लिंग तथा लैंगिकता के अर्थ को स्पष्ट कीजिये । लिंग तथा लैंगिकता के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य के महत्त्व का वर्णन कीजिए ।

लिंग तथा लैंगिकता के अर्थ को स्पष्ट कीजिये । लिंग तथा लैंगिकता के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य के महत्त्व का वर्णन कीजिए ।

उत्तर – लिंग तथा लैंगिकता हेतु आंग्ल भाषा में Gender तथा Sex शब्दों का प्रयोग किया जाता है। लिंग का प्रयोग हम व्यक्तियों तथा आस-पास की वस्तुओं के नामों से भी प्रयुक्त करते हैं। ईश्वर ने मनुष्य के दो रूप सृष्टि के समुचित परिचालन हेतु बनाये, जिसमें एक है स्त्री और दूसरा है पुरुष । स्त्री तथा पुरुष ही अपनी प्रारम्भ अवस्था में बालिका और बालक से सम्बोधित किये जाते हैं ।

व्याकरणिक दृष्टिकोण से यदि देखा जाये तो संस्कृत में तीन लिंग हैं—
(i) स्त्रीलिंग – स्त्रीपुरुष
बोधक
(ii) पुल्लिंग – पुरुषबोधक
(iii) नपुंसकलिंग — स्त्री तथा पुरुष से अतिरिक्त हेतु ।
हिन्दी व्याकरण में भी तीन लिंग तथा अंग्रेजी ग्रामर में भी तीन लिंग प्राप्त होते हैं। इस प्रकार व्याकरण की शब्दावली में जिससे किसी के स्त्री-पुरुष या उससे अतिरिक्त होने का बोध हो, वह लिंग कहलाता है।
जैविक रूप से लिंग के निर्धारण को इस प्रकार देखा जा सकता है—
  पुरुष गुणसूत्र          महिला गुणसूत्र               लिंग
                                                                                         XX         +            XX                =        बालिक|
         XY         +             XX.              =         बालक
इस प्रकार बालक तथा बालिका के लिंग के निर्धारण का कारण न तो स्वैच्छिक है और न ही इस हेतु केवल स्त्री ही उत्तरदायी है, अपितु यह प्रक्रिया अनैच्छिक है। जैविक रूप से लिंग को परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि जब स्त्री तथा पुरुष के XX गुणसूत्र परस्पर मिलते हैं तब बालिका और जब स्त्री के XX गुणसूत्रों के साथ पुरुष के XY गुणसूत्र मिलते हैं तो बालक का लिंग निर्मित होता है।
लिंग से ही मिलता-जुलता शब्द है लैंगिकता अथवा कामुकता । सृष्टि की प्रक्रिया के सुचारु रूप से चलते रहने हेतु काम की भावना ईश्वर ने प्रत्येक जीवन को प्रदान की जो विपरीत लिंग के संघर्ष से पूर्ण होकर अपनी भाँति के किसी नये जीवन का विकास करती है। इस प्रकार अपने व्यापक अर्थ में लैंगिकता से तात्पर्य किसी लिंग के प्रति आकर्षक, अवबोध भेदभाव, सम्पर्क, सहयोग इत्यादि से है।
लिंग तथा लैंगिकता के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य —  इसको निम्न बिन्दुओं के आधार पर समझाया जा सकता है–
(1) स्वस्थ लैंगिक विकास हेतु —  लिंग तथा लैंगिकता के नवज प का महव तथ वशयक बक तथ बाकि में स्वस्थ लैंगिक विकास के लिए भी है, क्योंकि मनोविज्ञान प्रत्येक व्यक्ति, चाहे बालक हो या बालिका, उसको महत्व प्रदान करता है। इस प्रकार स्वस्थ लैंगिक दृष्टिकोण और लैंगिकता की भावना का विकास होता है।
(2) चारित्रिक विकास एवं व्यक्तित्व निर्माण हेतु —  मनोविज्ञान व्यक्ति के व्यक्तित्व का सूक्ष्मता से अवलोकन करता है और चरित्र के विकास पर भी बल देता है। लिंग तथा लैंगिकता के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य के अन्तर्गत हम पाते हैं कि लिंग तथा लैंगिकता के आधार पर बालक तथा बालिकाओं के व्यक्तित्व में अलग-अलग गुणों तथा चारित्रिक गुण भी पाये जाते हैं जिनका अध्ययन मनोविज्ञान के द्वारा किया जाता है।
(3) मानवता के विकास हेतु — मानवता के विकास पर लिंग तथा लैंगिकता का प्रभाव पड़ता है। बालक और बालिकाओं में पाये जाने वाले मानवीय गुण भिन्न होते हैं, क्योंकि दोनों के व्यवहार, पालन-पोषण तथा पारिवारिक सीख में लिंग के आधार पर ज्ञान प्रदान किया जाता है।
