विशिष्ट बालकों की शिक्षण विधियों को स्पष्ट कीजिए ।

विशिष्ट बालकों की शिक्षण विधियों को स्पष्ट कीजिए ।

अथवा
विशिष्ट बालक की अधिगम प्रभावता को बढ़ाने हेतु सुझाव दीजिए।
उत्तर – निम्न उपायों को अपनाकर विशिष्ट बालक की अधिगम प्रभावता बढ़ाई जा सकती है—
( 1 ) अनौपचारिक संस्थाएँ– विभिन्न प्रकार की अनौपचारिक संस्थाएँ; जैसे–लाइब्रेरी, ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल, शिक्षा भ्रमण, फिल्मस, रेडियो तथा टी.वी. कार्यक्रमों के द्वारा भी विशिष्ट शिक्षा प्रदान की जा सकती है। सामान्य बालक लाइब्रेरी की सुविधाओं का आनन्द उठा सकते हैं। कम देखने वाले बालक रेडियो तथा टी.वी. द्वारा फायदा उठा सकते हैं। इसके अतिरिक्त उनको शिक्षण कक्ष आदि से भी काफी फायदा हो सकता है ताकि कक्षा-कक्ष की कमी को पूरा किया जा सके।
( 2 ) आवासीय विद्यालय – प्रत्येक बालक की असमर्थता अलगअलग होती है तथा उनको प्रतिदिन विद्यालय आना-जाना काफी मुश्किल लगता है। अत: यह आवश्यक हो जाता है कि इस प्रकार के बालकों को आवासीय विद्यालयों में रखकर उनको शिक्षा प्रदान की जाएँ इसके साथ-साथ उनको विशेष प्रकार का प्रशिक्षण भी दिया जाए ताकि वे भी आत्मनिर्भर बन सकें।
( 3 ) विस्तार भाषण – विशेष बालकों को सामान्य कक्षा में रखकर भी विशेष शिक्षा की व्यवस्था का प्रबन्ध करना चाहिए इसके लिए हमें विशेष भाषण देने वाले शिक्षकों, विशेषज्ञों द्वारा शिक्षण एवं निर्देशन की सेवाओं का प्रबन्ध करने की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त विशेषज्ञ समय-समय पर स्कूल में आकर शिक्षक और बालकों के मातापिता से मिलकर विभिन्न विशेष प्रकार के बालकों की पहचान करने और उन्हें शिक्षा व निर्देशन देने की दृष्टि से पूरी तरह सहायक सिद्ध हो सकते हैं। विशेष प्रशिक्षण प्राप्त प्रशिक्षित अध्यापक, वाणी-सुधारक, फिजियोथैरेपिस्ट आदि के अतिरिक्त अन्य विशेषज्ञों की सेवायें भी लेनी चाहिए ताकि प्रत्येक बच्चे पर ध्यान दिया जा सके।
(4) विशेष विद्यालय – विशिष्ट बालकों की असमर्थता व उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर अनुभवी व प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षकों द्वारा शिक्षा दी जाती है। उनके लिए कुछ विशेष विद्यालय बनाये जाते हैं। ऐसे स्कूलों में विशेष कक्षों व भवनों का निर्माण किया जाता है और आवश्यकतानुसार प्रशिक्षित एवं योग्य शिक्षक, चिकित्सक और निर्देशक की नियुक्ति की जाती है। विशेष सहायक सामग्री एवं आधुनिक यन्त्रों के उपयोग से विशिष्ट बालकों को शिक्षित करने के साथ-साथ उनको उनकी योग्यता एवं क्षमता के अनुसार प्रतिभावान बच्चों को अपने विद्यालय में दाखिल करना शुरू कर दिया है।
( 5 ) हॉबी क्लब – प्रत्येक बालक की रुचि व अभिरुचि अलगअलग होती है। बड़े-बड़े शहरों में आजकल हॉबी क्लब की स्थापना हो रही है। बच्चे वहाँ जाकर अपनी रुचि व योग्यता के अनुसार अपनी हॉबी का चुनाव कर सकते हैं। इस प्रकार की हॉबी कक्षाओं में भाग लेने से बच्चे में आत्म-विश्वास जागता है और उसमें आत्म-निर्भरता आ जाती है।
