‘लैंगिकता’ पर एक विस्तृत लेख लिखिए । —

‘लैंगिकता’ पर एक विस्तृत लेख लिखिए । —

उत्तर – लैंगिकता – लैंगिकता एक प्राकृतिक एवं स्वाभाविक क्रिया है । यह स्वाभाविक प्रवृत्ति मनुष्यों के विचारों एवं भावनाओं पर निर्भर होती है। लैंगिकता पुरुष एवं महिला के विचारों, कल्पनाओं एवं इच्छाओं, विश्वासों, दृष्टिकोणों, मूल्यों, व्यवहारों, प्रथाओं एवं रीति-रिवाजों सहित विभिन्न तरीकों से व्यक्त किया जा सकता है। लैंगिकता जैविक, शारीरिक, भावनात्मक सामाजिक एवं आध्यात्मिक पहलुओं के रूप में प्रकट हो सकता है। बहुत सीमा तक लैंगिकता हमारी इन्द्रियों पर निर्भर करता है एवं इसका प्रभाव सांस्कृतिक, नैतिक, धार्मिक आदि सभी पहलुओं पर दृष्टिगोचर होता है ।

संक्षेप में व्यक्ति का विश्वास, कार्य लगाव एवं दूसरों के प्रति प्रतिक्रिया ही लैंगिकता का भाग है। इसका तात्पर्य यह है कि व्यक्ति क्या करना चाहता है या नहीं चाहता है तथा उसके विचारों की सोच बालकों की लैंगिकता पर गहरा प्रभाव डालता है। जो आप एक व्यक्ति के रूप में कर रहे हैं वह लैंगिकता का ही एक हिस्सा है। व्यक्ति अपने शरीर के बारे में कैसा अनुभव कर रहा है। व्यक्ति का आपसी सम्बन्ध, अपनी पोशाक जिस तरह के मार्ग का चयन करता है तथा जिस तरह से बातें करता है, जिस तरह के नियमों का पालन करते हैं या दूसरे लोग किसी व्यक्ति को कितना आकर्षित करते हैं यह सब लैंगिकता की पहचान है।
प्रत्येक व्यक्ति का दूसरों के प्रति लैंगिकता व्यक्त करने का अपना तरीका होता है। लैंगिकता सम्पूर्ण जीवन का एक भाग है जिसे व्यक्ति अपनी उम्र एवं जीवन स्तर के आधार पर व्यक्त कर सकता है एवं बदलाव भी ला सकता है।
लैंगिकता को परिभाषित करने वाले महत्वपूर्ण बिन्दु लैंगिकता को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर परिभाषित किया जा सकता
(1) में लिंग पहचान की मूल भावना निहित होती है कि कोई व्यक्ति पुरुष है या स्त्री है।
(2) लैंगिकता में लिंग भूमिका (स्त्री एवं पुरुष को कैसा व्यवहार करना चाहिए के विचार) सम्मिलित है।
(3) लैंगिकता में लिंग अभिविन्यास भी सम्मिलित है।
(4) लैंगिकता में शारीरिक अंगों को सम्मिलित किया जाता है।
(5) लैंगिकता में लिंग अनुभव विचार एवं कल्पनाएँ भी सम्मिलित है।
(6) लैंगिकता में अन्तरंगता, स्पर्श, करुणा, आनन्द एवं दुःख का अनुभव भी सम्मिलित हैं।
(7) व्यक्ति के बोलने, उठने, बैठने मुस्कराने, गणवेश एवं नृत्य आदि से लैंगिकता परिलक्षित होती है।
लैंगिकता की पहचान —लैंगिकता की पहचान के लिए कुछ साधारण नामों का प्रयोग किया जा रहा है। लैंगिकता को सेक्स के रूप में नहीं परिभाषित किया जा सकता है बल्कि लैंगिकता की समझ के लिए व्यक्ति अपने विषय में कैसा महसूस कर रहा है तथा वह अपनी पहचान को किस रूप में चयनित करता है, इस पर निर्भर होता है। स्त्री या पुरुष बालक या बालिका नाम दिया गया है। लैंगिकता में कुछ लोग समलैंगिक को आकर्षित करते हैं तो कुछ लोग विषम लिंगी से आकर्षित होते हैं। इस प्रकार लैंगिकता की पहचान की जा सकती है। प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वह स्त्री हो या पुरुष उसे अपनी लैंगिकता या लिंग की पहचान के बारे में निर्णय लेने का अधिकार है। इसका तात्पर्य यह है कि प्रत्येक स्त्री एवं पुरुष को यह निर्णय लेने का अधिकार है कि कौनसा कार्य उन्हें एक साथ मिलकर करना है तथा कौनसा कार्य अलग-अलग करना ठीक होगा।
