लेख की संरचना का विश्लेषण किस प्रकार किया जाता है ? बताइए।
लेख की संरचना का विश्लेषण किस प्रकार किया जाता है ? बताइए।
उत्तर— लेख की संरचना का विश्लेषण करते समय छात्राध्यापकों को समूह में कार्य करने के लिए ही निर्देशित करना चाहिए। इससे विचारों का आदान-प्रदान होगा तथा एक शैक्षिक वातावरण का निर्माण होगा। छात्राध्यापकों को एक-दूसरे के अनुभवों का लाभ होगा वहीं उनमें जोश और क्रियाशीलता भी बनी रहेगी। इससे कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न होगा।
लेख की संरचना का विश्लेषण निम्न आधार पर किया जा सकता है—
(1) प्रस्तुतीकरण—पत्रकारिता लेखन करते समय लेखों को आलोचनात्मक दृष्टिकोण से पढ़ना चाहिए। लेख को यदि आलोचनात्मक दृष्टिकोण से पढ़ा जाता है तो प्रस्तुतीकरण करने से पूर्व उसकी सभी कमियों को दूर किया जा सकता है। लेख का प्रस्तुतीकरण बहुत महत्त्व रखता है। लेख सारगर्भित हो और उसमें किसी प्रकार की कमी न रह जाए इसके लिए उसके आकार, तथ्यों आदि का एक समालोचक के रूप में मूल्यांकन करना जरूरी है । लेख कैसा, किन विचारों का पोषक है, उसमें दिए गए तथ्य वास्तविक हों, किसी प्रकार के विवाद की गुंजाइश न हो, इस प्रकार कई प्रश्न होते हैं जो लेख के प्रस्तुतीकण से पूर्व देखे जाते हैं। लेख का प्रस्तुतीकरण करने से पूर्व उसकी सभी समस्याओं, तथ्यों का एक समालोचक के रूप में अध्ययन करना आवश्यक है। क्योंकि समालोचक के रूप में ही हम किसी लेख की कमियों को ज्ञात कर सकते हैं और उसे बेहतर बनाने का प्रयास कर सकते हैं ।
(2) स्थानीय रुचियों के प्रकरणों पर लेख का अन्वेषण एवं लेखन— पत्रकारिता लेखन में अधिकतर प्रकरण स्थानीय रुचियों पर आधारित रहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की रुचि भिन्न होती है परन्तु कुछ प्रकरणों पर स्थानीय समस्याओं से रुचि सम्बन्धित हो जाती है और यदि किसी लेख में उन्हीं रुचियों के प्रकरणों पर लेख लिखा जाता है तो सभी के ध्यान का वह पात्र बन जाता है। अधिकांश स्थानीय रुचियों के प्रकरणों पर खोज के आधार पर लेख लिखे जाते हैं जिससे सभी उनकी सच्चाई तक पहुँच सकें। कभी-कभी स्थानीय रुचियों पर मैंग्जीन भी निकाली जाती है; जैसे—खेल पर तथा समसामयिक घटनाओं पर मैंग्जीन ।
पत्रकारिता लेखन में लेख चाहे मैंग्जीन में दिया जा रहा हो या समाचार-पत्र में ऐसे प्रकरणों की खोज छात्रों को करनी चाहिए जो स्थानीय रुचियों से जुड़े हों और उन पर लेख लिखने चाहिए।
(3) पक्षपात की सम्भावना—पत्रकारिता लेखन में लेख लिखते समय पक्षपात की अधिक सम्भावना होती है। एक लेखक स्वयं किसीन-किसी राजनीतिक विचारधारा से जुड़ा होता है। वह किसी समुदाय, जाति अथवा जेण्डर से भी जुड़ा होता है। लेखों में कई बार उसी की विचारधारा, समुदाय, जाति अथवा जेण्डर से सम्बन्धित विषय सामग्री हो
सकती है । लेखक के लेख पर उसके विचारों का प्रभाव पड़ जाने की सम्भावना होती है। इस प्रकार तथ्यों का प्रस्तुतीकरण करते समय वह पक्षपात से प्रभावित होकर कार्य कर सकता है। लेखों में सत्यता तथा निर्भीकता का भाव निहित होना चाहिए।
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