शिक्षा के अधिकार की चुनौतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

शिक्षा के अधिकार की चुनौतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर— शिक्षा के अधिकार की चुनौतियाँ (Challenges of Right to Education) — जीवन के सम्पूर्ण विकास का कार्य दो-तिहाई विकास छ: वर्ष की आयु में होता है। अतः पूर्व प्राथमिक शिक्षा बालक के सर्वोत्तम विकास की आधारशिला है। हमारे देश में बालकों के सर्वोत्तम विकास के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की समुचित व्यवस्था की गई है, परन्तु हमारी प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था में अनेक ऐसी समस्याएँ है, जो शिक्षा के अधिकार की चुनौतियों के रूप में हमारे सामने है और ये चुनौतियाँ अथवा समस्याएँ निम्नलिखित हैं—
(1) प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति – देश में पूर्व प्राथमिक विद्यालयों का सदैव अभाव रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो इस प्रकार के विद्यालयों का पूर्णतः अभाव है। नगरीय क्षेत्रों के विद्यालय भी आर्थिक तंगी में चलते हैं। ये विद्यालय अच्छे तथा स्वास्थ्यवर्द्धक स्थानों पर नहीं हैं। साथ ही इन विद्यालयों का पर्यावरण का भी दूषित है। विद्यालयों की ऐसी स्थितियों के कारण ही छोटे बालकों के मन में प्रारम्भ से ही इनके प्रति ऊब उत्पन्न हो जाती है और वह इनके प्रति आकर्षित नहीं हो पाते।
(2) दोषपूर्ण पाठ्यक्रम – वर्तमान में प्रचलित पाठ्यक्रम बालकों के अनुकूल नहीं है। यह पाठ्यक्रम बालकों की ज्ञानेन्द्रियों को भलीभाँति प्रशिक्षित नहीं करता तथा यह बालकों में समुचित आदतों का भी विकास नहीं कर पाता।
(3) अपव्यय एवं अवरोधन – पूर्व प्राथमिक स्तर पर अपव्यय एवं अवरोधन की बड़ी समस्या है। इस समस्या के कारण अधिकांश बालक-बालिकाएँ अपना अध्ययन बीच में ही छोड़ देते हैं।
(4) शिक्षण सामग्री तथा प्रणाली का अभाव – ऐसे विद्यालयों में बालकों के लिए शिक्षण सामग्री का पूर्ण रूप से अभाव होता है। छोटे-छोटे बालकों के लिए अतिरिक्त शिक्षण सामग्री की आवश्यकता होती है। छोटे बालकों के लिए शिक्षण सामग्रियों का प्रयोग उनकी मानसिक योग्यताओं तथा पारिवारिक स्थितियों एवं शारीरिक क्षमताओं के अनुसार एक सफल अध्यापक या अध्यापिका को उपयोग में लानी चाहिए अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि होने लगती है।
(5)  प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव –  हमारे देश में पूर्व स्थापित बाल मन्दिरों, बाल-बाड़ियों तथा विद्यालयों के लिए उपयुक्त संख्या में प्रशिक्षित अध्यापक-अध्यापिकाएँ नहीं मिलती। केवल अप्रशिक्षित अध्यापिकाओं से ही काम लिया जाता है क्योंकि ये सरलता से उपलब्ध हो जाती है। शिशु शिक्षा केन्द्र में अध्यापकों की नियुक्ति प्रशिक्षित मानदण्डों को लेकर नहीं की जाती और अप्रशिक्षित अध्यापकों को कम वेतन तथा अल्प सुविधाओं पर रख लिया जाता है। ऐसे अध्यापक शिशुओं पर ध्यान नहीं देते, फलतः शिशु शिक्षा का कार्य प्रगति नहीं कर पाता है।