(4) अभिवृद्धि तथा विकास हेतु — लिंग तथा लैंगिकता का सम्प्रत्यय बालकों तथा बालिकाओं की अभिवृद्धि तथा विकास की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है जिसका अध्ययन मनोविज्ञान के द्वारा किया जाता है।
अभिवृद्धि-कोशिकाओं में होने बांली गुणात्मक वृद्धि ही अभिवृद्धि कहलाती है, जैसे-ऊँचाई, भार, चौड़ाई, हाथ-पैर तथा बाल इत्यादि का बढ़ना।
फ्रैंक के अनुसार, “कोशीय गुणात्मक वृद्धि ही अभिवृद्धि है।”
विकास— सम्पूर्ण आकृति या रूप में परिवर्तन ही विकास है। विकास के कारण बालक की कार्य क्षमता तथा कुशलता में वृद्धि होती है। उदाहरणस्वरूप, पैरों की वृद्धि, धड़ की वृद्धि अभिवृद्धि है।
हरलॉक के शब्दानुसार, विकास, अभिवृद्धि तक ही सीमित नहीं है। इसकी उपेक्षा इसमें परिपक्वावस्था के लक्ष्य की ओर, परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है।
अभिवृद्धि तथा विकास के मनोवैज्ञानिक पक्ष का लिंग तथा लैंगिकता के परिप्रेक्ष्य में महत्व तथा प्रभाव यह है कि अभिवृद्धि और विकास की प्रक्रिया का बालक तथा बालिकाओं पर प्रभाव अलग-अलग पड़ता है, जैसे-बालिकाओं की शारीरिक अभिवृत्ति किशोर वय में बालकों की अपेक्षा तीव्रता से होती है और मानसिक विकास व्यावहारिक विकास की दृष्टि से भी वे शीघ्र ही परिपक्व हो जाती है। लैंगिक भेद के कारण बालकों में अभिवृद्धि तथा विकास की प्रक्रिया बालिकाओं से भिन्न पायी जाती है।
(5) आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण हेतु– मनोविज्ञान लिंग के आधार पर व्यक्ति विशेष की मानसिक प्रवृत्तियों का अध्ययन करता है। बालक तथा बालिकाओं में कुछ आपराधिक प्रवृत्तियाँ होती है, जिनका अध्ययन मनोविज्ञान के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। लिंग तथा लैंगिकता की समस्याओं का अध्ययन तथा उसके उचित समाधानों का प्रस्तुतीकरण किया जाता है।
(6) अधिगम हेतु– लिंग तथा लैंगिकता का प्रभाव अधिगम पर पड़ता है। अधिगम में व्यक्तिगत विभिन्नता पर महत्त्व दिया जाता है तथा बालक तथा बालिकाओं में अधिगम हेतु अलग-अलग अभिरुचियों तथा रुचियों इत्यादि पर मनोविज्ञान बल देता है। मनोविज्ञान सीखने के नियमों द्वारा अधिगम को प्रभावी बनाने हेतु सुझाव देता है।
(7) रुचि तथा व्यक्तिगत विभिन्नता हेतु–  बालक तथा बालकों की रुचि और प्रत्येक व्यक्ति की व्यक्तिगत भिन्नता को मनोविज्ञान में महत्त्व प्रदान किया जाता है और लिंग तथा लैंगिकता के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि बालक तथा बालिकाओं दोनों की रुचियों तथा व्यक्तिगत विभिन्नता को दृष्टिगत रखते हुए उनका विकास किया जाये और बालक तथा बालिकाओं दोनों को ही विकास करने के पर्याप्त अवसर प्राप्त होते हैं।
(8) मानव व्यवहारों के ज्ञान हेतु – मनोविज्ञान के द्वारा मानव व्यवहारों का सूक्ष्म अध्ययन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। बालक तथा बालिकाओं की आयु तथा उस आयु विशेष में उनके व्यवहारों और उनमें होने वाले अपेक्षित परिवर्तनों का अध्ययन भी प्रस्तुत किया जाता है, जिससे लिंग तथा लैंगिकता की दृष्टि से मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं ।
(9) निर्देशन एवं परामर्श हेतु– लिंग तथा लैंगिकता के कारण उपजने वाली समस्याओं, शंकाओं और उनके समुचित निदान की आवश्यकता अत्यधिक होती है। अतः इस हेतु मनोविज्ञान निर्देशन एवं परामर्श पर बल देता है। अतः इस प्रकार भी लिंग तथा लैंगिकता के परिप्रेक्ष्य में मनोविज्ञान महत्त्वपूर्ण हैं
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