संतुलित आहार क्या है ? संतुलित आहार के पोषक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
संतुलित आहार क्या है ? संतुलित आहार के पोषक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
अथवा
संतुलित आहार क्या है ?
उत्तर— संतुलित आहार — सन्तुलित आहार वह आहार है जो मनुष्य की आवश्यकता के अनुसार सभी पोषक तत्त्वों को सही मात्रा में प्रदान करता है। एक लिंग, जलवायु, कार्य की प्रगति, किशोरावस्था, गर्भावस्था आदि विशेष स्थिति और रोग की अवस्था में एक मनुष्य के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व दूसरे मनुष्य के लिए आवश्यक पोषक तत्त्वों से मात्रा में भिन्न होते हैं।
बालक को अपने आहार में पर्याप्त मात्रा में इन तत्त्वों को लेना चाहिए। इनसे शरीर शक्ति देने के साथ चुस्त भी रहता है। काम करने वाले व्यक्ति के लिए 2400 कैलोरी ऊर्जा चाहिए, वह सन्तुलित आहार द्वारा ही सम्भव है।
संतुलित भोजन के पोषक तत्त्व – भोज्य के विशेषज्ञों के अनुसार, मानव-शरीर के समुचित विकास और वृद्धि के लिए निम्नलिखित पोषक तत्त्वों की आवश्यकता पड़ती है—
(1) कार्बोहाइड्रेट – कार्बोहाइड्रेट कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का एक कार्बन यौगिक है। इन यौगिकों को हम स्टॉर्च और शर्करा के रूप में उपयोग करते हैं। ऐसे पदार्थ के उपयोग से हमें ऊर्जा और गर्मी मिलती है। स्टार्च हमें विशेषकर चावल, गेहूँ, मकई, ज्वार, बाजरा, आलू इत्यादि से मिलता है। स्टार्च एक वानस्पतिक पदार्थ है। स्टार्च जल में घुलनशील होता है। शर्करा वनस्पति, पशुओं से प्राप्त होती है। यह विशेषकर गन्ना, गुड़, चीनी, शहद, अंगूर तथा मीठे फलों से प्राप्त होता है। स्टार्च की अपेक्षा शर्करा से अधिक ऊर्जा और गर्मी प्राप्त होती है। कार्बोहाइड्रेट शरीर को शक्ति देते हैं ।
(2) प्रोटीन – प्रोटीन में कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन के अतिरिक्त नाइट्रोजन, गंधक और अन्य खनिज भी विद्यमान हैं। प्रोटीन से शरीर में ऊतकों तक की वृद्धि होती है, नई कोशिकाओं का निर्माण होता है। टूटी-फूटी कोशिकाओं की मरम्मत होती है । वानस्पतिक प्रोटीन दो दल वाले अनाजों जैसे— चना, अरहर, मूँग, सोयाबीन तथा बादाम, अखरोट आदि में पाया जाता है। कुछ अंशों में यह गेहूँ, मकई आदि से भी प्राप्त होता है। प्राणिज प्रोटीन (Animal Protein), अण्डे, दूध, माँस आदि से प्राप्त होता है। पाचन के बाद प्रोटीन अमीनो अम्ल में बदल जाते हैं । प्रोटीन जीव का मुख्य भाग होता है।
(3) वसा – वसा भी कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का एक यौगिक है। वसा से शरीर में शक्ति उत्पन्न होती है और शरीर गर्म रहता है। प्राकृतिक वसा हमें सरसों, तिल, नारियल, मूँगफली आदि के तेल से मिलती है। प्राणिज वसा हमें मक्खन, घी, चर्बी, मछली आदि के तेल से प्राप्त होती है। वसाओं में कार्बोहाइड्रेट से दुगुनी शक्ति एवं गर्मी उत्पन्न होती है। एक ग्राम कार्बोहाइड्रेट से 4.1 किलो कैलोरी ऊर्जा तथा 1 ग्राम में 9.3 किलो कैलोरी मिलती है।
(4) खनिज लवण – लवणों में साधारण नमक, कैल्शियम कार्बोनेट, कैल्शियम, फॉस्फेट, पोटेशियम फॉस्फेट, सोडियम फॉस्फेट और लोहे के लवण मुख्य हैं। हमें खाद्य पदार्थों से प्राप्त होते हैं । लवणों में जीवन क्रियाएँ नियमित रूप से होती है। भिन्न-भिन्न लवण अलग-अलग ऊतकों के लिए आवश्यक है।
