शिक्षण एवं अधिगम में आधारभूत संसाधनों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
शिक्षण एवं अधिगम में आधारभूत संसाधनों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
शिक्षण अधिगम वृद्धि में पुस्तकालय की भूमिका की व्याख्या कीजिये ।
उत्तर— शिक्षण एवं अधिगम में आधारभूत संसाधन की भूमिका आधारभूत संसाधन से अभिप्राय छात्रों के अधिगम के लिए उचित प्रकाशयुक्त, हवायुक्त विद्यालय भवन, पुस्तकालय, खेल का मैदान, विद्यालय में आवश्यक उपकरण, बिजली, खेल कूद का सामान, उचित पाठ्यचर्या एवं प्रशिक्षित शिक्षक इत्यादि का होना आवश्यक है। इन आवश्यक संसाधनों के अभाव में बालकों की शिक्षा प्रभावित होती है तथा उनके व्यक्तित्व का विकास प्रभावित होता है और वे प्रतिस्पर्धा के इस युग में पिछड़ने लगते हैं जिससे उनमें निराशा, कुंठा एवं अवसाद इत्यादि भावनाएँ पनपने लगती हैं। इससे उनका, उनके परिवार, समाज एवं देश का विकास प्रभावित होता है तथा उन पर किया गया निवेश भी बेकार हो जाता है। इस प्रकार से स्पष्ट है कि शिक्षण एवं अधिगम में ढाँचागत समर्थन की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । इसके प्रमुख तथ्यों का हम संक्षेप में अध्ययन करेंगे।
कक्षा-कक्ष बैठक व्यवस्था— बैठने की व्यवस्था से आशय उस सुनियोजित तथा क्रमबद्ध प्रणाली से है जिसमें बैठक व्यवस्था शिक्षण की वस्तुस्थिति के अनुकूल होती है जिसमें शिक्षार्थी सामान्य स्थिति में रहते हैं एवं उनका शिक्षण-अधिगम का सम्पादन उचित ढंग से होता है। इस प्रकार बैठक व्यवस्था स्वाभाविक वातावरण का रूप लिए होनी चाहिए। यह किसी भी प्रकार के शिक्षण सम्पादन की एक अनिवार्य शर्त है। बैठक व्यवस्था चाहे जिस भी संस्था की हो, उसे (संस्था) यह ध्यान रखना चाहिए कि वहाँ किसी भी तरह का बाधक तत्त्व न हो यदि ऐसा है तो उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए। प्रकाश, हवा आदि की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
बैठक व्यवस्था पर कुछ कक्षा कक्ष प्रबन्ध विशेषज्ञ और अनुभवी शिक्षक इस बात पर बल देते हैं कि छात्र इसके लिए स्वतन्त्र हैं कि वे किस प्रकार बैठना पसन्द करेंगे परन्तु उनकी पसन्द के साथ-साथ कक्षा वातावरण, पठन, सरलता एवं कक्षा अनुशासन भी महत्त्व रखता है। छात्र बैठक व्यवस्था अपने अथवा शिक्षक के अनुसार कर सकते हैं। कुल मिलाकर यह कक्षा में छात्रों को अधिगम एवं सुविधानुसार बैठने की उचित व्यवस्था है। सम्पूर्ण कक्षा को व्यवस्थित करने के लिए छात्रों को सीट आवंटित करना होता है। इसका भौतिक अनुशासन एवं शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है।
फ्रेड जोन्स (Fred Jones) का कहना है, “कक्षा व्यवस्था शिक्षण को व्यक्त करता है। यह रो एवं कॉलम (Row and Column) में हो सकता है। यह अपने कार्यों की सरलता एवं शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए किया जाता है। इसके मध्य से छात्र एवं शिक्षक आसानी से आवागमन कर सके तथा शिक्षक उनके मध्य निरीक्षण कर सकें ।”
कक्षा-कक्ष बैठक व्यवस्था का महत्त्व – कक्षा कक्ष में बैठक व्यवस्था की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। ये सम्भावित समस्यात्मक व्यवहार को कम करने में सहायता करते हैं तथा अनुदेशों के द्वारा उनका ध्यान बढ़ाने में सहायता करता है। बैठक व्यवस्था अधिगम वातावरण को प्रभावित करता है। बैठक व्यवस्था का महत्त्व निम्नलिखित है—
(1) छात्र के व्यक्तित्व विकास में सहायता करता है ।
(2) सहभागिता में वृद्धि करता है।
(3) ध्यान लगाने में सहायता करता है ।
(4) कक्षा वाद-विवाद में वृद्धि करता है ।
