विद्यालय भवन के नियोजन एवं निर्माण में ध्यान रखने योग्य मुख्य-मुख्य बातें कौन-कौनसी हैं ?

विद्यालय भवन के नियोजन एवं निर्माण में ध्यान रखने योग्य मुख्य-मुख्य बातें कौन-कौनसी हैं ?

उत्तर—विद्यालय भवन के नियोजन एवं निर्माण में ध्यान रखने योग्य महत्त्वपूर्ण बातें निम्न हैं—
( 1 ) स्थान एवं स्वास्थ्य — स्कूल क्षेत्र का स्थान स्वास्थ्यप्रद होना चाहिए। गन्दे स्थान पर निर्मित स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रह सकता । अस्वास्थ्यप्रद एवं कुरूप स्कूल क्षेत्र का प्रभाव छात्रों के मस्तिष्क पर अवश्यम्भावी है। ऐसे बालकों पर दया आती है जो इस प्रकार के गन्दे वातावरण में अपने जीवन का एक भाग अत्यन्त अरुचिकर रूप में व्यतीत करते हैं।
इस अभिप्राय के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना आवश्यक है—
(i) पड़ोस और परिवेश— स्कूल की स्थापना कहाँ हो ? गाँव में स्कूल ऐसी जगह पर हो जो प्रायः कई गाँवों के निकट हो ताकि पासपड़ोस के सभी छात्र सुविधापूर्वक उसमें विद्याध्ययन कर सकें। खेलों तथा गतिविधियों के लिए उसमें खुले मैदान होने चाहिए।
स्कूल— क्षेत्र किसी भी सघन आबादी वाले इलाके अथवा औद्योगिक क्षेत्र में नहीं होना चाहिए। इसका सड़क के निकट होना जरूरी है ताकि बस या अन्य वाहन पर आने वाले छात्र सुगमता से पहुँच सके । इसकी स्थापना किसी शान्त और सुन्दर परिवेश में होनी चाहिए।
(ii) सम-भूमि— स्कूल क्षेत्र का स्थान कुछ ऊँचा तथा ऊपर को उठा हुआ होना चाहिए ताकि उसमें वर्षा का पानी टिक न सकें; वर्षा के पश्चात् वह भूमि शुष्क रहनी चाहिए।
(iii) दिशा — अयनवृत्त प्रदेश भारत में सूर्य की दिशा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। स्कूल भवन का मुख दक्षिण-पूर्व की ओर हो ताकि सर्दियों में सूर्य के दक्षिणायन होने के समय उसकी किरणें सीधी कमरों में प्रवेश पा सकें और गर्मियों की तपन के समय वे खिड़कियों से सीधी  प्रविष्ट न होकर कक्षा में बैठे छात्रों के लिए दुःखदायी प्रमाणित न हों। दिशाकोण 20° से 30° हो सकता है।
कक्षाओं की दिशा का प्रबंध इस तरह हो कि उसका कोई भी कोना सूर्य – प्रकाश से रहित न हो। सर्दी के दिनों में सूर्य का प्रकाश सीधा कमरों में प्रविष्ट होना चाहिए।
स्कूल भवन का अग्रभाग तथा इसका मुख्य द्वार सड़क की ओर होना चाहिए। स्कूल के बाहर किसी बड़े तख्ते पर उसका नाम मोटे अक्षरों में लिखा होना आवश्यक है। स्कूल भवन के विस्तार से खेल के मैदान में किसी भी प्रकार का अन्धकार नहीं होना चाहिए।
(iv) आकार–स्कूल-भवन का रूप कुछ भी हो सकता है, किन्तु उसका आयताकार स्वरूप अत्यन्त प्रिय है। खेल के मैदान को भी समुचित स्थान मिलना उपयुक्त है। (स्कूल भवन के रूप के संबंध में आगे विस्तार से लिखा जा रहा है।)
( 2 ) क्षेत्र–स्कूल भवन का क्षेत्र कितना होना चाहिए ? स्कूलक्षेत्र का आकार निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है—
(क) छात्रों की उपस्थित संख्या–प्रत्येक कक्ष में एक छात्र के लिए 10 वर्ग फुट स्थान सुरक्षित होना अपेक्षित है । प्रायः एक कक्षा में पच्चीस से लेकर साठ तक छात्र प्रविष्ट किए जाते हैं, अतः स्पष्ट है कि एक कक्ष का क्षेत्र 600 वर्गफीट होना चाहिए। वैसे तो प्रत्येक विद्यार्थी के लिए 15 वर्गफीट का क्षेत्र अत्यन्त समुचित माना गया है। इस कारण प्रत्येक कक्ष के फर्श का क्षेत्र उनमें प्रविष्ट छात्रों पर निर्भर करता है ।
 (ख) पाठान्तर क्रियाएँ —जिन स्कूलों के पाठ्यक्रम में समवर्ती गतिविधियों का अधिक महत्त्व है उनमें अधिक क्षेत्र की आवश्यकता है। ऐसे स्कूलों में फुटबाल, हॉकी, क्रिकेट, वॉलीबॉल, व्यायाम तथा नाटक आदि खेलने के लिए अत्यधिक क्षेत्र होना चाहिए ।