इस प्रकार लैंगिकता, सेक्स एवं लिंग की विविधता मानव अनुभव का एक महत्त्वपूर्ण स्वाभाविक एवं सामान्य हिस्सा है। इसलिए मानव समूह को आत्म-सम्मान एवं लोगों की लैंगिकता के विषय में सकारात्मक होना चाहिए तथा एक सुरक्षित, आयु सहमति एवं जिम्मेदार तरीके से अपनी लैंगिकता की पहचान के आधार पर अपने अधिकारों का समर्थन करना चाहिए।
लैंगिकता के प्रकार—लैंगिकता की पहचान के आधार पर लैंगिकता को मुख्य रूप से निम्नलिखित सात प्रकारों में बाँटा जा सकता है—
(1) हेटेरोसेक्सुअलिटी- लैंगिकता के इस प्रकार में पुरुष एवं महिला विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित होते हैं। इसमें पुरुष महिला वर्ग के एवं महिला पुरुष वर्ग के प्रति आकर्षित होते हैं। इस प्रकार इसे विषम लैंगिकता भी कहते हैं ।
( 2 ) होमोसेक्सुअलिटी— होमोसेक्सुअलिटी में पुरुष, पुरुष वर्ग के प्रति तथा महिला महिला वर्ग के ही प्रति आकर्षित होते हैं । इस प्रकार की लैंगिकता में अपने ही लिंग के लोगों के बीच आकर्षण अधिक होता है।
( 3 ) बाइसेक्सुअलिटी–उभय लैंगिकता में पुरुष वर्ग पुरुष एवं महिला दोनों वर्गों की लैंगिकता के प्रति आकर्षित होते हैं तथा महिला वर्ग भी महिला एवं पुरुष दोनों वर्गों की लैंगिकता को पसन्द करती तथा एकलिंगी के प्रति भी इनमें लैंगिक आकर्षण होता है।
(4) असेक्सुअलिटी—इसे अलैंगिकता या Non-sexuality भी कहते हैं। इसमें स्त्री या पुरुष वर्ग में समलिंगी या विषमलिंगी दोनों के प्रति लैंगिक रुचि का अभाव होता है। इसीलिए इसे असेक्सुअलिटी के रूप में जाना जाता है।
( 5 ) पॉली सेक्सुअलिटी–इस लैंगिकता का आकर्षण बहुलिंगी के प्रति होता है लेकिन ये अपनी इच्छा किसी के प्रति व्यक्त नहीं करते हैं इसलिए उभयलिंगी के रूप में इनकी पहचान की जाती है। ये पेन सेक्सुअलिटी से भिन्न होते हैं। कभी-कभी पेन सेक्सुअलिटी एवं पॉलीसेक्सुअलिटी में भ्रम हो जाता है। पेन सेक्सुअलिटी का आकर्षण सभी के प्रति होता है जबकि पॉली सेक्सुअलिटी का आकर्षण सभी लोगों में न होकर बहुत लोगों के प्रति होता है।
( 6 ) पेन सेक्सुअलिटी–पेन सेक्सुअलिटी को omni-sexuality के रूप में भी जाना जाता है जिसका अभिप्राय है कि इस लैंगिकता का प्रति होता है लेकिन दूसरी तरफ दो बाइनरी अंगों के आकर्षण सभी के कारण इनके प्रति सभी के आकर्षण नगण्य होते हैं। इसलिए अंधों की तरह ये अपनी लैंगिकता के प्रति स्वयं आकर्षित होते हैं।
( 7 ) ट्रांस सेक्सुअलिटी – जब कोई व्यक्ति स्वयं अपनी पहचान को भौतिक लैंगिकता से अलग जैविक रूप से प्रदर्शित करना चाहता है लेकिन विपरीत लिंगी होने के कारण वह कठिनाइयों का अनुभव करता है। इसका निदान चिकित्सीय सुविधा द्वारा किया जाता है। उदाहरण के लिए एक पुरुष का महिला के रूप में या महिला का पुरुष के रूप में परिवर्तन असहज है। यदि किसी व्यक्ति में द्विलैंगिकता है तो उसका निदान चिकित्सीय सुविधा के द्वारा किया जा सकता है लेकिन इसकी प्रक्रिया लम्बी एवं महँगी है ।
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