‘विधवा पुनर्विवाह’ अधिनियम की व्याख्या कीजिए।

‘विधवा पुनर्विवाह’ अधिनियम की व्याख्या कीजिए।

उत्तर – विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 में ब्रिटिश भारत में ब्राह्मण, राजपूतों, बनिया और कायस्थ जैसे कुछ अन्य जातियों के बीच मुख्य रूप से विधवापन अभ्यास पर रोक लगाने हेतु पारित किया गया था। यह कानून बच्चे और विधवाओं के लिए एक राहत के रूप में तैयार किया गया था जिसके पति की समय से पहले मृत्यु हो गई है। पुरातन समय में किसी औरत के पति की मृत्यु हो जाने पर उसे उसकी चिता के साथ जलना होता था या सिर मुंडवाना होता था लेकिन इस अधिनियम के तहत कुछ प्रमुख सुधार किये गये जिनके मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं—
(1) यदि किसी स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती है पुनर्विवाह कर सकती है।
(2) इस विवाह में उसके सगे संबंधी अर्थात् माता पिता, भाई, दादा, नाना आदि सम्बन्धियों के द्वारा बात करके दूसरे विवाह को मंजूरी दी जा सकती है।
(3) विवाह में सहमति का होना अत्यन्त आवश्यक है।
(4) जिस घर की वह पहले बहू थी अर्थात् उसके मृत्यु वाले पति का घर उस पर उसका कोई सम्पत्ति के तौर पर अधिकार नहीं होगा। जहाँ वह पुनर्विवाह के बाद जायेगी वहाँ उसका अधिकार माना जाएगा।
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