विद्यालयों में बच्चे के सफल समावेशन हेतु किन बिन्दुओं को अपनाया जाना आवश्यक है ?

विद्यालयों में बच्चे के सफल समावेशन हेतु किन बिन्दुओं को अपनाया जाना आवश्यक है ?

उत्तर—विद्यालयों में बच्चे के सफल समावेशन हेतु निम्न बिन्दुओं को अपनाया जाना आवश्यक है—
(1) यह निश्चित किया जाये कि 18 वर्ष की उम्र तक के · विकलांग बच्चों को शैक्षिक वातावरण उपलब्ध कराकर निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जाये एवं विकलांग बच्चों को सामान्य विद्यालयों में समेकित किया जाये। .
(2) शासकीय और निजी विद्यालयों की देशभर में स्थापना की जाये ताकि देश के किसी भी स्थान या क्षेत्र में रहने वाला विकलांग व्यक्ति विद्यालय में शिक्षा प्राप्त कर सके ।
(3) केन्द्र सरकार की शिक्षा संबंधी योजनाओं के मूल्यांकन एवं सुधार हेतु एक समिति या आयोग का अलग से गठन किया जाये ।
(4) भारतीय संस्कृति व मूल्यों के प्रति आस्था हेतु प्राथमिक स्तर पर शिक्षा मातृभाषा में ही प्रदान की जाए।
(5) विद्यालय द्वारा बच्चों को स्वयं निर्णय लेने एवं इन निर्णयों के क्रियान्वयन में सक्षम बनाया जाये क्योंकि बच्चे विद्यालय में निर्णय लेने की प्रक्रिया एवं व्यवस्था से सीखते हैं। विद्यालय विद्यार्थियों के लिए ऐसे मौके उपलब्ध करवाएँ कि बच्चे मौजूदा धारणाओं और समझ पर निर्णय ले पायें, उन्हें चुनौती दे पाएँ या उनमें कुछ नया जोड़ पाएँ ।
(6) खुले विद्यालय और विश्वविद्यालय के माध्यम से शिक्षण की व्यवस्था की जाये और कक्षा-कक्षों में एवं परिचर्चा व संवाद हेतु इलेक्ट्रॉनिक साधनों व मीडिया का अधिक से अधिक पयोग किया जाये ।
(7) ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध मानव संसाधनों का उपयोग अनौपचारिक शिक्षा के लिए किया जाये ताकि उन क्षेत्रों के निःशक्त व्यक्तियों को अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जाये।
(8) भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार हेतु विभिन्न योजनाओं की समीक्षा की जाए एवं समावेशी शिक्षा में व्याप्त समस्याओं के निराकरण हेतु आवश्यक कदम उठाये जायें।
(9) शिक्षा के व्यावसायीकरण पर रोक लगाई जाए और समावेशी विद्यालयों में विकलांग और निःशक्त विद्यार्थियों की आ श्यकता के अनुरूप ही सुविधा एवं साधनों को उपलब्ध कराया जाये, ताकि उनके शिक्षण में किसी प्रकार की बाधा न हो ।
(10) विशेष विद्यालयों में व्यावसायिक प्रशिक्षण के आवश्यक संसाधन व सुविधाएँ उपलब्ध कराये जायें तथा कक्षा आठ तक एवं 16 वर्ष या उससे अधिक आयु के विकलांग विद्यार्थियों को अंशकालीन कक्षाओं के माध्यम से अलग से विशेष शिक्षण प्रदान कर पाठ्यक्रम पूरा किया जाये ।
(11) बच्चे को परिवार विद्यालय एवं समाज से ऐसे समावेशी अनुभव, समावेशी व्यवहार समावेशी विश्वास एवं समावेशी संस्कृति उपलब्ध कराई जानी चाहिए जिससे वह एक ऐसे लोकतांत्रिक नागरिक के रूप में विकसित हो सके, जो समावेशन के मूल्यों के प्रति दृढ़ आस्था रखता हो ।
(12) सरकारी विद्यालयों के शिक्षा स्तर में सुधार हेतु एक निश्चित योजना बनाई जाए।
(13) विद्यार्थियों को आवश्यकतानुसार पाठ्यवस्तु एवं विषय सामग्री, शिक्षण विधियों तथा शिक्षण तकनीकों, कक्षाकक्ष को गतिविधियों एवं मूल्यांकन के तौर तरीकों में समायोजन करने की आवश्यकता है।
(14) प्रत्येक बच्चे को सीखने-सिखाने की एक स्वतंत्र इकाई के रूप में स्वीकार किया जाये।
(15) प्रत्येक विकलांग विद्यार्थी को उसकी विकलांगता के अनुसार आवश्यक उपकरण एवं संसाधन और शिक्षण सामग्री आदि निःशुल्क रूप से उपलब्ध करायी जाये।
(16) विद्यालयी शिक्षा प्रणाली में शामिल प्रत्येक बच्चे को उसके सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व भाषा की क्षमता, मानसिक सामर्थ्य एवं उसके सीखने के तौर तरीकों को समझना आवश्यक है। इसी समझ के आधार पर विद्यार्थियों को सीखने-सिखाने के घटकों को पहचानने में मदद मिलेगी ।
(17) सामान्यतः विद्यालयों में कुछ बच्चों को ही विभिन्न
गतिविधियों में प्रदर्शन के अवसर दिये जाते हैं। इससे इन बच्चों को ही अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिल पाता है परन्तु श्रेष्ठता एवं योग्यता को आधार बनाने के अवसर सभी बच्चों को मिलने चाहिए। इन बच्चों की विशिष्ट क्षमताओं को पहचाना जाना चाहिए और इन विशिष्ट क्षमताओं की भी प्रशंसा करनी चाहिए। यह सम्भव है कि इन बच्चों को अपना काम पूरा करने और प्रदर्शन करने के लिए अतिरिक्त समय या मदद की जरूरत होगी। समावेशन की प्रक्रिया के लिए अतिरिक्त मदद की जरूरत होगी। समावेशन की प्रक्रिया के लिए अपेक्षित धैर्य की आवश्यकता है।
(18) विद्यालयों एवं छात्रावासों में स्वास्थ्य परीक्षण को अनिवार्य किया जाये और प्राथमिक चिकित्सा कक्ष की स्थापना की जाये।
(19) शिक्षकों को नियमित प्रशिक्षण हेतु एक प्रशिक्षण संस्था की स्थापना की जाये एवं विद्यालयों में भी शैक्षिक वातावरण का सृजन किया जाए।
(20) विद्यालय में दण्ड एवं भय जहाँ एक ओर बच्चों में विद्यालय के प्रति लगाव को कम करते हैं, वहीं दूसरी तरफ बच्चों को सीखने में बाधा पहुँचाते हैं। सीखना बच्चे में विद्यालय के प्रति लगाव पैदा करने वाला सकारात्मक घटक है। अतः विद्यालयों में समावेशी माहौल बनाने के लिए शारीरिक एवं मानसिक दण्ड का कोई स्थान नहीं होना चाहिए ।
(21) विद्यालय में अनुशासन थोपने की जगह बच्चों का स्वयं अनुशासित होना जरूरी है। इसके लिए विद्यालय में इस प्रकार का वातावरण बनाया जाना चाहिए जिससे बच्चा अपने कार्य की जिम्मेदारी स्वयं लेना सीखे व दूसरों को पहुँचने वाली बाधा एवं पीड़ा को भी महसूस करना सीखें।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *