ललित कलाओं के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
ललित कलाओं के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर— ललित कलाओं का महत्त्व – किसी देश की सभ्यता उसकी ललित कलाओं पर अधिक आधारित होती है। किसी देश के नागरिकों को जब शिक्षा रचनात्मक कार्यों और कला के विकास के समुचित अवसर मिले तो वहाँ की सभ्यता तथा संस्कृति का विकास भी अवश्य होता है जिससे समाज एवं देश के नागरिकों का नैतिक स्तर ऊँचा हो, उनमें उचित अनुशासन हो, वहाँ की सभ्यता, संस्कृति का स्तर भी ऊँचा होता है।
कला द्वारा ही मानव का उत्थान किया जा सकता है। इन विराट विश्व की सर्जना शक्तिरूपी कला सृष्टि के समस्त पदार्थों में अपने विभिन्न रूपों में व्याप्त है। वह अनन्तरूपा है और इसके इन अनन्त रूपों की अभिव्यक्ति एवं निष्पत्ति का आधार कलाकार ( परमेश्वर) है। सभी महान् कलाकारों, तत्त्वविदों, साहित्यकारों ने विभिन्न मार्गों को अपनाकर उसी एकमेव लक्ष्य की खोज की । विभिन्न युगों में कला के रूप की परिकल्पना विभिन्न दृष्टिकोणों से होती रही है ।
कला का स्वरूप प्राचीन काल की कलाओं से हमेशा अलग है। शिल्प तथा कला-विषयक ग्रन्थों में कला को ‘हस्तकौशल’, ‘चमत्कार प्रदर्शन’, अथवा ‘वैचित्र्य’ इत्यादि संज्ञाएँ प्राप्त थीं। इन्हें साहित्य से भिन्न दृष्टि से देखा जाता था। इसको वस्तु का रूप संवारने वाली विशेषता कहा गया है। जैसा कि क्षेमराज़ की ‘शिवसूत्र विभर्षिणी’ से स्पष्ट है“कलयति स्वरूप आवेशयत्रि वस्तूनि वा ।” किन्तु परवर्ती युगों और विशेष रूप से वर्तमान समय में कला के जिस रूप को स्वीकृत किया गया है, वह न तो ‘वैचित्र्य’ या ‘हस्तकौशल’ तक ही सीमित है और न उसका उद्देश्य ‘वस्तु संवारना’ मात्र है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here