( 6 ) विभिन्न प्रोजेक्ट – अध्यापक को चाहिए कि वह विभिन्न वह रिकार्ड कार्ड से उनकी अपंगता, योग्यताएँ, निपुणताएँ, शौक आदि की पूर्ण जानकारी प्राप्त करे। अध्यापक को चाहिए कि वह बालक की योग्यतानुसार किताबें तथा अधिगम सम्बन्धी पाठ्यक्रम का चुनाव करे। उसे इस प्रकार के कार्य करने चाहिए ताकि बालकों की सृजनात्मक योग्यता को उभारा जा सके । बालकों को इस बात के लिए भी प्रेरित करना चाहिए कि वे हॉबी क्लब आदि में भाग ले सकें व अधिगम के नए-नए ढंग सीखकर अपने आप को आत्म-निर्भर बना सकें। शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग अधिक से अधिक करना चाहिए ताकि वे भी आधुनिक विधियों से अधिक-सेअधिक ज्ञान प्राप्त कर सकें ।
( 7 ) विशेष शिक्षण–आधुनिक समाज टैक्नोलोजिकल की दिशा में आगे बढ़ रहा है। असमर्थ बालक अपनी दिनचर्या की समस्याओं व अपने आपको समायोजित करने के लिए आधुनिक सुविधाओं का प्रयोग कर सकते हैं । विशेष शिक्षण देकर इन बालकों को इस योग्य बनाया जा सकता है ताकि वे भी विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं में हिस्सा ले सकें।
( 8 ) विशेष विधियाँ – विशिष्ट बालकों को पढ़ाने के लिए पारम्परिक तरीकों का त्याग करके नई-नई मनोवैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करना चाहिए, अध्यापक का उद्देश्य पाठ्यक्रम को समाप्त करना नहीं बल्कि उसको रोचक बनाकर पढ़ाने का होना चाहिए अध्यापकों को चाहिए कि वे अपने आपको शिक्षण-अधिगम में अधिक-सेअधिक शामिल करें ताकि छात्र व अध्यापक अधिक प्रभावी ढंग से कार्य कर सकें । एक बुद्धिमान, निपुण एवं प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापक ही पढ़ाने के विभिन्न ढंग प्रयोग कर सकता है तथा वह मानसिक तथा शारीरिक रूप से अक्षम बालकों की विभिन्न समस्याओं का समाधान कर सकता है।
( 9 ) विशेष कक्षा योजना – विशिष्ट बालकों’ को सामान्य बालकों के साथ ही शिक्षा देना अच्छा रहता है ताकि विशिष्ट बालकों के मन में हीन-भावना न आए कि हमें अलग क्यों पढ़ाया जा रहा है । बालकों की आवश्यकताओं के अनुसार उनके ग्रुप बना लिए जाते हैं तथा फिर उनको शिक्षा प्रदान की जाती है। उदाहरण के तौर पर यदि अन्धा बालक सामान्य बालकों के साथ शिक्षा ग्रहण कर रहा है तथा वह विशेष कक्षा के दौरान ब्रेल भाषा का प्रयोग तथा दूसरे श्रवण उपकरणों का प्रयोग विशेष प्रशिक्षित अध्यापक की देख-रेख में कर सकता है। इसके अतिरिक्त उसे यदि किसी विषय विशेष में कोई समस्या है तो वह अपनी समस्या को प्रशिक्षित अध्यापक से निर्देशन लेकर हल कर सकता है । इसी प्रकार श्रवण-दोष बालक भी विशेष कक्षा के दौरान आडियोमीटर (Audiometer) तथा दूसरे सुनने वाले यन्त्रों का प्रयोग अध्यापक की देखरेख में करना सीखेगा। दूसरे दोषों वाले बालकों को भी ग्रुप बनाकर उनको आवश्यकतानुसार शिक्षा दी जा सकती है ।
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