वाणी बाधित बालकों को किस प्रकार की सुविधाएँ प्रदान कर उनके अधिगम को सुगम बनाया जा सकता है ?
वाणी बाधित बालकों को किस प्रकार की सुविधाएँ प्रदान कर उनके अधिगम को सुगम बनाया जा सकता है ?
उत्तर – वाणी बाधित बालकों को निम्न प्रकार की सुविधाएँ प्रदान कर उनके अधिगम को सुगम बनाया जा सकता है—
(1) समान कक्षा – वाणी-दोष बालकों के वाणी-दोष को ध्यान में रखकर उनको सामान्य कक्षा में पढ़ाना चाहिए ताकि वह हीनभावना से ग्रस्त न हों। अध्यापक को चाहिए कि वह वाणी-दोष बालकों के साथ समानता का ध्यान रखे तथा उसकी छोटी-छोटी आवश्यकताएँ पूरी करने में उनकी मदद करें।
(2) उचित अभ्यास – इन बालकों के वाणी-दोष जान लेने के पश्चात् इस बात पर ध्यान देना अति आवश्यक है कि उनको उचित अभ्यास करवाया जाये । प्रत्येक बालक की आवश्यकता अलग-अलग होती है अतः इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि किसको कितना अभ्यास करवाना है। उनके उच्चारण के अभ्यास पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
(3) विशेष कक्षाएँ – साधारण कक्षा में पढ़ाने के पश्चात् इनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर इनके लिए विशेष कक्षाओं का प्रबन्ध करना चाहिए। साधारणतया प्रत्येक विद्यालय में 5 से 10 तक वाणी दोष बालक होते हैं। कुछ विद्यालय के बालकों को मिलाकर किसी एक निश्चित स्थान पर इनके लिए विशेष कक्षाओं का प्रबन्ध करना चाहिए ।
(4) व्यक्तिगत ध्यान – प्रत्येक वाणी-दोष बालक पर व्यक्तिगत ध्यान देना चाहिए सामान्य कक्षाओं में ऐसे बालक मुश्किल से 1-2 होते हैं। अध्यापक का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह प्रत्येक वाणी-दोष बालक पर व्यक्तिगत ध्यान दे ।
(5) उचित जाँच – इन बालकों को शिक्षा प्रदान करने से पहले इनकी जाँच वाणी विशेषज्ञ व मनोचिकित्सक से करवानी चाहिए ताकि वाणी-दोष के कारणों का पता चल सके। इसके साथ-साथ वाणी दोष स्तर का जानना भी अति आवश्यक होता है। जाँच का कार्य बड़ी ही सावधानीपूर्वक व धैर्य से करवाना चाहिए जल्दबाजी में की गई जाँच कई बार आगे चलकर दुःखदायी बन जाती है ।
(6) प्रेरणा देना – वाणी-दोष बालकों को प्रेरणा देते रहना चाहिए उन्हें यह बताते रहना चाहिए कि तुम किसी भी प्रकार से सामान्य बालकों से कम नहीं हो। तुम उनसे अधिक बुद्धिमान तथा परिश्रमी हो । उनको इस बात के लिए भी प्रेरित करना चाहिए कि वाणी सुधार के पश्चात् तुम सामान्य बालकों से भी आगे जा सकते हो। उन्हें लगातार प्रेरित करते रहना चाहिए तथा इसके परिणामस्वरूप उनको शाबाशी देना, ईनाम आदि देते रहना चाहिए।
(7) धैर्य – वाणी-दोष दूर होने में समय लगता है अत: मातापिता को चाहिए कि धैर्य से काम लें और इस प्रकार के बालक की आवश्यकताओं को पूरा करने की कोशिश करें। जब वाणी में सुधार हो रहा हो तो माँ-बाप को चाहिए कि वह बालक को अधिक से अधिक प्रेरित करें।
(8) भय व चिन्ता से मुक्त – अधिकांश बालकों में वाणी-दोष संवेगात्मक कारणों से होता है । प्रायः 75 प्रतिशत बालक ऐसे होते हैं जो हकलाते हैं या तुतलाकर बोलते हैं । भय और चिन्ता के कारण उनकी हकलाहट या तुतलाहट बढ़ जाती है। अतः घर-परिवार के सदस्य, अध्यापक व समाज के लोगों को चाहिए कि वह इस प्रकार के बालकों को भय व चिन्ता से मुक्त रखें ताकि उनके मस्तिष्क पर कोई दबाव न रहे।
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