(5) मात्रात्मक एवं गुणात्मक छात्रों की वृद्धि करता है।
पुस्तकालय का अर्थ एवं परिभाषाएँ– पुस्तकालय वह स्थान होता है जहाँ विविध प्रकार के ज्ञान, सूचनाओं, स्रोतों, सेवाओं आदि का संग्रह रहता है। पुस्तकालय किसी एक विषय के भी हो सकते हैं तथा एक पुस्तकालय में विविध विषयों की पुस्तकें हो सकती हैं। पुस्तकालय शब्द अंग्रेजी के लाइब्रेरी शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है। लाइब्रेरी शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘लाइबर’ से हुई है जिसका अर्थ है पुस्तक । पुस्तकालय का इतिहास लेखन प्रणाली, पुस्तकों और दस्तावेज के स्वरूप को संरक्षित रखने की पद्धतियों और प्रणालियों से जुड़ा है ।
पुस्तकालय ज्ञान का भण्डार एवं सीखने का कोश है। माध्यमिक शिक्षा आयोग ने एक सुसंगठित पुस्तकालय के महत्त्व पर इस प्रकार प्रकाश डाला है, “विज्ञान सम्बन्धी विषयों को पढ़ाने के लिए जो स्थान प्रयोगशाला का है, तकनीकी विषयों के लिए जो स्थान कार्यशाला का है पुनर्गठित, विद्यालय में बौद्धिक एवं साहित्यिक ज्ञान अभिवृद्धि के लिए वही स्थान पुस्तकालय का है— क्योंकि यह किसी भी संस्था का मुख्य स्थान अथवा केन्द्र एवं धुरी माना जाता है। व्यक्तिगत शैक्षिक कार्य सामूहिक प्रोजेक्ट या प्रयोजन, अनेकानेक व्यक्तिगत रुचियों तथा विविध सहायक कार्यक्रमों की सफलता के लिए एक समृद्ध एवं सुव्यवस्थित पुस्तकालय की नितान्त आवश्यकता होती है । “
4 एस. आर. रंगनाथन के अनुसार, “जिस विद्यालय में छात्रों को परिवर्तनशील संसार के लिए शिक्षा दी जा रही है, उसके लिए पुस्तकालय एक सजीव वर्कशॉप के रूप में होता है । “
पुस्तकालय के उद्देश्य— पुस्तकालय का मुख्य उद्देश्य छात्रों में अध्ययन के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना तथा छात्रों में विभिन्न विषयों के प्रति रुचि उत्पन्न करना है। इसके अलावा अन्य उद्देश्य निम्नवत् हैं—
(1) पुस्तकालय का मुख्य उद्देश्य छात्रों में पढ़ने एवं स्वाध्याय की आदतों का निर्माण करना है।
(2) छात्रों में स्वाध्याय के लिए विभिन्न रुचियों का विकास करना तथा उनमें बौद्धिक कार्य करने का साहस उत्पन्न करना है।
(3) छात्रों में सहयोगी दृष्टिकोण विकसित करना तथा उन्हें अपने नागरिक दायित्वों को समझने के योग्य बनाना ।
(4) शिक्षकों के विषय ज्ञान व सामान्य ज्ञान की पूर्ति व वृद्धि करना तथा उनको नवीनतम शिक्षण विधियों की सूचना प्राप्ति का साधन प्रदान करना ।
(5) छात्रों में अध्ययन की योग्यता एवं रुचि उत्पन्न करना तथा छात्रों के मध्य अध्ययन में खुशी एवं आनन्द उत्पन्न करना ।
(6) छात्रों को पुस्तकालय का अधिकतम लाभ प्रदान करना।
(7) समस्त छात्रों में पुस्तकालय के संसाधनों का समान रूप से विभाजन ।
(8) छात्रों को पुस्तकालय के समस्त नियमों से परिचित कराना जिससे उन्हें पुस्तक लेने तथा अध्ययन में कोई असुविधा न हो।
(9) छात्र एवं शिक्षक के मध्य मधुर सम्बन्ध का निर्माण |
(10) छात्रों में शब्दकोश, सन्दर्भ पुस्तकों आदि का उचित प्रयोग करने की कुशलता का विकास करना तथा सभी के सामान्य ज्ञान में वृद्धि करना ।
(11) छात्रों में साधन सम्पन्नता जिज्ञासा प्रवृत्ति को प्रोत्साहन एवं वैयक्तिक अनुसंधान करने के गुणों का विकास करना ।
