व्यक्तित्व के विविध आयामों का स्वयं की पहचान पर क्या प्रभाव पड़ता है? विस्तृत विवरण दीजिए।
व्यक्तित्व के विविध आयामों का स्वयं की पहचान पर क्या प्रभाव पड़ता है? विस्तृत विवरण दीजिए।
उत्तर— व्यक्तित्व के विविध आयामों के द्वारा ही शिक्षक स्वयं की पहचान करने में पूर्णत: समर्थ होता है। व्यक्तित्व के आयाम प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति की समाज में एवं स्वयं की दृष्टि में पहचान सिद्ध करते हैं। व्यक्तित्व के विविध आयामों का स्वयं की पहचान पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसको निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है—
(1) आदर्शवाद का स्वयं की पहचान पर प्रभाव – आदर्शवाद का स्वयं की पहचान पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। आदर्शवादी व्यवस्था के आधार पर ही व्यक्ति इस जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझता है तथा अपने कार्य एवं व्यवहार को इस प्रकार व्यवस्थित करता है जो उसे सत्य के ज्ञान तक पहुँचा सके। इसलिये एक शिक्षक को प्रशिक्षण कार्य में ही आदर्शवादी मूल्यों का ज्ञान कराया जाता है जिससे यह अपने जीवन को उच्च आदर्शों से सम्पन्न बना सके ।
(2) स्वस्थ शरीर एवं स्वस्थ मन का स्वयं की पहचान पर प्रभाव – जब एक शिक्षक मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है तो वह स्वयं की पहचान सरलता से कर सकता है, क्योंकि सत्य की पहचान के लिये व्यक्ति को स्वस्थ विचारों एवं स्वस्थ चिन्तन की आवश्यकता होती है जो कि स्वस्थ शरीर एवं स्वस्थ मन से उत्पन्न होते हैं। एक शिक्षक का व्यक्तित्व एवं कृतित्व ही उसको अपने जीवन की सार्थकता से परिचित कराता है।
(3) आत्मविश्वास का स्वयं की पहचान पर प्रभाव – आत्मविश्वास की स्थिति प्रत्येक शिक्षक में अनिवार्य रूप से होनी चाहिये, क्योंकि स्वयं की पहचान एक सरल कार्य नहीं है। स्वयं की पहचान करते-करते व्यक्तियों के अनेक जीवन निकल जाते हैं। एक शिक्षक स्वयं की पहचान करने के बाद ही अपने कार्यों को सार्थक रूप प्रदान कर सकता है। आत्मविश्वास का अभाव शिक्षक को स्वयं की पहचान करने में बाधा उत्पन्न करता है।
(4) जागरूकता का स्वयं की पहचान पर प्रभाव – जब व्यक्ति जागरूकता से युक्त होता है तो वह प्रत्येक क्षेत्र में अपनी जागरूकता का प्रदर्शन करता है। इसलिये एक शिक्षक भी अपने इस गुण का उपयोग स्वयं की पहचान में करता है। वह जानने का प्रयास करता है कि उसके जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है और वह उसे किस प्रकार प्राप्त कर सकता है ? इस जागरूकता के आधार पर ही वह लौकिक एवं पारलौकिक जगत् में अपने व्यक्तित्व को सिद्ध करता है। स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गौतम बुद्ध एवं महात्मा गाँधी इसी प्रकार के व्यक्तित्व के धनी थे ।
(5) सामाजिक कौशलों का स्वयं की पहचान पर प्रभाव– सामाजिक कौशलों के माध्यम से भी व्यक्ति स्वयं की पहचान करता है। जब व्यक्ति विभिन्न सामाजिक कार्यों एवं अवसरों पर अपने आपको आदर्श व्यक्ति के रूप में सिद्ध नहीं कर पाता है तो आत्म समीक्षा करता है कि उसके आत्मविश्वास में कहीं न कहीं कोई कमी है। इस प्रकार सामाजिक कौशलों के प्रयोग एवं सामाजिक कार्यों के परिणाम शिक्षक को उसकी स्वयं की पहचान कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं ।
