शारीरिक शिक्षा के क्षेत्रों की विवेचना सविस्तार कीजिए ।

 शारीरिक शिक्षा के क्षेत्रों की विवेचना सविस्तार कीजिए । 

उत्तर— शारीरिक शिक्ष का क्षेत्र – शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है । शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र मात्र शारीरिक प्रशिक्षण (Physical Training) और ड्रिल (Drill) तक ही सीमित नहीं है वरन् जितनी भी स्वास्थ्य सम्बन्धी क्रियाएँ हैं, शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में सम्मिलित की जाती हैं। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तित्व के विकास की सभी शारीरिक क्रियाएँ तथा कौशल सम्मिलित किये जाते हैं। इस सम्बन्ध में डेलबर्ट ओपरट्यूफर ने कहा है—
‘शारीरिक शिक्षा को उन अनुभवों का कुल योग कहा जा सकता है, जो व्यक्ति को गतिशीलता द्वारा प्राप्त होता है ।। “
शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित कार्यक्रमों को शामिल किया जा सकता है—
(1) खेलकूद सम्बन्धी क्रियाएँ – खेलकूद बालकों, युवाओं तथा वृद्धों तक को प्रिय लगते हैं। अतः खेलकूद सम्बन्धी क्रियाएँ, सामान्य व्यक्तियों में अधिकाधिक सम्पन्न की जाती हैं, जो खेलकूद करने में अक्षम होते हैं, वे खेलकूद का लाभ दर्शक बनकर लेते हैं। खेल के क्षेत्र में तीन प्रकार के खेल होते हैं—
(1) व्यक्तिगत खेल
(2) दलीय खेल
(3) तालबद्ध खेल
तालबद्ध खेलों के अन्तर्गत बालं विद्यालयों के (Mass Drill, Marching Lezium तथा Band Drill) आदि संगीतात्मक व्यायाम युक्त क्रियाएँ आती हैं। इसलिए इन्हें Rhythmic Exercises कहा जाता है। ताल तथा लयात्मक व्यायाम के अन्तर्गत निम्नलिखित व्यायामों का उल्लेख आता है—
(अ) लोकगीत एवं लोक नृत्य – लोकगीत तथा लोक नृत्य इसी प्रकार की श्रेणी में आते हैं। हमारे भारत के सभी प्रान्तों में किसी न किसी प्रकार के लोक नृत्य तथा लोक गीत प्रयोग में लाये जाते हैं। उदाहरण के लिये पंजाब में भांगड़ा, गिद्धा, गुजरात का गरबा, मणिपुर का मणिपुरी नृत्य, मध्य प्रदेश के आदिवासी विभिन्न परम्परागत वेशभूषाओं के साथ लोक नृत्य करते हैं। आदिवासी जनजीवन पूरी तरह से लोकगीत तथा लोक नृत्यों से परिपूर्ण हैं। भारत के आदिवासी मनोरंजन तथा व्यायाम के लिये लोक नृत्यों को प्रधानता देते हैं।
(ब) जिमनास्टिक नृत्य – जिमनास्टिक नाचना शारीरिक शिक्षा का विशेष उपक्रम है। इससे शरीर में स्फूर्ति तथा माँसपेशियों को पुष्टता प्राप्त होती है। विश्व के सभी क्षेत्रों में आज इस व्यायाम की बहुलता है। इसकी सभी क्रियाएँ शारीरिक शिक्षा विषय के क्षेत्र के अन्तर्गत आती हैं। इससे शरीर में लचक आती है तथा सन्तुलन में सजीवता आती है।
(स) ऐरोबिक व्यायाम – ऐरोबिक व्यायाम तालबद्धता तथा संगीत के साथ पूर्ण किया जाता है। सम्पूर्ण विश्व में इस प्रकार के व्यायामों का बहुलता से प्रचलन हो रहा है। दूरदर्शन आदि से इस प्रकार के व्यायामं का प्रचार भी अधिकाधिक किया जा रहा है। प्रान्तीय, देशीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्द्धाएँ तथा प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की जा रही हैं।
(2) आधारभूत सामान्य व्यायाम – इस प्रकार के व्यायाम के लिये व्यायामकर्त्ता को कोई विशेष प्रयास की आवश्यकता नहीं करनी पड़ती अपितु चलते-फिरते, दौड़ते-भागते, वजन उठाते, बाग-बगीचे तथा खेत-खलिहान में काम करते या कोई उद्यम करते समय पूर्ण होते हैं। इन व्यायाम तथा शारीरिक क्रियाओं का सम्बन्ध मानव के सामान्य जीवन से है।
