रूढ़ियुक्तियों का विकास तथा निर्धारकों को समझाइए।

रूढ़ियुक्तियों का विकास तथा निर्धारकों को समझाइए।

उत्तर– पूर्वाग्रहों की भाँति रूढ़ियुक्तियों के विकास पर भी अनेक कारकों का प्रभाव पड़ता है। ये भी अर्जित हैं, न कि जन्मजात होती हैं । रूढ़ियुक्तियों के मुख्य निर्धारक इस प्रकार हैं—
(1) सामाजिक अधिगम (Social learning) –अन्य व्यवहारों की भाँति रूढ़ियुक्तियाँ भी समाज में रहकर सीखी जाती हैं। समाज के वरिष्ठ लोग अन्य समूहों या उसके सदस्यों के बारे में बच्चों को जैसा बताते हैं, उसी के अनुसार बच्चों का संज्ञान बनता है; जैसे—यह कहने पर कि अमुक जाति के लोग बहादुर, ज्ञानी, परिश्रमी या कामचोर होते हैं, बच्चों के मन पर वैसी ही छाप पड़ जाती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि सामाजिक अधिगम या सामाजीकरण विभिन्न प्रकार की रूढ़ियुक्तियों के विकास का अवसर देता है।
(2) सामाजिक दूरी (Social distance) — यदि समाज में विभिन्न वर्गों में आपस में अपेक्षित मेलजोल नहीं है तो इससे एक-दूसरे के बारे में गलतफहमी पैदा होने की सम्भावना बढ़ती है। इस कारण लोग एक-दूसरे के बारे में प्रायः नकारात्मक या मिथ्या धारणाएँ बना लेते हैं।
(3) प्रतिष्ठा संसूचन या सुझाव (Prestige suggestion )— लोग दूसरे समूहों, वर्गों, जातियों या धर्मों के सदस्यों के बारे में इसलिए भी रूढ़ियुक्तियाँ बना लेते हैं, क्योंकि उनके समूह के प्रतिष्ठित लोगों का वैसा ही सुझाव या विचार होता है। जैसे—जातीय नेता ने अगर किसी पार्टी को खराब घोषित कर दिया तो उसके समर्थक उसे वोट नहीं देंगे।
(4) अज्ञानता (Lack of knowledge) – रूढ़ियुक्तियों का विकास व्यक्ति की अज्ञानता के कारण भी होता है। प्रायः लोग अज्ञानता के कारण अन्य लोगों के बारे में नकारात्मक धारणाएँ बना लेते हैं अर्थात् वास्तविक सूचनाओं के अभाव में रूढ़ियुक्तियों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त होता रहता है।
(5) मिथ्या ज्ञान (False knowledge) — रूढ़ियुक्तियाँ आंशिक ज्ञान तथा अनुभव पर आधारित होती हैं। यदि एक जाति, वर्ग या समूह का कोई व्यक्ति कोई अनुचित व्यवहार कर जाता है, तो उसके समूह या जाति के बारे में भी लोग वैसी ही धारणा बना लेते हैं ।
(6) सांस्कृतिक मान्यताएँ (Cultural beliefs ) – प्रत्येक समूह या समाज में अन्य समूहों, जातियों, वर्गों या देशों के बारे में कुछ-नकुछ अनुकूल एवं प्रतिकूल धारणाएँ प्रचलन में होती हैं। उनका पीढ़ीदर-पीढ़ी हस्तान्तरण होता रहता है। इससे रूढ़ियुक्तियों का प्रभाव बना रहता है।
(7) कटु अनुभव (Bitter experiences)—रूढ़ियुक्तियों का निर्माण व्यक्ति को होने वाले कटु या असुखद अनुभवों द्वारा भी होता है। यदि व्यक्ति को किसी से कोई कष्ट पहुँचता है, तो वह उसके और उसके समूह (जाति) के बारे में अनेक नकारात्मक रूढ़ियुक्तियाँ बना लेगा ।
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