शैक्षिक आंकलन की चुनौतियों का वर्णन करते हुए इसके सुधार हेतु सुझाव दीजिए।

शैक्षिक आंकलन की चुनौतियों का वर्णन करते हुए इसके सुधार हेतु सुझाव दीजिए।

उत्तर – शैक्षिक आंकलन की चुनौतियाँ (Challenges of Educational Assessment)– शैक्षिक आंकलन में शिक्षक को निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है—
(1) उद्देश्यों को प्राप्त करने की चुनौती– सभी पाठ्यक्रम सम्बन्धी विश्वसनीय, वैध तथा उचित अधिगम मूल्यांकन के तरीकों एवं उपकरणों का मिलान करना जिससे स्पष्ट एवं प्रासंगिक उद्देश्यों को प्राप्त । करने की चुनौती |
(2) प्रशिक्षण की चुनौती – शिक्षकों को मूल्यांकन या आंकलन के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है या उनके प्रशिक्षण की उचित व्यवस्था नहीं होती है जिससे शिक्षक अच्छी तरह से छात्रों का आंकलन नहीं कर पाते हैं।
(3) उपकरण सम्बन्धी–उचित, निष्पक्ष एवं छात्र तथा शिक्षक अनुकूल आंकलन उपकरण का निर्माण करना या प्राप्त करना, शिक्षक के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। ये उपकरण बहुत ही महँगे तथा अस्थायी प्रकृति के होते हैं जिसके परिणामस्वरूप कई विद्यालयों में इनके होने के बावजूद शिक्षक इनका उपयोग नहीं करते हैं।
(4) योगात्मक मूल्यांकन की समस्या – योगात्मक मूल्यांकन, जैसे-मौखिक या लिखित परीक्षा, समस्या को सुलझाने के अनुप्रयोग इत्यादि को छात्रों के ऊपर ठीक से लागू न कर पाने की समस्या या इनके माध्यम से छात्रों का परीक्षण किस प्रकार से किया जाएगा। ये ऐसे तथ्य हैं जिससे शिक्षकों को अत्यधिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
(5) समय एवं संसाधनों का अभाव – देश के अधिकांश राजकीय विद्यालयों में संसाधनों का अभाव रहता है या फिर समय पर संसाधनों का उपलब्ध न होना एक प्रमुख समस्या है। इन आवश्यक संसाधनों के अभाव के कारण छात्रों का अधिगम प्रभावित होता है। इससे छात्रों का आंकलन अच्छी तरह से नहीं हो पाता है।
(6) समझ का अभाव – आंकलन से सम्बन्धित अवधारणाओं एवं व्यावहारिक समझ का शिक्षकों में अभाव । जैसे—आंकलन से सम्बन्धित प्रश्नावली को कैसे तैयार किया जाए, प्रश्नावली में किस प्रकार के प्रश्नों को रखा जाए, छात्रों को उचित निर्देशन किस प्रकार से दिया जाए इत्यादि। ये ऐसे तथ्य हैं जिसकी अधिकांश शिक्षक उपेक्षा करते हैं परन्तु इसका दुष्परिणाम छात्रों के आंकलन पर पड़ता है।
(7) कम विधियों का ज्ञान – शिक्षकों को शिक्षण अधिगम की बहुत कम विधियों का ज्ञान होता है जिससे शिक्षक छात्रों को परम्परागत तरीके से ही ज्ञान प्रदान करते हैं और उसी के आधार पर मूल्यांकन करते हैं, जिससे छात्र के व्यक्तित्व के समस्त पहलुओं का आंकलन नहीं हो पाता है और छात्र अपने वास्तविक ज्ञान एवं अधिगम के बारे में सटीक जानकारी नहीं प्राप्त कर पाता है।
(8) नवीनता का अभा  – नवीन पाठ्यचर्या के अनुसार छात्रों को ज्ञान प्रदान करना तथा उसके अनुसार स्वयं को तैयार करना जिससे आंकलन करने में किसी प्रकार की समस्या न उत्पन्न हो ।