(6) चिन्तन एवं तर्क का स्वयं की पहचान पर प्रभाव – चिन्तन एवं तर्क के द्वारा शिक्षक अपने जीवन की सार्थकता एवं उपयोगिता पर विचार करता है। शिक्षक चिन्तन एवं तर्क के माध्यम से जीवन की प्रत्येक घटना की सत्यता का ज्ञान प्राप्त करता है । चिन्तन एवं तर्क के आधार पर ही एक शिक्षक आत्म विकास की सभी विधियों को जान पाता है। गौतम बुद्ध ने चिन्तन एवं तर्क के आधार पर ही अपने जीवन उद्देश्य एवं आत्मज्ञान को सरलता से प्राप्त कर लिया था। इसी प्रकार एक शिक्षक जब जीवन के उद्देश्यों पर चिन्तन मनन करता है तो उन उद्देश्यों को प्राप्त करता है, जो स्वयं की पहचान से सम्बन्धित होते हैं।
(7) सिद्धान्त एवं व्यवहार के समन्वयन का स्वयं की पहचान पर प्रभाव – जब शिक्षक स्वयं की पहचान करना चाहता है तो उसको सिद्धान्त एवं व्यवहार दोनों पक्षों का समन्वयन करना पड़ता है। व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य आदर्शवादी सिद्धान्तों को समाज में व्यावहारिक रूप प्रदान करना होता है। सत्यम् शिवम् सुन्दरम् के आदर्श को एक कुशल शिक्षक अपनी गतिविधियों एवं व्यक्तित्व के माध्यम से समाज में क्रियान्वित कर देता है। इसलिये सिद्धान्त एवं व्यवहार का समन्वयन शिक्षक के साथ-साथ समाज के अन्य व्यक्तियों को भी जीवन की उपयोगिता एवं सार्थकता की पहचान करा देता है। “
(8) सादगी का स्वयं की पहचान पर प्रभाव – सादगी जीवन का वह गुण है जो व्यक्ति को आत्म विकास एवं जीवन का सत्यता से परिचित कराता है। सादगी के जीवन में सात्विकता निहित होती है। सात्विक विचारों से ही संसार की सृष्टि दैवीय सम्पदा के रूप में हुई है। जब सात्विक विचार व्यक्ति के जीवन में अपना प्रभाव दिखाते हैं, तब व्यक्ति अपने जीवन की पहचान कर लेता है। वह अपने स्वरूप एवं कर्तव्यों को पहचान लेता है। इसके बाद वह समाज के लिये उपयोगी एवं आदर्श पुरुष बन जाता है।
(9) संवेगात्मक स्थिरता का स्वयं की पहचान पर प्रभाव – संवेगात्मक स्थिरता का आशय संवेगों पर नियंत्रण से है। जब एक शिक्षक अपने संवेगों पर नियंत्रण रख सकता है तो स्वाभाविक रूप से वह इन्द्रियों पर भी नियंत्रण कर सकेगा। इन्द्रिय निग्रह की स्थिति व्यक्ति को स्वयं की पहचान कराती है। एक शिक्षक इन्द्रिय निग्रगह एवं संवेगात्मक स्थिरता के कारण त्याग एवं तपस्या का जीवन व्यतीत करता है। इस आधार पर ही शिक्षक को आदर्श शिक्षक के रूप में स्वीकार किया जाता है। विषयभोगी शिक्षक तो शिक्षा एवं शिक्षक समुदाय के लिये कलंक होता है। अतः संवेगात्मक स्थिरता व्यक्ति को उसकी वास्तविक पहचान कराती है।
(10) संघर्ष शक्ति का स्वयं की पहचान पर प्रभाव – संघर्ष की शक्ति का स्वयं की पहचान पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। एक शिक्षक में जितनी अधिक संघर्ष शक्ति होगी, वह अपने बारे में उतना ही अधिक जान सकेगा। इस संसार की रचना संघर्ष का ही परिणाम है। इसी प्रकार सांसारिक संघर्ष एवं विचारों को संघर्ष शिक्षक को एक नवीन दिशा प्रदान करता है जिसके माध्यम से शिक्षक स्वयं के बारे में जान सकता है। वह अपने जीवन को आदर्श स्वरूप प्रदान करने में तथा जीवन को समाजोपयोगी बनाने में अनेक प्रकार के संघर्ष करता है । ईसा मसीह एवं सुकरात इसके प्रमुख उदाहरण माने जाते हैं, जिन्होंने अपने जीवन को संघर्ष में ही समाप्त कर दिया ।
