संक्षेपण से आप क्या समझते क्या समझते हैं ? संक्षेपण में क्या गुण होने चाहिए ?
संक्षेपण से आप क्या समझते क्या समझते हैं ? संक्षेपण में क्या गुण होने चाहिए ?
उत्तर— संक्षेपण का अर्थ (Meaning of Summarizing )– संक्षेपण एक स्वत: पूर्ण रचना है। उसे पढ़ लेने के बाद मूल सन्दर्भ को पढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती है। सामान्यतः संक्षेपण में लम्बे-चौड़े विवरण, पत्राचार आदि की सारी बातों को अत्यन्त संक्षिप्त और क्रमबद्ध रूप में रखा जाता है। इसमें हम कम-से-कम शब्दों से अधिक-से अधिक विचारों, भावों और तथ्यों को प्रस्तुत करते हैं। वस्तुत: संक्षेपण किसी बड़े ग्रन्थ का संक्षिप्त संस्करण, बड़ी मूर्ति का लघु अंक और बड़े चित्र का छोटा चित्रण है। इसमें मूल की कोई भी आवश्यक बात छूटने नहीं पाती।
परिभाषा– किसी विस्तृत विवरण, सविस्तार, व्याख्या, वक्तव्य, पत्र व्यवहार या लेखे के तथ्यों और निर्देशों के ऐसे संयोजन को ‘संक्षेपण’ कहते हैं, जिसमें अप्रासंगिक, असम्बद्ध, पुनरावृत्त, अनावश्यक बातों का त्याग और सभी अनिवार्य, उपयोगी तथा मूल तथ्यों का प्रवाहपूर्ण संक्षिप्त संकलन हो ।
संक्षेपण के गुण / विशेषताएँ– एक अच्छे संक्षेपण में निम्नलिखित गुण / विशेषताएँ होने चाहिए—
(1) पूर्णता– संक्षेपण स्वतः पूर्ण होना चाहिए । संक्षेपण करते समय इस बात का ध्यान चाहिए कि उसमें कहीं कोई महत्त्वपूर्ण बात छूट तो नहीं गई। आवश्यक और अनावश्यक अंशों का चुनाव खूब सोचसमझ कर करना चाहिए। संक्षेपण में उतनी ही बातें लिखी जाएँ, जो मूल अवतरण या सन्दर्भ में हों। मूल में जिस विषय या विचार पर जितना जोर दिया गया है, उसे उसी अनुपात में, संक्षिप्त रूप में लिखा जाना चाहिए।
(2) भाषा की सरलता– संक्षेपण के लिए यह बहुत जरूरी है कि उसकी भाषा सरल और परिष्कृत हो । क्लिष्ट और समास बहुल भाषा का प्रयोग नहीं होना चाहिए। जो कुछ लिखा जाए, वह साफ-साफ हो, उसमें किसी तरह का चमत्कार या चुनाव फिराव लाने की कोशिश न की जाए।
(3) स्पष्टता– संक्षेपण की अर्थव्यंजना स्पष्ट होनी चाहिए। मूल अवतरण का संक्षेपण लिखा जाए, जिसके पढ़ने से मूल सन्दर्भ का अर्थ पूर्णता और सरलता से स्पष्ट हो जाए। ऐसा न हो कि संक्षेपण का अर्थ स्पष्ट करने के लिए मूल सन्दर्भ को ही पढ़ना पढ़े। इसलिए, स्पष्टता के लिए पूरी सावधानी रखने की जरूरत होगी।
(4) संक्षिप्तता– संक्षिप्तता संक्षेपण का एक प्रधान गुण हैं। यद्यपि इसके आकार का निर्धारण और नियमन संभव नहीं, तथापि संक्षेपण को सामान्यतया मूल का तृतीयांश होना चाहिए।
किन्तु इस बात का ध्यान अवश्य रखा जाए कि मूल की कोई भी आवश्यक बात छूटने न पाए।
(5) प्रवाह और क्रमबद्धता– संक्षेपण में भाव और भाषा का प्रवाह एक आवश्यक गुण है। भाव क्रमबद्ध हों और भाषा प्रवाहपूर्ण । क्रम प्रवाह के सन्तुलन से ही संक्षेपण का स्वरूप निखरता है। वाक्य सुसम्बद्ध और गठित हों। प्रवाह बनाए रखने के लिए वाक्य रचना में नहाँ-तहाँ ‘अतः’, ‘अतएव’, ‘तथापि’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है। एक भाव दूसरे भाव से सम्बद्ध हो।
(6) शुद्धता– संक्षेपण में भाव और भाषा की शुद्धता होनी चाहिए। शुद्धता से हमारा मतलब है कि संक्षेपण में वे ही तथ्य तथा विषय लिखे जाएँ, जो मूल सन्दर्भ में हों। इसमें मूल के आशय को विकृत या परिवर्तित करने का अधिकार नहीं होता और न अपनी ओर से किसी तरह की टीका-टिप्पणी होनी चाहिए।
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