(6) शासकीय उदासीनता – सरकार आँकड़ों तथा घोषणाओं में सिमटकर रह गई है। आँकड़े आकर्षक है लेकिन कार्य में गतिशीलता तथा सक्रियता के दर्शन नहीं है। मिली-जुली सरकारों के कारण तथा सरकार के आत्मबल कम होने के फलस्वरूप शिक्षा पर ध्यान देना कम हो गया है, इससे भी शिक्षा के अधिकार के क्रियान्वयन को पर्याप्त गति तथा सफलता नहीं मिल पा रही है। अनेक ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्र तो प्राथमिक शिक्षा के नाम पर आज भी शून्य स्थिति में बने हुए हैं।
(7) विद्यालय में अनुपस्थित रहना (Absence in School) – अनेक अवसरों में अनुपस्थित पाए जाने के कारण बालक के शैक्षिक विकास की प्रक्रिया रूक जाती है और उसका सर्वोत्तम विकास बाधित हो जाता है।
(8) अभिभावकों द्वारा असहयोग एवं उपेक्षा – अपने देश से अभी भी निरक्षरता का कलंक नहीं मिटा है। अशिक्षित माता-पिता अपने बालकों को शिक्षा का महत्त्व नहीं समझाते न ही स्वयं समझते हैं। परिणामस्वरूप वे छोटे बालकों की शिक्षा की ओर विशेष रुचि नहीं लेते। बालकों को विद्यालय में पहुँचाने के बाद भी अभिभावक उन पर ध्यान नहीं दे पाते। विद्यालय में बालकों को सौंपकर और सामर्थ्य के अनुसार व्ययं कर अपना दायित्व पूर्ण समझ लेते हैं। यह भी पूर्व प्राथमिक शिक्षा के विकास में एक समस्या है।
(9) विद्यालय व्यवस्था में रुचि का अभाव (Lack of Interest in School System) – विद्यालय व्यवस्था में जिन छात्रों को रुचि नहीं होती उन छात्रों द्वारा न तो विद्यालय के किसी कार्यक्रम में रुचि दिखाई जाती है और न शिक्षण प्रक्रिया के प्रति आकर्षित होते हैं। इस स्थिति के कारण ऐसे बालकों का शैक्षिक विकास कठिन हो जाता है। अतः विद्यालय व्यवस्था में रुचि का अभाव शिक्षा के अधिकार के मार्ग में बाधा माना जाता है।
(10) विद्यालय में पूर्ण समय तक उपस्थित न रहना (Absence in School for full time) – विद्यालय समय के लिए निर्धारित समयसारणी के अनुासर बहुत-से बालक उपस्थित नहीं रहते हैं अर्थात् बालक विद्यालय में तो आए हैं परन्तु किसी न किसी कारण पूर्ण समय व्यतीत करने से पहले ही भाग गए। इस अवस्था के कारण बालक का शैक्षिक विकास नहीं हो पाता और विद्यालय से भागने की उनकी यह प्रवृत्ति शिक्षा के अधिकार में बाधा बन जाती है ।
शिक्षा के अधिकार को इन शैक्षिक चुनौतियों का सामना करने के लिए निम्नलिखित सुझाव प्रयोग में लाए जा सकते हैं—
(1) प्राथमिक विद्यालयों को राज्य सरकार द्वारा पर्याप्त मात्रा में अनुदान दिया जाए।
(2) प्रशिक्षित अध्यापिकाओं की व्यवस्था की जाए। बाल मन्दिरों एवं आंगनबाड़ियों को शिक्षित करने के लिए पर्याप्त मात्रा में प्रशिक्षण महाविद्यालयों की स्थापना की जाए।
(3) अध्यापक-अभिभावकों के संघ बनाकर पूर्ण प्राथमिक शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाया जाना चाहिए।
(4) जो बालक विद्यालय से अधिक अनुपस्थित रहते हैं, उनके विद्यालय न आने के कारणों को जानकर उनको दूर करना चाहिए।
(5) विद्यालय की स्थापना अच्छे भवन तथा वातावरण में की जानी चाहिए ।
(6) राज्य सरकारें विद्यालयों पर अधिकाधिक मात्रा में नियंत्रण रखें और उनकी निरीक्षण व्यवस्था लागू करें।
(7) बालकों में विद्यालयों के प्रति रुचि विकसित करनी चाहिए, जिससे वे पूर्ण समय तक विद्याल में रहें।
(8) जिन कारणों से बालक विद्यालय में अरुचि रखते हैं उन कारणों का पता लगाकर उन्हें दूर किया जाना चाहिए
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