मुख्य खनिज लवण हैं – कैल्शियम, लोहा, फॉस्फोरस, आयोडीन, क्लोरीन। खनिज लवण मिट्टी में पाये जाते हैं अथवा जानवरों के माँस में । ये स्वतन्त्र रूप में भोजन में पाये जाते हैं। वे प्रत्येक कोशिका के अन्दर पहुँच जाते हैं । हड्डियों में कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम तथा मुलायम ऊतकों में पोटेशियम मिलता है। शारीरिक अनेक क्रियाओं में इन लक्षणों का योगदान होता है, जैसे माँसपेशियों का सिकुड़न, शरीर में पानी की सही मात्रा बनाये रखना, अम्ल और क्षार का साम्य बनाये रखना आदि ।
हड्डियों के बनाने में कैल्शियम, मैग्नीशियम और फॉस्फोरस का योग होता है, लोहा, ताँबा और कोबाल्ट प्रोटीन तथा विटामिन बी के साथ मिलकर हीमोग्लोबिन एवं लाल रक्त कणिकाएँ बनाते हैं।
(i) कैल्शियम – हड्डियों और दांतों को मजबूत बनाने में, खून का थक्का जमाने में, दिल और नाड़ी की सही व्यवस्था रखने में कैल्शियम काम आता है। साधारण अवस्था में रोज 0.4 से 0.8 ग्राम कैल्शियम शरीर को मिलना चाहिए, बच्चों, गर्भवती स्त्री, धात्री माता के भोजन में 1.0 ग्राम कैल्शियम प्रतिदिन होना चाहिए ।
दूध और दूध से बने पदार्थों में हरी पत्तेदार सब्जियों में, पालक, चौलाई में कैल्शियम मिलता है।
(ii) फॉस्फोरस – शरीर को जितना फॉस्फोरस मिलता है, उसका 80 हड्डियों में तथा 20 ऊतकों में होता है। फॉस्फोरस शरीर में निम्नलिखित कार्य करता है—दाँत तथा हड्डियाँ बनाना, क्षार और अम्ल में साम्य रखना, माँस-पेशियों के सिकुड़ने और फैलने के लिए ऊर्जा प्रदान करना ।
फॉस्फोरस तथा कैल्शियम दोनों की भोजन में कमी से रिकेट्स नामक रोग हो जाता है और यदि विटामिन ‘डी’ की भी भोजन में कमी होती है तो रिकेट्स का रोग भयंकर रूप धारण कर लेता है। फॉस्फोरस के स्रोत हैं— प्रोटीन युक्त पदार्थ – दूध, अण्डे की जर्दी, माँस, मछली ।
(iii) लोहा – शरीर को प्रतिदिन 3.5 ग्राम लोहे की जरूरत होती है। जिसका 90 हीमोग्लोबिन में और 4 मायोग्लोविन में, 2.5 यकृत, हड्डी, मज्जा, तिल्ली और गुर्दों में जमा रहता है, लोहा शरीर में ऑक्सीकरण की क्रिया करता है। हीमोग्लोबिन फेफड़ों से ऑक्सीजन लेकर ऊतक तक पहुँचाता है और ऊतकों से निकली कार्बन डाइऑक्साइड वापस फेफड़ों में पहुँचाता है।
लोहे की कमी से एनीमिया रोग हो जाता है। जो छोटे बच्चों और गर्भवती स्त्रियों में पाया जाता है। एनीमिया के साधारण लक्षण हैंथकावट, चक्कर आना, सांस चढ़ना, सिर में दर्द, नींद का न आना, धुँधला दिखायी देना, त्वचा का पीला पड़ना, हाथ पैर में सुइयाँ चुभना, उल्टी आना आदि।
लोहे का उत्तम स्रोत है यकृत । माँस और अण्डे की जर्दी में भी लोहा मिलता है। चुकन्दर, सूखेफल, खजूर, खुबानी, शक्कर, राव, गुड़ इसके अन्य स्रोत हैं।
(iv) आयोडीन – यह बढ़वार भी महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व है, जो बच्चों की के लिए जरूरी होता है। आयोडीन की कमी से थायराइड ग्रन्थि जाती है ज़िसे गवाइटर कहते हैं। समुद्री मछलियों में, पौधों के फूल और पत्तियों में आयोडीन मिलता है। बढ़
(v) फ्लोरिन – यह लवण दाँतों में एसिड नहीं बनने देता, इसके स्रोत हैं— अण्डे, दूध, पानी, मछली ।
(5) जल – यह हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का यौगिक है । यह अपने मूल रूप के अतिरिक्त हमें दूध, फल साग-सब्जी तथा भोजन के अन्य पदार्थों से प्राप्त होता है जल में घुलकर पेशाब और पसीना द्वारा बाहर निकल जाता है। विभिन्न रासायनिक क्रिया-प्रतिक्रियाएँ जल की सहायता से होती हैं ।
