कारण वे प्रशासन से किसी भी प्रकार का सहयोग लेने में कतराती हैं, जिससे उत्पीड़न की घटनाएँ रुकती नहीं हैं।
(7) सामाजिक  कुरीतियाँ – समाज में अनेक कुरीतियाँ व्याप्त हैं, जिनके कारण स्त्रियों को उपेक्षा झेलनी पड़ती हैं। इन कुरीतियों के कारण स्त्रियों का स्वयं के प्रति उपेक्षा का भाव जाग्रत हो जाता है जिस कारण से आस-पड़ोस और कार्यस्थल पर उनका जब शोषण होता है तो वे अपनी हीन मानसिकता के कारण शोषण तथा उत्पीड़न का शिकार होती रहती हैं।
(8) जागरूकता का अभाव – जागरूकता का समाज में अभाव है। इसी कारण से वे पुरातन रूढ़ियों, अन्धविश्वासों और परम्पराओं में जकड़े हुए हैं और महिलाओं को दोयम दर्जे का मानते हैं। स्त्रियों की शिक्षा, उनके प्रति होने वाले उत्पीड़न की पहचान इत्यादि विषयों के प्रति तथा स्त्रियाँ स्वावलम्बी तथा सशक्त हो सकती हैं, इस विषय में जागरूकता का अभाव है। महिलाओं को सदैव ही पिता, पति तथा पुत्र के सान्निध्य में रखा जाता है, जिसके कारण उनका उत्पीड़न पुरुष अपनी जागीर तथा उनकी नियति समझकर करता है।
( 9 ) कानूनी प्रावधानों की जानकारी न होना – महिलाओं को. तथा उनके माता-पिता इत्यादि को कानूनी प्रावधानों के विषय में जानकारी नहीं है। जब किसी महिला का उत्पीड़न किया जाता है तो न उसे ही और न उसके परिवार को यह ज्ञात होता है कि क्या कानून है तथा न्याय हेतु किसकी सहायता प्राप्त करनी है। यद्यपि जनसंचार के माध्यमों द्वारा स्त्रियों को उत्पीड़न की पहचान करने, महिला सहायता नम्बरों पर फोन कर सहायता प्राप्त करने की जानकारी दी जा रही है, परन्तु संसाधनों और दो समय के भोजन की जुगाड़ में महिलाएँ तथा उनके परिवारजन इन प्रावधानों के ज्ञान से वंचित रह जाते हैं। इस प्रकार कानूनी प्रावधानों की जानकारी न होने के कारण पास-पड़ोस तथा कार्यस्थल पर उन्हें उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है।
( 10 ) अशिक्षा – महिलाओं के उत्पीड़न के पीछे एक प्रमुख कारण उनका अज्ञानता तथा समाज में फैली अशिक्षा है। महिलाओं की शिक्षा आज भी पिछड़ी अबस्था में है। औरतों और पिछड़ी जातियों, जनजातियों, अल्पसंख्यकों तथा शारीरिक चुनौतिग्रस्त महिलाओं इनमें भी ग्रामीण तथा शहरी स्तर पर स्थिति में अन्तर और चिन्तापूर्ण है। हमारे समाज में भी प्रौढ़ शिक्षादि के कारण भी अशिक्षा व्याप्त है। अशिक्षित समाज स्त्रियों के महत्त्व से परिचित नहीं हो पाता है, जिस कारण से भी उनका उत्पीड़न होता रहता है। पढ़ी-लिखी महिलाएँ, आर्थिक रूप से सशक्त होती हैं और समाज तथा परिवार भी उनकी प्रतिभा का लोहा मानता है, जिससे उनके प्रति उत्पीड़न और भेदभाव कम होता है। अतः अशिक्षा महिलाओं के पास-पड़ोस और कार्यस्थल पर होने वाले उत्पीड़न का प्रमुख कारण है।
पास-पड़ौस तथा कार्य क्षेत्र में महिलाओं के उत्पीड़न की रोकथाम हेतु उपाय—पास-पड़ोस तथा कार्य क्षेत्र में महिलाओं के उत्पीड़न की रोकथाम हेतु किये गये उपाय तथा किये जाने वाले उपाय तथा सुझाव निम्नलिखित हैं—
(1) पास-पड़ोस तथा कार्यक्षेत्र में होने वाले उत्पीड़न के लिए विद्यालयों में वाद-विवाद, गोष्ठी, कार्यशाला आदि का आयोजन किया जाता है।
(2) पास-पड़ोस तथा कार्यक्षेत्र में होने वाले उत्पीड़नों की पहचान, समझ तथा उससे बचाव हेतु उपायों के विषय में जनसंचार के अभिकरणों द्वारा प्रचार-प्रसार किया जाता है।
(3) संविधान के अनुच्छेद 14 तथा 15 में महिलाओं की समानता, अनुच्छेद 21 के द्वारा गरिमामयी जीवन का अधिकार प्रदान किया गया है। स्त्रियों को कार्यस्थल पर उत्पीड़न से बचाव के लिए 2013 अधिनियम बनाया गया ।
(4) महिलाओं को पास-पड़ोस तथा कार्यस्थल पर उत्पीड़न से बचाव के लिए लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाया जा रहा है।
(5) असाक्षरता दूर करने के लिए सतत् शिक्षा, वयस्क शिक्षा, पत्राचार पाठ्यक्रम तथा दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है, जिससे शिक्षा का प्रचार-प्रसार होगा और महिलाओं के उत्पीड़न में कमी आयेगी।
(6) व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का बालिकाओं हेतु शुभारम्भ हुआ तथा उनके लिए पृथक् विद्यालयों और महिला शिक्षिकाओं की नियुक्ति की जा रही है।
(7) महिलाओं को पास-पड़ोस तथा कार्यक्षेत्र में होने वाले उत्पीड़न से बचाव के लिए जूड़ो-कराटे तथा व्यक्तिगत सुरक्षा हेतु नियम सिखाये जाते हैं।
(8) महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि अधिकारों की सुरक्षा के लिए समानता तथा स्वतन्त्रता का अधिकार प्रदान किया जाता है।
(9) उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को अब विविध कार्यक्रमों द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे अन्य महिलाओं को प्रोत्साहन मिल रहा है।
(10) महिलाओं की उत्पीड़न से रक्षा के लिए मानवाधिकार आयोग, अन्तर्राष्ट्रीय महिला आयोग इत्यादि कार्य कर रहे हैं।
(11) महिलाओं को पास-पड़ोस तथा कार्यस्थल पर हो रहे उत्पीड़न से बचाने के लिए समाज तथा महिलाओं में जागरूकता के लिए गैर-सरकारी संस्थाएँ कार्य कर रही हैं ।
(12) महिलाओं को पास-पड़ोस तथा कार्य स्थल पर होने वाले उत्पीड़न से बचाने हेतु उनके लिए आवाज उठानी चाहिए।
(13) पास-पड़ोस तथा कार्यक्षेत्र में महिलाओं के आर्थिक, शारीरिक तथा मानसिक उत्पीड़न हेतु कानूनी प्रावधान किये गये हैं।
(14) महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए महिला आयोग की स्थापना की गई है।
(15) महिलाओं को पास–पड़ोस तथा कार्यक्षेत्र में होने वाले उत्पीड़न से बचाव हेतु पाठ्यक्रम तथा पाठ्य सहगामी क्रियाओं द्वारा जानकारी तथा जागरूकता प्रदान की जा रही है।
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