(9) योग्य शिक्षकों एवं विशेषज्ञों का अभाव – देश के अधिकांश विद्यालयों में योग्य शिक्षकों एवं विशेषज्ञों की कमी है जिसके कारण शिक्षण कार्य प्रभावित होता है। इससे विद्यार्थियों तथा माता-पिता का शिक्षा के प्रति उदासीनता की भावना में वृद्धि होने लगती है तथा विद्यार्थी स्कूल जाना बन्द कर देते हैं। इससे अपव्यय एवं अवरोधन की समस्या तो आती ही है, साथ ही छात्रों का मूल्यांकन भी ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है।
(10) शिक्षकों के लिए चुनौती– समावेशी तथा बाल केन्द्रित शिक्षा के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को प्राप्त करना, शिक्षकों के लिए मुख्य चुनौती है। समावेशी शिक्षा के अन्तर्गत विभिन्न पृष्ठभूमि तथा सामान्य रूप से शारीरिक एवं मानसिक विकलांग छात्रों को एक साथ शिक्षा प्रदान की जाती है। इससे शिक्षक समस्त छात्रों को एक ही मापदण्ड पर आंकलित नहीं कर सकता है, वहीं दूसरी ओर बाल केन्द्रित शिक्षा में अब शिक्षक की भूमिका मात्र अनुदेशक सदृश हो गई है। ऐसे में शिक्षक को आंकलन करने में भी काफी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
सुझाव (Suggestions)– शैक्षिक आंकलन में शिक्षकों के समक्ष आने वाली चुनौतियों को समाप्त करने या कम करने के लिए निम्नलिखित सुझावों को अपनाया जाना चाहिए—
(1) उचित प्रशिक्षण – शिक्षा तथा शिक्षण-अधिगम में वर्तमान समय में बहुत परिवर्तन हो गया है। शिक्षा अब शिक्षक के स्थान पर छात्र केन्द्रित हो गई है। शिक्षक की भूमिका छात्र का निरीक्षण करना तथा आवश्यकता पड़ने पर उन्हें उचित दिशा-निर्देश प्रदान करना है। ऐसी स्थिति में शिक्षकों को उचित प्रशिक्षण बहुत आवश्यक है क्योंकि भारत जैसे देश में अधिकांश शिक्षक आज भी अप्रशिक्षित या अद्ध प्रशिक्षित हैं ऐसी स्थिति में उनसे छात्रों के उचित आंकलन एवं अधिगम को उम्मीद करना अपेक्षित नहीं होगा ।
(2) आधुनिक उपकरणों का प्रयोग – शिक्षकों को पाठ्यक्रम समस्त वैध एवं विश्वसनीय आंकलन / मूल्यांकन उपकरणों के बारे में पूर्ण जानकारी तथा प्रशिक्षण प्रदान करना, जिससे वे छात्रों के आंकलन में आधुनिक उपकरणों का प्रयोग कर सकें। आधुनिक उपकरणों का प्रयोग या तो विशेषज्ञ कर सकते हैं या फिर प्रशिक्षित शिक्षक । सामान्य शिक्षकों के लिए इनका उपयोग कर पाना सम्भव नहीं है। इसके साथ ही यदि वे उनका प्रयोग करते हैं तो उपकरणों के खराब होने या फिर उचित परिणाम आने की संभावना न के बराबर रहती है। ऐसे में ये बहुत आवश्यक है कि शिक्षकों को विशेषज्ञों की सहायता से प्रशिक्षित किया जाए तथा ऐसे उपकरणों के निर्माण को बढ़ावा दिया जाए जिनकी लागत कम हो तथा वे टिकाऊ प्रकृति के हो।
(3) योगात्मक एवं रचनात्मक आंकलन – योगात्मक एवं रचनात्मक आंकलन से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के परीक्षणों को छात्रों से पूर्ण कराने के लिए शिक्षक एवं विशेषज्ञों की एक टीम बनाकर छात्रों को अनुदेशन देना तथा फिर उनका परीक्षण पूर्ण करना ।