(11) उचित सम्प्रेषण का स्वयं की पहचान पर प्रभाव – व्यक्ति जीवन के रहस्य को स्वयं नहीं पहचान पाता या वह स्वयं की पहचान के लिये दूसरों का सहारा लेता है। इसके लिये उसको सम्प्रेषण के सर्वोत्तम स्वरूप की आवश्यकता होती है, जिससे वह स्वयं की पहचान करने में सरलता का अनुभव करता है। इस प्रकार सम्प्रेषण की योग्यता का सर्वोत्तम स्वरूप आत्म-पहचान की प्रक्रिया को सफल एवं तीव्रमयी बना देता है ।
(12) सद्भावना का स्वयं ही पहचान पर प्रभाव – जब हम समाज के प्रति सद्भावना रखते हैं तो स्वयं के जीवन को समाज के लिये अर्पण करने के लिये तैयार रहते हैं। सुकरात एवं ईसा मसीह ने स्वयं की पहचान इस सद्भावना के आधार पर ही की थी। जब ईसा मसीह एवं सुकरात ने देखा कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को पहचानने की स्थिति में नहीं है तथा गलत आचरण कर रहा है तो उन्होंने स्वयं आकर सत्य को समाज के समक्ष प्रस्तुत किया। इस प्रकार सद्भावना का प्रभाव ही शिक्षक को सत्य एवं उसकी क्षमता का ज्ञान कराता है।
(13) सार्वजनिक हित का स्वयं की पहचान पर प्रभाव – सार्वजनिक हित की भावना ही व्यक्ति को स्वयं की पहचान करने के लिये विवश करती है। शिक्षक का यह उद्देश्य होता है कि वह अधिक से अधिक समाज सेवा एवं सार्वजनिक हित के कार्य करे। इसके लिये उसे अपने जीवन के अन्तिम सत्य को पहचानना होता है। जब एक शिक्षक यह समझ जाता है कि उसकी स्वयं की पहचान सार्वजनिक हित से जुड़ी हुई है तो वह सार्वजनिक हित सम्बन्धी कार्यों को स्वीकार कर लेता है। इसके विपरीत स्वार्थ की भावना स्वयं की पहचान के लिये प्रमुख बाधा का कार्य करती है।
(14) वैज्ञानिक दृष्टिकोण का स्वयं की पहचान पर प्रभाव – अनेक अवसरों पर शिक्षक समाज में प्रचलित अन्धविश्वासों को समाप्त करने के स्थान पर स्वयं उनसे प्रभावित हो जाता है। इस स्थिति में वैज्ञानिक दृष्टिकोण ही उसको सही मार्ग दिखाता है। एक शिक्षक को किसी भी घटना एवं तथ्य की समीक्षा वैज्ञानिक कसौटी एवं मूल्यों की कसौटी पर करनी चाहिये, जिससे वह समाज में व्याप्त अन्धविश्वास को समाप्त कर सके तथा स्वयं को पहचान भी सके ।
(15) व्यापक दृष्टिकोण – एक शिक्षक का दृष्टिकोण व्यापक होना चाहिये। जब शिक्षक जीवन के बारे में व्यापक रूप से विचार करता है तो वह जीवन की सार्थकता एवं सत्य को समझ पाता है तथा जीवन के उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है अन्यथा वह अपने जीवन को सांसारिक कार्यों एवं उद्देश्यविहीन गतिविधियों में नष्ट कर देता है। व्यापक दृष्टिकोण के द्वारा शिक्षक आध्यात्मिक एवं भौतिक पक्षों पर विचार करते हुए जीवन की सत्यता को ज्ञात कर लेता है।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि व्यक्तित्व के विविध आयाम एवं व्यक्तित्व सम्बन्धी गुण एक शिक्षक को उसके वास्तविक जीवन की पहचान कराते हैं। जब इन गुणों का अभाव एक शिक्षक में पाया जाता है तो शिक्षक का व्यक्तित्व प्रभावहीन हो जाता है। वह सामान्य नागरिकों का सा जीवन व्यतीत करता है तथा वह समाज की आकांक्षाओं पर भी खरा नहीं उतरता है। अतः एक शिक्षक को इन गुणों का समावेश अपने व्यक्तित्व में अवश्य करना चाहिये तथा स्वयं को पहचानना चाहिये । आत्म गौरवान्वित होकर शिक्षक को अपने जीवन की सार्थकता एवं उपयोगिता समाज का उद्धार करके सिद्ध करनी चाहिये, क्योंकि आज शिक्षक अपने पथ से भटक गया है तथा वह समाज की उस भीड़ में सम्मिलित हो गया है, जिसका भविष्य न तो कभी उज्ज्वल था, न है और न रहेगा।
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