विद्यालय में लचीलापन एवं सजगता / सम्पूर्णता का विकास किस तरह होता है?

विद्यालय में लचीलापन एवं सजगता / सम्पूर्णता का विकास किस तरह होता है?

उत्तर—  विद्यालय में लचीलापन एवं सजगता/सम्पूर्णता का विकास – हम सब जानते हैं कि परिवार के बाद विद्यालय ही एक ऐसी संस्था है जहाँ बालक का सर्वांगीण विकास सम्भव होता है परन्तु आज विडम्बना यह है कि आज का शिक्षित व्यक्ति भी निन्दनीय एवं अशोभनीय कार्यों में लिप्त है; जैसे—आज का डॉक्टर अस्पताल में रोगियों के अंगों का क्रय-विक्रय करते देखा जा सकता है, आज का इंजीनियर छात्र चोरी-डकैती जैसे कार्यों को करता दिखाई दे रहा है। यद्यपि इसमें विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों की भी अपनी अलग भूमिका होती है परन्तु कहीं न कहीं विद्यालय भी इसके लिए उत्तरदायी माना जाता है। अतः इस प्रकार की व्यवस्था को समाप्त करने के लिए विद्यालयों में बालक का आत्म-विकास आवश्यक है एवं उसकी आत्म शान्ति के लिए विभिन्न प्रकार की गतिविधियों की व्यवस्थाओं को सम्पन्न किया जाना चाहिए जिसमें से कुछ व्यवस्थाएँ इस प्रकार हैं—
जैसे—आज शिक्षा का स्तर निरन्तर गिरता जा रहा है, नैतिक मूल्यों तथा आदर्शवादी मूल्यों का निरन्तर ह्रास हो रहा है। व्यक्ति सैद्धान्तिक | मूल्यों को व्यावहारिक जीवन में उतार नहीं रहा है।
(1) आध्यात्मिक विकास की शिक्षा – आध्यात्मिक मूल्यों का विकास छात्रों में प्राथमिक स्तर से ही करना चाहिए। इसके लिए उन्हें आत्म विकास, आत्म प्रतिष्ठा, आत्म शान्ति आदि की अवधारणाओं से परिचित कराना चाहिए। आसुरी प्रवृत्तियों से छात्रों को दूर रखने का अहिंसा प्रयास करना चाहिए। इसके लिए उन्हें आध्यात्मिक मूल्यों सत्य, तथा परोपकार आदि से सम्बन्धित गतिविधियों में लगाना चाहिए।
(2) सार्थक चिन्तन का अभ्यास – छात्रों को सार्थक चिन्तन का अभ्यास कराने के लिए उन्हें सकारात्मक पक्षों से सम्बन्धित विषय लिखने तथा बोलने के लिए देने चाहिए, जैसे—अपने अध्यापक के पाँच गुण बताइए एवं अपनी बहन की पाँच अच्छी बातें/आदतें बताइए या अमुक व्यक्ति की उपयोगिता बताइएं आदि । इसमें छात्रों में सार्थक एवं सकारात्मक चिन्तन की आदत के साथ-साथ उनका आत्म-विकास होगा तथा आत्म शान्ति की प्राप्ति होगी।
(3) मानवीय मूल्यों की शिक्षा – बालक में मानवीय मूल्यों का विकास करने के लिए उन्हें विद्यालय में ऐसे कार्यों में संलग्न करना चाहिए जिससे उनमें प्रेम, सहयोग तथा परोपकार जैसे गुणों का विकास हो सके। जैसे—छात्रों को सामूहिक कार्य करने के लिए दिए जाएँ ताकि उनमें एक दूसरे का सहयोग करने की भावना विकसित हो सके। छात्रों को उनके अच्छे तथा नैतिकतापूर्ण कार्यों के लिए कक्षा में सम्मानित करना चाहिए ताकि अन्य छात्र भी उससे प्रेरित हो सके। इस प्रकार की गतिविधियों से बालकों में मानवीय मूल्यों का विकास होगा साथ ही साथ उन्हें आत्मशान्ति की भी प्राप्ति होगी।
(4) मानवीय मूल्यों की शिक्षा–विद्यालय में छात्रों को सत्यम् शिवम् सुन्दरम् के महत्त्व को समझाकर उनमें आदर्शवादी मूल्यों का विकास करना चाहिए। इसके लिए उन्हें विभिन्न प्रकार के कार्य; जैसेआदर्शवादी मूल्यों पर निबन्ध लेखन देने चाहिए। ऐसे कार्यों को करने के लिए छात्र आदर्शवादी मूल्यों से सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन करेगा जिससे उसका आत्म विकास होगा तथा उसे आत्म शान्ति भी प्राप्त होगी ।
(5) अन्तर्निहित शक्तियों का विकास – प्रत्येक बालक में विविध प्रकार की अन्तर्निहित प्रतिभाएँ तथा क्षमताएँ होती हैं, बस आवश्यकर्ता उन्हें विकसित करने एवं पोषित करने की है। इसके लिए शिक्षक को बालकों की क्षमता तथा योग्यता के अनुसार उनके कार्यों का विभाजन करना चाहिए; जैसे—किसी बालक की यदि कविता लेखन में रुचि है तो उसे छोटी-छोटी कविताएँ तथा स्लोगन लिखने को देना चाहिए। किन्तु इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि उसकी ये कविताएँ तथा स्लोगन मानवरहित तथा सार्वजनिक कल्याण के पक्ष में हो। इससे उसमें जहाँ एक ओर उसमें कवित्व गुण का विकास होगा वहीं दूसरी ओर उसे आत्म सुख एवं शान्ति का भी अनुभव होगा।
(6) नैतिक मूल्यों की शिक्षा—छात्रों में नैतिक मूल्यों का विकास करने के लिए नैतिक शिक्षा सम्बन्धी विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ आयोजित की जानी चाहिए। जैसे—विद्यालय में हरिश्चन्द्र के नाटक या मोरध्वज की कहानी का चित्रण करना चाहिए। इससे छात्रों को सत्य बोलने एवं विषम परिस्थितियों में भी अपने धर्म का त्याग न करने की शिक्षा प्राप्त होगी ।
(7) व्यापक दृष्टिकोण का विकास – आत्म शान्ति के लिए छात्र में व्यापक दृष्टिकोण विकसित करना आवश्यक है। इसके लिए बालक में “सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय” जैसी भावनाओं का विकास करना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप छात्र सभी के हित एवं कल्याण सम्बन्धी कार्य करेगा जिससे उसे आत्म शान्ति की प्राप्ति होगी।
(8) योग की शिक्षा – छात्रों को विद्यालय में उचित आहारविहार तथा व्यायाम की भी शिक्षा देनी चाहिए। योग शिक्षक के द्वारा बालकों को विविध प्रकार के आसनों का अभ्यास कराना चाहिए। इससे उनका शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य तो उत्तम होगा ही साथ ही साथ उनका आत्म विकास भी होगा। आत्म विकास के आधार पर ही आत्म शान्ति की प्राप्ति होगी।
विद्यालय में उपर्युक्त गतिविधियों एवं व्यवस्थाओं को आयोजित करने से छात्र में सजगता एवं लचीलापन जैसे गुण विकसित होंगे तथा द्वेष, ईर्ष्या जैसे अवगुण समाप्त होंगे तथा उन्हें आत्म शांति प्राप्त होगी।
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