•प्रयोगशाला का महत्त्व — प्रयोगशाला में प्रयोग के द्वारा विद्यार्थियों में सोचने-विचारने, निर्णय लेने तथा निरीक्षण करने की क्षमता का विकास होता है। प्रयोगशाला में कार्य करने से छात्र में आत्मविश्वास उत्पन्न होता है। प्रयोगशाला में कार्य करके छात्र विभिन्न तथ्यों का वस्तुनिष्ठ प्रयोग कर सकते हैं। प्रयोगशाला में प्रयोग करने से समय की बचत होती है तथा छात्र को वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति होती है। प्रयोगशाला में विभिन्न उपकरण यथास्थान रखे रहते हैं जिन्हें देखकर छात्रों में प्रयोग करने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है। विभिन्न वैज्ञानिकों तथा आविष्कारों से सम्बन्धित जानकारी एवं ग्राफिक चार्ट ज्ञान के भण्डार होते हैं। प्रयोगशाला के माध्यम से छात्र नवीन तथ्यों के प्रयोग द्वारा उचित अधिगम प्राप्त करते हैं तथा उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करने में प्रयोगशाला का विशेष महत्त्व है।
( 1 ) शिक्षण अधिगम हेतु उपयुक्त वातावरण निर्माण करने में प्रयोगशाला सहायक है।
(2) प्रयोगशाला में प्रयोग करने से समय की बचत होती है क्योंकि प्रत्येक उपकरण यथास्थान प्राप्त हो जाते हैं।
(3) प्रयोगशाला में कार्य प्रयोग के उपरान्त प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है।
(4) प्रयोगशाला में छात्र सामूहिक रूप से कार्य करते हैं जिससे उनमें सामूहिकता का विकास होता है।
(5) प्रयोगशाला में किया गया कार्य रुचिकर एवं प्रभावशाली होता है।
(6) प्रयोगशाला के प्रयोग से छात्रों में पहलकदमी, आलोचनात्मक दृष्टिकोण, साधन-सम्पन्नता, सहयोग, व्यक्तिगत कार्य करने की क्षमता आदि शक्तियाँ विकसित होती हैं ।
( 7 ) प्रयोगशाला के प्रयोग द्वारा छात्रों से प्रेरणा प्रदान करने वाला व्यावहारिक कार्य भी कराया जा सकता है।
(8) प्रयोगशाला से विभिन्न विषयों से सम्बन्धित व्यावहारिक कार्यों व योजनाओं के प्रति छात्रों में रुचि व प्रेरणा उत्पन्न होती है तथा उन्हें प्रोत्साहन भी मिलता है।
(9) प्रयोगशाला में छात्र स्वयं प्रयोग करके विषय से सम्बन्धित ज्ञान की प्राप्ति करते हैं।
(10) इसमें छात्र विभिन्न वस्तुओं का निरीक्षण एवं प्रयोग करते हैं जिससे उन्हें सैद्धान्तिक एवं वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति होती है।
( 11 ) प्रयोगशाला के द्वारा विषय विशेष के लिए उपयुक्त एवं अनुकूल वातावरण का निर्माण किया जाता है जो छात्रों के व्यावहारिक एवं प्रभावशाली प्रशिक्षण के लिए अत्यन्त हितकारी सिद्ध होता है।
(12) प्रयोगशाला शिक्षकों को भी विभिन्न क्रिया-प्रधान शिक्षण विधियों के प्रयोग को सफल बनाने में मदद करती है।
खेल का मैदान–वर्तमान में विद्यालयी पाठ्यचर्या में विषयों सम्बन्धी अध्ययन के साथ-साथ अन्य बहुत सी पाठ्य सहगामी क्रियाओं को स्थान दिया जाता है। इसके आयोजन के लिए विद्यालय में एक बड़े स्थान की आवश्यकता होती है जिसे खेल का मैदान भी कहा जाता है। विभिन्न बाह्य खेल क्रियाओं तथा पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन इन्हीं मैदानों में किया जाता है।
वर्तमान शिक्षा का उद्देश्य छात्र को सर्वांगीण विकास करना है। इसके अर्न्तगत बालक का बौद्धिक, सामाजिक एवं संवेगात्मक विकास के साथ-साथ शारीरिक एवं मानसिक विकास करना भी है ।
खेल के मैदान में खेलते समय बालक स्वतंत्र रूप से व्यवहार करता है तथा अपनी रुचियों को प्रकट करता है। अध्यापक छात्र के इन व्यवहारों का अध्ययन कर उसके रुचियों, रुझानों तथा शक्तियों का पता लगाते हैं तथा उसके व्यवहार के अनुकूल शिक्षण में अनुदेशन प्रदान करता है। खेल द्वारा बालक में निर्णय शक्ति एवं स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना का जन्म होता है ।
खेल बालक के स्वस्थ शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक विकास के लिए अत्यधिक आवश्यक है। यह विद्यालय की क्रियाओं का एक आवश्यक भाग है। खेल के मैदान में छात्र अन्य छात्रों के सम्पर्क में आता है इससे उसमें एकीकरण एवं सामंजस्यता की भावना का विकास होता है। खेल के मैदान में खेले जाने वाले विभिन्न खेलों से मनोरंजन के साथ-साथ शारीरिक व्यायाम भी हो जाता है ।