(3) सुधारात्मक शारीरिक क्रियाएँ – सुधारात्मक या उपचारात्मक क्रियाओं का आयोजन व्यक्ति के शारीरिक दोषों के उपचार के लिये किया जाता है। शारीरिक दोषों में चपटे पैर तथा टेढ़े पैर, आगे निकली छाती, झुकी कमर तथ झुके हुए कन्धे आते हैं। शरीर को सुडौल तथा सन्तुलित करने के लिये ये व्यायाम किये जाते हैं।
(4) यौगिक क्रियाएँ एवं आसन – योग एवं आसनों का भारतीय जनजीवन में आदिकाल से महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। योग हमारे सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न अंग रहे हैं। योगासन के द्वारा विभिन्न रोगों से मुक्ति मिलती है। अलग-अलग योगासन अलग-अलग प्रकार के लाभ पहुँचाते हैं। जैसे सूर्य नमस्कार से माँसपेशियों की सुदृढ़ता, प्राणायाम से दीर्घायु, *दमासन से शरीर के ऊपरी भागों को आराम, पश्चिमोत्तनासन से उदर रोग में लाभ, सर्वांगासन से कब्ज रोग में लाभ, धनुरासन से पेट तथा श्वसन प्रणाली को लाभ, शवासन द्वारा शरीर की थकान से लाभ, भुजंगासन से मेरूदण्ड को लाभ, शीर्षासन से मस्तिष्क को स्वास्थ्य लाभ, मत्स्यासन से पेट रोगों के लाभ तथा हलासन से कण्ठ तथा गले के रोगों से लाभ प्राप्त होता है।
(5) पूरक खेल – यह छोटे-छोटे खेल कम समय में समाप्त होते हैं तथा छोटे बालकों के लिये उपयुक्त है। पूरक खेलों के नियम अत्यन्त सरल होते हैं। ये छोटे खेल अग्रलिखित हैं—
माल का डिब्बा, दोस्त नमस्कार, चीता चीतल ऊँच नीच ( अप डाउन), अन्दर बाहर, शेर चीता, चूहा बिल्ली, पूसी बिल्ली, नेता की खोज, कुर्सी दौड़, अमरूद दौड़, सूई धागा, चम्मच दौड़, बाधा दौड़, बोरा दौड़, दूर पहाड़ी, आग लागी, मूर्ति बनाना, संतुलन रेस, भेड़िया, भैया तथा अन्य स्थानीय रोचक खेल आदि ।
(6) मनोरंजनात्मक क्रियाएँ – दिनभर या सप्ताह भर विश्राम तथा मासिक या वार्षिक कार्य समाप्त कर व्यक्ति कुछ न कुछ शारीरिक क्रिया करना चाहता है। यह शारीरिक क्रिया दैनिक, साप्ताहिक, मासिक या वार्षिक स्वरूप की हो सकती है। जैसे सायं रात्रि को घूमना, साप्ताहिक रूप में camping या कहीं सैर करने जाना। मासिक के रूप में किसी लम्बे सैर सपाटे पर निकलना तथा वर्ष में एक बार किसी पहाड़ इत्यादि की यात्रा की जा सकती है ।
(7) आत्म रक्षार्थ क्रियाएँ – इन शारीरिक क्रियाओं को दो भागों में विभाजित किया गया है। पहली क्रियाएँ वे हैं जिन्हें व्यक्तिगत रूप से स्वयं के स्वास्थ्य को सन्तुलित तथा रोगों से बचने के लिये, सामान्य जीवन से कुछ अलग हटकर पूरा किया जाता है, जैसे- -प्रातःकाल चलना या टहलना, तेज गति से चलना, पैदल लम्बी यात्रा करना, धार्मिक पैदल यात्राएँ इसी क्रिया के अन्तर्गत आती हैं। जैसे कैलादेवी मन्दिर की पैदल यात्रा या गोवर्द्धन (मथुरा) की यात्रा आदि ।
दूसरी प्रकार की आत्म रक्षार्थ क्रियाएँ सैनिक या संघर्ष युक्त हैं, जैसे—मुक्केबाजी, कुश्ती, लाठी या मुग्दर चलाना, तीर चलाना, घुड़सवारी, तलवार चलाना, जूडो-कराटे आदि ।
(8) जिमनास्टिक – सर्कस आदि में जिमनास्टिक क्रियाएँ की जाती हैं। इससे शरीर की सुडौलता तथा लचकता बनी रहती हैं, किन्तु यह शारीरिक क्रियाएँ सामान्य जीवन का अंग नहीं है। इन्हें प्रशिक्षित व्यक्ति ही सम्पन्न कर सकता है।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में समस्त प्रकार के खेलकूद एवं शारीरिक गतिविधियाँ आ जाती हैं, जिनसे शरीर तथा मन को आनन्द प्राप्त होता है। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत तथा सामूहिक सभी प्रकार के खेल, व्यायाम एवं आसन आदि आते हैं।
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