लिंग संवेदीकरण और शिक्षा पर टिप्पणी लिखिए ।

लिंग संवेदीकरण और शिक्षा पर टिप्पणी लिखिए ।

उत्तर – लिंग संवेदीकरण और शिक्षा – लिंग संवेदना लिंग से सम्बन्धित मुद्दों तथा विभिन्न सामाजिक स्थितियों और लिंग सम्बन्धी भूमिकाओं के कारण उत्पन्न हुई स्त्रियों की धारणाओं और रुचियों को पहचानने की योग्यता है। समाज की संरचना, संगठन और व्यवस्था में लिंग की समानता और असमानता का विशेष महत्त्व है। लिंग की असमानता समाज की सन्तुलन व्यवस्था और विकास को प्रभावित करती है। पुरुषों और स्त्रियों को विकास हेतु पर्याप्त समान अवसर प्राप्त न होने की स्थिति को लिंगीय असमानता कहा जाता है। वर्तमान युग में विश्व में लिंगीय समानता की स्थापना को सर्वाधिक प्राथमिकता दी जा रही है तथा मानवाधिकार संरक्षण के समर्थकों ने स्त्रियों के प्रति होने वाले किसी भी प्रकार के अन्याय, शोषण, अत्याचार तथा भेदभाव का अधिकाधिक विरोध करना प्रारम्भ किया है। पश्चिम से शुरू हुए नारी स्वतंत्रता आन्दोलन ने आज सम्पूर्ण विश्व की महिलाओं को आन्दोलित किया है तथा उनमें व्यापक रूप से सामाजिक एवं राजनैतिक जागरूकता उत्पन्न की है।
विश्व के विकसित देशों में लिंगीय समानता जहाँ वास्तविकता का रूप ले रही है, विकासशील एवं अविकसित देशों में अभी भी यह कोरे आदर्श के रूप में ही स्वीकृत है और अभी पुरुषों की बराबरी करने में महिलाओं को काफी समय लगेगा।
पिछले कुछ वर्षों में सामाजिक विज्ञान में लिंग के सामाजिक पक्षों को उसके जैविकीय पक्षों से अलग कर जेण्डर के रूप में समझने और अध्ययन करने की एक नई शुरुआत हुई है। जेण्डर सम्प्रत्यय स्त्रियों और पुरुषों के बीच सामाजिक रूप से निर्मित भिन्नता के पहलुओं पर ध्यान आकर्षित करता है। किन्तु आजकल जेण्डर का प्रयोग व्यक्तिगत पहचान और व्यक्तित्व को इंगित करने के लिए नहीं किया जाता, अपितु प्रतीकात्मक स्तर पर इसका प्रयोग सांस्कृतिक आदर्शों तथा पुरुषत्व एवं स्त्रीत्व संबंधी रूढ़िवद्ध धारणाओं और संरचनात्मक अर्थों में संस्थाओं और संगठनों में लिंग भेद के रूप में भी किया जाता है।
लिंग भेद हमारी व्यवस्था का प्रमुख अंग है। परिवार में लड़की एवं लड़के के पालन पोषण में भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है। जैसाकि हम जानते हैं कि लिंग से सम्बन्धित भूमिकाएँ परिवार, माता-पिता, समाज आदि के द्वारा अधिगमित होती हैं। सामान्यतया यह देखा गया कि बालिकाएँ व स्त्रियों का स्वसम्प्रत्यय नकारात्मक होता है। वे आपने आपको आवश्यक, महत्त्वपूर्ण एवं मूल्यवान नहीं समझती हैं। हमारी संस्कृति में बच्चों के साथ उनके लिंग के आधार पर व्यवहार किया जाता है।
परिवार में बालकों को बालिकाओं की अपेक्षा अधिक महत्त्व दिया जाता है। बालिकाएँ ये देखते हुए ही बड़ी होती हैं कि हमारे घरों, रीतिरिवाजों त्यौहारों आदि में अतिमहत्त्वपूर्ण पुरुष ही होते हैं। जैसे कि छोटी लड़कियाँ अच्छे पति प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं, स्त्रियाँ अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती हैं, पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। हमारे कई त्यौहारों जैसे रक्षाबंधन, भाईदूज आदि में भी केन्द्रित पात्र भाई अर्थात् लड़का ही होता है। इस भेदभावपूर्ण व्यवहार के कारण बालिकाओं के सर्वांगीण विकास में बाधा पहुँचती है। पुरुष प्रधान समाज होने से स्त्रियाँ अपने निर्णय स्वयं नहीं ले पाती हैं। स्त्रियों में बचपन से ही असुरक्षा एवं हीन भावना का विकास हो जाता है। शिक्षा के अभाव व भेदभाव के कारण हीनता की भावना उनके स्वभाव का स्थाई लक्षण बन जाती है।
अतः वर्तमान में आवश्यकता है कि लिंग भेद को समाप्त कर स्त्रियों के अन्दर स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता एवं अपने अधिकारों के प्रति सजगता की भावना का विकास किया जाए। यह कार्य शिक्षा में व्याप्त असमानता को दूर कर तथा लिंग संवेदी अध्यापन-अधिगम को बढ़ावा देकर किया जा सकता है।
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