इस प्रकार खेल के लिए विद्यालय में खेल का मैदान होना अति आवश्यक है। शारीरिक विकास की कल्पना खेलों के मैदान के अभाव में पूरी नहीं हो सकती।
खेल के मैदान का महत्त्व — खेल के मैदान का निम्नलिखित महत्त्व है—
(1) पाठ्य-सहगामी क्रियाओं के आयोजन हेतु स्थान उपलब्ध कराता है।
(2) छात्रों के शारीरिक विकास में सहायता करता है ।
(3) बालकों को खेल में प्रतिभा दिखाने हेतु तैयार करने का स्थान है।
(4) मनोरंजन एवं सामंजस्यता की वृद्धि हेतु सहायता करता है।
(5) छात्रों की शक्तियों, रूझान एवं रुचियों को पहचानने का स्थान होता है।
(6) खेल का मैदान छात्रों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की वृद्धि में सहायता करता है।
कैन्टीन — कैन्टीन से अभिप्राय विद्यालय में स्थित एक ऐसे स्थान से होता है जहाँ अवकाश अथवा मध्यावकाश के समय छात्र शुद्ध एवं ताजा भोजन अथवा नाश्ता प्राप्त करते हैं। प्राय: शिक्षक भी अपने लिए चाय अथवा अन्य खाद्य वस्तुएँ यहीं से मँगाते हैं।
प्राय: प्रत्येक स्कूल में एक कैन्टीन होती है। यह विद्यार्थियों के लिए बड़ा रुचिकर स्थान होता है। विद्यालय के संगठन के समय ही इसका प्रावधान किया जाता है तथा इसका एक स्थान निश्चित कर दिया जाता है। इसमें चाय, कॉफी, कोलड्रिंक्स इत्यादि पेय पदार्थों के साथ खाने की वस्तुएँ, पैकेट बन्द सामग्री एवं भोजन की व्यवस्था होती है। कैन्टीन का संचालन प्रायः विद्यालय प्रशासन करता है तथा इसमें बिना लाभ प्राप्त किए बालकों को दोपहर का भोजन या जलपान का प्रबन्ध होता है।
इसका प्रचलन बालकों के स्वास्थ्य एवं स्वच्छता का ध्यान रखते हुए किया गया। प्रारम्भ में बालक विद्यालय के बाहर से वस्तुओं का क्रय करते थे जो अस्वस्थकर एवं स्वास्थ्य मानकों के प्रतिकूल होती थी । इसका प्रभाव बालकों के स्वास्थ्य पर पड़ता था तथा वे विभिन्न बीमारियों की चपेट में आ जाते थे। इससे उनके अधिगम, स्वास्थ्य एवं कक्षा उपस्थिति प्रभावित होती थी। विद्यालय की यह भी जिम्मेदारी है कि विद्यालय समय में बालक के खान-पान एवं स्वास्थ्य की उचित देखभाल एवं व्यवस्था हो । वे जो भी भोजन एवं स्वल्पाहार ले रहे हैं वह स्वास्थ्य के अनुकूल हो ।
इन्हीं उद्देश्यों के पूर्ण करने हेतु विद्यालय में कैन्टीन की व्यवस्था का प्रावधान हुआ। गुणवत्ता एवं मितव्ययता हेतु शिक्षक एवं प्राचार्य को समय-समय पर कैन्टीन का पर्यवेक्षण करते रहना चाहिए तथा छात्रों से भी बनने वाली खाद्य वस्तुओं के बारे में पृष्ठपोषण लेते रहना चाहिए ।
कैंटीन के उद्देश्य एवं लक्ष्य – स्कूल कैंटीन के प्रमुख उद्देश्य एवं लक्ष्य निम्नलिखित हैं—
(1) छात्रों की पोषण आवश्यकता की जानकारी रखना ।
(2) खाद्य पदार्थों में विविधता को बनाए रखना ।
(3) उचित मूल्य पर खाद्य एवं पेय पदार्थ उपलब्ध कराना।
(4) छात्रों में पौष्टिक आहार के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करना।
(5) स्वास्थ्य अधिकारियों की सलाह को अपनाना एवं छात्रों को इससे अवगत कराना।
(6) स्कूल कैंटीन को CBSE के दिशा-निर्देशों के अनुसार छात्रों को खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराना ।
(7) दिशा-निर्देशों के अनुसार स्वच्छता मानकों को पूर्ण करना ।
(8) यह सुनिश्चित करना कि कैंटीन के सभी कर्मचारी (कार्यरत एवं स्वैच्छिक) स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के सभी मानकों को पूर्ण करें।
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