वन विनाश के कारणों का उल्लेख कीजिए और उनके उत्तम प्रबन्ध के लिए सुझाव दीजिए |
वन विनाश के कारणों का उल्लेख कीजिए और उनके उत्तम प्रबन्ध के लिए सुझाव दीजिए |
उत्तर— वन विनाश के पीछे बढ़ती जनसंख्या का दबाव और उसके साथ ही निरन्तर बढ़ते पशुधन को ही स्वीकार करना होगा । जहाँ भोजन पकाने के लिए ईंधन और शव-दाह के लिए लकड़ी की आवश्यकता के लिए वन कटे वही पशुओं के चारे के लिए भी जंगल साफ हो गये। जितने वन कटे, उस अनुपात में वृक्षारोपण नहीं हुआ और परिणाम यह निकला कि वन क्षेत्रों का निरन्तर ह्रास होता रहा। वन विनाश के प्रमुख कारण निम्न हैं—
(1) औद्योगिक क्रान्ति – वन क्षेत्रों के विनाश के लिए देश की औद्योगिक क्रान्ति भी उत्तरदायी रही है। एक ओर जहाँ कारखाने चलाने के लिए ईंधन के रूप में वनों का प्रयोग हुआ वहीं कच्चे माल की पूर्ति हेतु भी यही जंगल काम में आये । खेल का सामान, बच्चों के खिलौने, रेल के स्लीपर और डिब्बे, कृषि के औजार । गाँवों में खेती के लिए हल और अनाज ढोने की गाड़ियाँ, शहरों में धनाढ्यों के ड्राइंग रूपों की साज-सज्जा और बनावटी दीवारें तथा छतें आदि न जाने कितने चाहे-अनचाहे लकड़ी के प्रयोग में वनों के उन्मूलन को बढ़ावा दिया।
(2) बढ़ती आबादी — आबादी बढ़ी, भोजन के लिए अन्न की अधिक उपज आवश्यक थी, वन काट कर खेत बना दिये गये। पानी की कमीपूर्ति के लिए बांध बनाये, अनेक जंगल समाप्त कर दिये गये। आवास हेतु मकानों की आवश्यकता हुई तो गाँव और कस्बे के आसपास के पेड़ युक्त स्थानों पर गाज गिरी। कल्याणकारी राज्य की जनता को मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति की नीति ने यह विनाश लीला अप्रत्यक्ष रूप से ही कर डाली जिसके परिणामस्वरूप वनों का उन्मूलन बढ़ता गया।
(3) लकड़ी का उपयोग – लकड़ी का इमारती उपयोग तथा फर्नीचर और अन्य सुख-सुविधा के लिए लकड़ी की आवश्यकता के लिए भी वनों को नष्ट किया। जहाँ बिना लकड़ी के भी काम चल सकता था वहाँ पर भी शान-शौकत के नाम पर लकड़ी का उपयोग हुआ और एक दूसरे की होड़ ने इसे और बढ़ावा दिया ।
(4) पानी का दुरुपयोग – पानी के अन्धाधुन्ध उपयोग तथा दुरुपयोग से भी वृक्षों पर संकट आया। सतही जल के अतिरिक्त भूमिगत पानी के उपयोग से भूमिगत जल की गहराई दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई और वृक्षों की जड़ों को पानी की कमी ने हिला दिया। बड़े-बड़े वृक्ष सूख गये, नष्ट हो गये और इसका सीधा असर वन क्षेत्रों पर पड़ा। इसके अतिरिक्त भी जो भी काम प्रकृति के अनुकूल नहीं किये गये अथवा जहाँ भी प्रकृति से छेड़छाड़ की उसका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष प्रभाव वनों पर पड़ा।
वनों का प्रबन्ध तथा संरक्षण – वनों के दुरुपयोग एवं उन्हें क्षय से बचाने के लिए वन संरक्षण अनिवार्य है। वनों के संरक्षण से तात्पर्य समस्त पेड़-पौधों से है। मानव जीवन के लिए वनों के महत्त्व को देखते हुए हमें किसी भी मूल्य पर इन्हें संरक्षण प्रदान करना चाहिए। वास्तव में वनों को फसल के रूप में मानना आवश्यक है अर्थात् फसलों की तरह वनों से वृक्ष को काटने के साथ कटे हुए वृक्षों के स्थान पर नवीन वृक्षारोपण करना चाहिए। वन संरक्षण से वन सम्पत्ति अक्षय बनी रहती है तथा उससे निरन्तर अधिकाधिक लाभ प्राप्त होते रहते हैं । वन संरक्षण के कुछ महत्त्वपूर्ण उपाय निम्नलिखित हैं—
(1) वनों की अविवेकपूर्ण कटाई पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए।
(2) जिन स्थानों पर विशेष परिस्थितियों में वन काटना अनिवार्य हो उस स्थान पर कटे हुए वृक्षों की जगह नवीन वृक्षारोपण करना चाहिए ।
(3) वनों द्वारा वैज्ञानिक विधि से लकड़ी काटना और निकालना चाहिए।
(4) वनों से केवल ऐसे ही पेड़ों को काटना चाहिए जो पूर्णतया परिपक्व हो चुके हैं तथा जिनका भविष्य में विकास सम्भव नहीं है ।
(5) वन संरक्षण के लिए चयनात्मक कटाई अनिवार्य है जिसके अन्तर्गत परिपक्व पेड़ों के साथ-साथ सघनता को कम करने के लिए नये पेड़-पौधों को भी काटने की आवश्यकता पड़ती है जिससे दूसरे पेड़-पौधे पूर्णतः विकसित हो सकें।
(6) शिफ्टिंग खेती पद्धति अथवा झूम खेती पद्धति पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए।
(7) नये लगाये वृक्षों अथवा वनों की सुरक्षा का समुचित प्रबन्ध करना चाहिए।
(8) जंगलों को आग से बचाने के लिए समुचित प्रबन्ध करना चाहिए।
(9) वनों के वृक्षों को विशेषज्ञों द्वारा निश्चित अन्तराल के पश्चात् निरीक्षण करवाना चाहिए। इनके विकास के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ उपलब्ध करनी चाहिए।
(10) वनों को आग से बचाने के लिए उसके बीच में ऊँचे स्थानों पर संचार सुविधाओं से युक्त परीक्षण गृहों की स्थापना करनी चाहिए।
(11) वनों से ऐसे पेड़-पौधों की कटाई भी अनिवार्य है जिन पर रोग का भयंकर प्रभाव होता है और उनके द्वारा समीप के अन्य पेड़-पौधों को प्रभावित होने की प्रबल सम्भावना होती है ।
(12) वनों के संरक्षण के लिए हानिकारक, विकृत, अनावश्यक अधिक स्थान घेरने वाले पेड़-पौधे की कटाई एवं छँटाई भी आवश्यक है ।
(13) पेड़ों में लगने वाले कीटों, दीमकों एवं अन्य बीमारियों की रोकथाम के लिए पूर्णतः सतर्क रहने की आवश्यकता है। आवश्यक कीटनाशी दवाओं का छिड़काव वाहनों एवं वायुयानों द्वारा करना चाहिए ।
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