(ग) स्कूल का स्वरूप —  आवास-प्रधान स्कूल के लिए पर्याप्त क्षेत्र की आवश्यकता है, क्योंकि उसके लिए छात्रावास तथा अध्यापकवर्ग के लिए आवास-गृह आदि की जरूरत है। पब्लिक स्कूल विशेषकर सैनिक स्कूलों में एक साधारण स्कूल की अपेक्षा छात्रावास तथा पाठ्यक्रम समवर्ती गतिविधियों के लिए अधिक क्षेत्र की आवश्यकता पड़ती है । नगर के स्कूल में क्षेत्र के संबंध में अत्यन्त सीमित रहना पड़ता है ।
(घ) स्थान का भौतिक स्वरूप — पर्वतीय प्रदेशों में समतल भूमि का मिलना अत्यन्त कठिन है; अत: वहाँ खेलों एवं अन्य गतिविधियों के लिए समस्या उत्पन्न होती है किन्तु मैदानों में इस वस्तु की समस्या उत्पन्न नहीं होती।
( 3 ) वायु प्रवेश, तापमान तथा आर्द्रता —  ऐसा स्वीकार किया गया है कि स्कूल भवन में प्रत्येक छात्र को एक मिनट में 30 घनफुट वायु मिले। इसके लिये कुछ बातों को ध्यान में रखा जाना आवश्यक समझा गया है। कमरे बहुत खुले और हवादार होने के साथ-साथ कई वातायनों से युक्त हों। वायु के स्वछन्द संचालन के लिए खिड़कियों का आमने-सामने होना अपेक्षित है। खिड़कियों के अतिरिक्त कमरों में रोशनदान हों ताकि गन्दी हवा का निकास हो और ताजा हवा के भीतर आने में सुविधा प्रतीत हो । कृत्रिम प्रकाश का प्रबंध उसी समय ठीक है जब प्राकृतिक प्रकाश अपर्याप्त हो ।
( 4 ) प्राकृतिक दृश्य तथा सजावट-छात्रों में रसात्मकता उत्पन्न करने के हेतु यह आवश्यक है कि उनका परिवेश अत्यन्त उल्लासमय तथा आनंदमय हो । स्कूल भवन का अपने स्वरूप और कला में सुन्दर होना अत्यन्त आवश्यक है। कई ऐसे स्कूल हैं जो दूर से दुर्भाग्यवश असुन्दर और शून्य जैसे दिखाई देते हैं। स्कूल भवन को सुन्दर बनाने का प्रयास किया जाए जिसके लिए छात्रों को नियुक्त किया जा सकता है। यह कार्यक्रम इस भांति कार्यान्वित हो सकता है ।
(अ) आने-जाने के लिए निर्दिष्ट मार्गों का ईंटों द्वारा अंकन तथा गली में तारकोल अथवा ईंटों का फर्श लगाना ।
(ब) कमरों की दीवारों तथा बरामदों को सुन्दर नक्शों, चित्रों तथा कलाकृतियों से सुसज्जित करना ।
(स) प्रांगण को समतल बनाना, स्कूल-भवन के चारों ओर दीवार का निर्माण हो सकता है।
(द) वाटिकाओं में हरी घास लगाना, फूलों की क्यारियों, गमलों, लताओं तथा वृक्षों से उसे सजाना।
(य)विशेष स्थानों पर नाम- तख्तियाँ, नोटिस-बोर्ड, समाचारफलक आदि लगाकर उन्हें साफ रखना ।
(र) प्रत्येक वर्ष स्कूल-भवन को साफ करके नोटिस-बोर्ड कराना तथा कीड़े-मकोड़ों को मारने के लिए दवाई छिड़कना ।
स्कूल क्षेत्र को प्राकृतिक दृश्य प्रदान करने तथा उसे सुन्दर बनाने के लिए योजना बनाई जा सकती है और तदानुसार छात्रों को उसे क्रियान्वित करने के लिए निर्देशन दिया जा सकता है। इस भाँति छात्र इस शिक्षा संबंधी विधि में अपने आपको तल्लीन बना सकते हैं। स्कूल भवन पर थोड़ा-सा व्यय करने के लिए संस्था प्रधान को घबराना नहीं चाहिए, क्योंकि प्राकृतिक दृश्य प्रदान करना और उसे सुन्दर बनाना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। –
(5) स्कूल भवन में यातायात — जिन स्कूलों में भीड़ अधिक हो उनमें यातायात के साधनों की योजना इस प्रकार से की जायें कि प्रत्येक को आने-जाने में यथार्थ सुविधा हों। किसी स्थान पर केवल एक ओर जाने वाली पद्धति ही अपनाई जा सकती है। छात्रों को इस बात का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये कि वे पंक्तिबद्ध होकर चलें ताकि भीड़ के कारण मार्ग अवरुद्ध न हों। भीड़ के समय निश्चित स्थानों पर नियंत्रण के लिये कुछ व्यक्ति खड़े किए जा सकते हैं। समयसारणी का निर्माण इस प्रकार से हो कि किसी भी विशेष घंटी के अनन्तर कहीं अधिक भीड़ एकत्र न हों।