(4) संसाधन उपलब्धता – प्रत्येक विद्यालय में समय पर संसाधन उपलब्ध हो तथा शिक्षकों को उनके प्रयोग के परीक्षण के लिए आवश्यक है कि शिक्षा पर राष्ट्रीय आय का कम से कम 6 प्रतिशत अवश्य खर्च किया जाए। इसकी समय-समय पर विभिन्न शिक्षा आयोग ने भी संस्तुति की है।
(5) आंकलन के सम्बन्धित प्रशिक्षण–आंकलन से सम्बन्धित अवधारणाओं एवं व्यावहारिक समझ का शिक्षकों में अभाव पाया जाता है क्योंकि शिक्षण-प्रशिक्षण के दौरान उन्हें आंकलन से सम्बन्धित बहुत कम एवं परम्परागत प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इसके लिए आवश्यक  कि उन्हें आंकलन सम्बन्धी प्रश्नावली, विभिन्न प्रकार के प्रश्नों को  रखने का क्रम छात्रों को उचित प्रकार से निर्देशन देने का प्रशिक्षण प्रदान किया जाए तथा समय-समय पर विशेषज्ञों को बुलाकर शिक्षकों को मार्गदर्शन तथा विभिन्न प्रकार की शंकाओं एवं समस्याओं को दूर किया जाए।
(6) सत्र प्रारम्भ से पूर्व प्रशिक्षण – शिक्षकों को नवीन पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम के निर्माण के पश्चात् विद्यालयों में नये सत्र के प्रारम्भ से पूर्व ही पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के लिए प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए, जिससे शिक्षक छात्रों को नवीन तथ्यों एवं अवधारणाओं को ठीक से समझा सके तथा उन्हें उचित प्रकार से अधिगम प्रदान कर आंकलन कर सकें ।
(7) योग्य एवं प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति–विद्यालयों में योग्य एवं प्रशिक्षित शिक्षकों की समय पर नियुक्ति की जाए, जिससे वे छात्रों को उचित प्रकार से अधिगम प्रदान कर सके तथा उनके प्रत्येक पहलू का आंकलन भी कर सकें। देश के अधिकांश हिस्सों में अभी भी अप्रशिक्षित या अर्द्धशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति है जिसका दुष्परिणाम छात्रों को उठाना पड़ता है। अतः सरकार को शिक्षकों की नियुक्ति की उचित एवं पारदर्शी प्रक्रिया का निर्माण करना चाहिए ।
(8) नयी शिक्षा व्यवस्था के अनुरूप प्रशिक्षण – समावेशी तथा बाल केन्द्रित शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि शिक्षकों को नई शिक्षा व्यवस्था के अनुरूप प्रशिक्षण प्रदान किया जाए। इसके साथ ही शिक्षकों, मनोवैज्ञानिकों, समाज, सेवकों, चिकित्सकों इत्यादि को भी समय-समय पर बैठकं होनी चाहिए, जिससे छात्रों के समक्ष आने वाली विभिन्न समस्याओं एवं उनके समाधान के बारे में शिक्षक जान सकें तथा उन्हें आवश्यकतानुसार प्रयोग कर सकें।
इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि यद्यपि छात्रों के आंकलन में कई प्रकार की चुनौतियाँ शिक्षकों के सामने आती है परन्तु यदि शिक्षकों को उचित प्रकार से प्रशिक्षण तथा समयसमय पर पुनश्चर्या प्रशिक्षण प्रदान किया जाए, विद्यालयों को समय पर संसाधन उपलब्ध कराना तथा शिक्षा पर व्यय को बढ़ाना इत्यादि । ये ऐसे उपाय हैं जिससे छात्रों का शिक्षक उचित प्रकार से अधिगम एवं उनका आंकलन कर सकते हैं। छात्रों के आंकलन एवं मूल्यांकन के आधार पर ही उन्हें उचित प्रकार से पृष्ठपोषण एवं अनुदेशन दिया जा सकता है।
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