शरीर का 90 भाग जल है। यह पाचन के दौरान बहुत से तत्त्वों के लिए विलेयक के रूप में कार्य करता है, शरीर का तापक्रम भी जल पर निर्भर रहता है, शरीर से पानी लगातार पसीने, मूत्र और मल के रूप में निकलता रहता है । इसलिए दिन भर में कम से कम 3 लीटर पानी अवश्य पीना चाहिए ।
(6) विटामिन – यह कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, इत्यादि मूल तत्त्व का विशेष यौगिक है। विटामिन के द्वारा शरीर निरोग और स्वस्थ रहता है। विटामिन की उपस्थिति में भोजन के पोषक तत्त्वों में सक्रियता आ जाती है ।
प्रारम्भ में लोगों का विश्वास था कि प्राणी को स्वस्थ बनाये रखने के लिए केवल प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, जल तथा खनिज लवणों की ही आवश्यकता होती है। परन्तु सन् 1881 में परीक्षण द्वारा सिद्ध किया गया कि प्राणी केवल उपर्युक्त पाँच तत्त्वों पर ही जीवित नहीं रह सकता। जीवन को बनाये रखने के लिए कुछ अन्य पोषक तत्त्वों की भी आवश्यकता होती है । सन् 1912 में डॉ. फक् द्वारा इन अन्य पोषक तत्त्वों को विटामिन का नाम दिया गया। विटामिन की कमी के कारण अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। कुछ विटामिन पानी में अघुलनशील होते हैं और कुछ विटामिन वसा में घुलते हैं। विटामिन निम्नलिखित प्रकार के होते हैं—
(i) विटामिन ए (Vitamin A) – यह विटामिन चिकनाई, वसा तेल आदि में घुलने वाला है। यह मछली के तेल, अण्डे की जर्दी और पत्ती वाली हरी साग-सब्जियों, पके पीले फल, टमाटर, मक्खन आदि से प्राप्त होता है। यह श्वास सम्बन्धी रोगों से बचने तथा शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक होता है। इसकी कमी से रतौंधी का रोग हो जाता है ।
(ii) विटामिन बी (Vitamin B) – विटामिन बी का एक समूह है, इसमें लगभग 2 विभिन्न विटामिन सम्मिलित हैं। इस समूह के विटामिन जल में घुलने वाले हैं। इसकी कमी से बेरी-बेरी तथा एनीमिया आदि रोग हो जाते हैं। पौधों के बीज, दूध, माँस, मछली, हरी सागसब्जी, अण्डे की जर्दी फलों तथा खमीर से ये प्राप्त होते हैं ।
(iii) विटामिन सी (Vitamin C ) – यह जल में घुलने वाला विटामिन्स है, यह नींबू, सन्तरा, टमाटर तथा ताजी हरी साग-सब्जियों से प्राप्त होता है। इसकी कमी से स्कर्वी तथा हड्डियों का रोग हो जाता है। यह रुधिर वाहिनियों तथा हृदय को भी ठीक करता है।
(iv) विटामिन डी (Vitamin D ) – यह चिकनाई में घुलने वाला विटामिन है। यह मछली के तेल, घी, अण्डे की जर्दी इत्यादि से प्राप्त होता है। सूर्य के प्रकाश में शरीर के कुछ विशेष ऊतक इसे स्वयं तैयार कर लेते हैं। इसकी कमी से बच्चों में सूखा रोग हो जाता है। इसलिए इसकी बच्चों को अधिक आवश्यकता होती है ।
(v) विटामिन ई (Vitamin E ) – यह चिकनाई में घुलने वाला विटामिन है। इसकी कमी से यौन सम्बन्धी रोग हो जाते हैं। प्राकृतिक रूप में गेहूँ के अंकुर, दूध, मक्खन एवं हरी सब्जियों से यह विशेषतया प्राप्त होता है नर में इसकी कमी से नपुंसकता आ जाती है ।
(vi) विटामिन के (Vitamin K) – इस विटामिन की कमी के कारण रक्तस्राव तीव्र धारण कर सकता है। यह अधिकतर पालक, फूलगोभी, कमलगट्टा में पाया जाता है।
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