(6) स्कूल भवन को दुर्घटनाओं से बचाने के उपाय-स्कूलभवन को साधारणतया निम्नलिखित दुर्घटनाओं का शिकार होना पड़ता
(1) अग्निकाण्ड, (2) सहसा किसी भाग का पतन, (3) बिजली ज्वलन (4) पानी के नलों का अस्वास्थ्यप्रद बहाव, (5) बाढ़ अथवा जल इकट्ठा होना तथा (6) मधुमक्खियों का छत्ता ।
आग बुझाने वाले साधनों और सूचना देने वाले साधनों का समयानुसार निरीक्षण अत्यन्त जरूरी है। पुराने भवनों की लकड़ी की सीढ़ियाँ कालान्तर में खराब हो जाती हैं। इस आधार पर पुराने भवनों की मरम्मत आवश्यक है। बिजली तारों का भी समय-समय पर निरीक्षण होना चाहिए। पानीपीने के नलके पूर्णरूपेण स्वास्थ्यप्रद हों ताकि उनसे कोई रोग न फैले। स्कूल क्षेत्र कुछ ऊँचाई पर हो ताकि वहाँ गन्दा पानी इकट्ठा न हो सकें। यदि स्कूल कुछ निचाई पर हो तो गन्दा पानी निकाले जाने के लिये नालियों का निर्माण होना अपेक्षित है।
स्कूल भवन की नींव भूमि के ऊपर होनी चाहिये। मधु-मक्खियों के छत्तों को स्कूल क्षेत्र में नहीं रहने देना चाहिये क्योंकि कभी-कभी वे बहुत हानि पहुँचाने वाली प्रमाणित होती है।
( 7 ) स्कूल क्षेत्र की सुरक्षा —  बिना विशेष सुरक्षा के कभीकभी स्कूल भवन, उसके द्रव्य-पदार्थ तथा सामान आदि व्यर्थ विनष्ट हो जाते हैं, अत: स्कूल-क्षेत्र की देखभाल का उत्तरदायित्व उसके अधिकारियों पर ही निर्भर करता है। संस्था प्रधान का कर्त्तव्य है कि वह इन सभी पदार्थों के लिए किसी की नियुक्ति करें।
अतः उसका ध्यान निम्नलिखित बातों की ओर जाना आवश्यक हैं—
(1) स्कूल के उद्यान, क्यारियों, झाड़ियों तथा घास की सुरक्षा |
(2) खेल के मैदानों, उनकी समतलता, अंकन और इसे साफ रखने का जिम्मा ।
(3) स्कूल भवन को सदा साफ रखना, सफेदी करवाना, रंग करवाना तथा मरम्मत आदि में रुचि लेना ।
(4) स्नानागार अथवा शृंगार कक्ष की उचित व्यवस्था तथा स्वास्थ्यप्रदत्ता के लिए इनकी नित्य सफाई ।
(5) सामान की सुरक्षा, उसका विभाजन तथा समय-समय पर मरम्मत।
(6) स्कूल सामान की सुरक्षा तथा संरक्षण- इसके लिए स्कूल के चौकीदार का संस्था प्रधान की सेवा में सदा तत्पर रहना ।
(7) सम्पूर्ण स्कूल- क्षेत्र को साफ-सुथरा रखना।
(8) स्वच्छ भारत अभियान कार्यक्रम को विद्यालयों में संचालित किया जाना चाहिए।
स्कूल की सुरक्षा के लिये संरक्षक को चाहिये कि वह अध्यापकों एवं छात्रों की मिली-जुली कोई समिति बना दें, जो उसे समय-समय पर सहायता प्रदान करें। इस समिति को समय-समय पर सब चीजों का भौतिक निरीक्षण करना चाहिये ताकि टूटी वस्तुओं की मरम्मत हो सके, उन्हें फेंक दिया जाये अथवा उनके स्थान पर नई वस्तुएँ खरीद की जा सकें। गुम हुई वस्तुओं की सूची भी उसे तैयार करनी चाहिये । उस समिति को यह अधिकार हो कि वह वस्तुओं का लेन-देन कर सकें। स्कूल भवन का उपयोग कभी-कभी समाज भी कर सकता है। इस रूप में संस्था-प्रधान तथा समिति के लिये इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि कोई चीज तोड़-फोड़ तो नहीं दी गई है। जब कभी स्कूल में कोई सामाजिक उत्सव हो, साधारण जलसा हो अथवा सामाजिक शिक्षा कक्षाओं का आयोजन हो, इस बात के प्रति सावधान रहना जरूरी है कि कहीं किसी वस्तु की चोरी तो नहीं हुई है ।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि समिति के ऊपर स्कूल भवन, उसके सामान की सुरक्षा और संरक्षण का उत्तरदायित्व होना चाहिये ।
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