राज्यस्तरीय संस्थागत वित्तीय स्रोत के कार्यों का वर्णन करें।
राज्यस्तरीय संस्थागत वित्तीय स्रोत के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर- राज्यस्तरीय संस्थागत वित्तीय संस्थान के अंतर्गत वैसे संस्थान आते हैं जो राज्य स्तर पर विकासात्मक कार्य करते हों। ये ऋण उपलब्ध कराकर राज्य में साख का नियंत्रण करते हैं। कुछ प्रमुख राज्यस्तरीय संस्थागत वित्तीय संस्थानों के कार्य निम्नलिखित हैं
(i) सहकारी बैंक – सहकारी बैंकों की स्थापना अलग-अलग राज्यों द्वारा बनाई गई सहकारी समितियों के अधिनियमों द्वारा की गई है। भारत में सहकारी बैंक भी बैंकिंग के आधारभूत कार्य को पूरा करते हैं। वस्तुतः भारत में सहकारी बैंकों का गठन तीन स्तरों वाला है। राज्य सहकारी बैंक संबंधित राज्य में शीर्ष संस्था होती है। इसके बाद जिला सहकारी बैंक जिला स्तर पर कार्य करती है। तीसरा स्तर प्राथमिक ऋण समितियों का होता है, जो ग्रामीण स्तर पर कार्य करते हैं।
(ii) केंद्रीय सहकारी बैंक- इस संस्था का कार्य एक जिले तक ही सीमित रहता है। सहकारी बैंकों की सदस्यता सिर्फ सहकारी समितियों को ही प्राप्त होती है। भारत के समस्त राज्यों में इस प्रकार की संस्था है। यह बैंक सहकारी साख समितियों को आवश्यकतानुसार ऋण प्रदान करते हैं जिससे कि ये समितियाँ कृषकों तथा अन्य सदस्यों को समुचित आर्थिक सहायता उपलब्ध करा सके।
(iii) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक- इस बैंक की स्थापना विशेषकर दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में उन लोगों को बैंकिंग सुविधाएँ पहुँचाने के उद्देश्य से की गई है जहाँ पर बैंकिंग सुविधा उपलब्ध नहीं है। इन बैंकों का मूल उद्देश्य समाज के उन कमजोर वर्गों के लोगों को रियायती दर पर संस्थागत ऋण उपलब्ध कराना है। इनका एक उद्देश्य ग्रामीण बचत को जटाकर उत्पादक गतिविधियों में लगाना भी है।
(iv) नाबार्ड- नाबार्ड ग्रामीण क्षण हाँचे में एक शीर्षस्थ संस्था के रूप में अनेक वित्तीय संस्थाओं को पनर्वित सविधा प्रदान करता है, जो प्रामीण क्षेत्रों में उत्पादक गतिविधियों के विस्तत क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए ऋण देती हैं। यह केन्द्र सरकार द्वारा गारण्टी प्राप्त बॉण्ड तथा ऋण जारी करके भी संसाधन जुटा सकता है। इसके अतिरिक्त यह राष्ट्रीय ग्रामीण साख निधि के संसाधनों का भा प्रयोग करता है।
(v) भूमि विकास बैंक- किसानों की दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इसकी स्थापना की गई है। ये बैंक किसानों को भूमि खरीदन, भूमि स्थायी सधार करने अथवा पराने ऋणों का भगतान करने आदि का दीर्घकालीन ऋणों की व्यवस्था करते हैं। भमि विकास बैंक किसानों की अचल सम्पत्ति को बंधक रखकर ऋण प्रदान करते हैं। साधारणतया प्रतिभूति के मूल्य का 50% दिया जाता है।