सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के प्रकार और महत्त्व का विस्तार से वर्णन कीजिए।

सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के प्रकार और महत्त्व का विस्तार से वर्णन कीजिए।

अथवा
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन से क्या अभिप्राय है ? सतत एवं | व्यापक मूल्यांकन के प्रकार बताइये ।
                               अथवा
व्यापक मूल्यांकन के सम्प्रत्यय को समझाइये।
उत्तर – सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Evaluation—CCE) –शिक्षा एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा एवं मूल्यांकन हमेशा साथ-साथ चलते हैं। जहाँ शिक्षा होती है वहाँ मूल्यांकन भी अपना कार्य करता है। मूल्यांकन भी सतत् अथवा निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है । इस प्रकार मूल्यांकन न सिर्फ ज्ञान से सम्बन्धित होता है बल्कि विकास के विभिन्न पक्षों, जैसे— कौशल, रुचियों, आदतों आदि से भी सम्बन्धित होता है। सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन योजना को विद्यालयों में लागू किया गया है तथा एन.सी.ई.आर.टी द्वारा सन् 2010 में पाठ्य पुस्तकों को इसके अनुसार संशोधित किया गया है। सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन योजना में पाठ्यपुस्तकों को इसके अनुसार संशोधित किया गया है। सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन योजना में एन.सी.ई.आर.टी. ने एक शैक्षिक सत्र कोर्स को दो सेमेस्टर में विभाजित किया है तथा प्रत्येक सेमेस्टर को दो संरचनात्मक आंकलन तथा एक समेकित आंकलन में विभाजित किया गया है।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन विद्यार्थियों की शैक्षिक प्रगति का व्यापक विवरण प्रस्तुत करता है जिससे विद्यार्थियों को उचित पृष्ठपोषण (Feedback) प्राप्त होता है जिसके आधार पर वे अपनी कमजोरियों और समस्याओं का निदान करके अपनी निष्पत्ति में सुधार एवं व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास कर सकें। इसके साथ ही शिक्षकों को भी एक मार्गदर्शन मिलता है तदनुसार वे अपनी अनुदेशनात्मक व्यूह रचनाओं में परिवर्तन करते हैं जिससे शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया अधिक प्रभावी बनायी जा सके परन्तु यह सत्य है कि सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन प्रक्रिया की सार्थकता शिक्षकों पर निर्भर करती है। यदि शिक्षक निष्पक्षता, निष्ठा, विश्वास तथा उत्तरदायित्व के साथ सतत् मूल्यांकन का कार्य करेंगे तो यह सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन निःसन्देह शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने में सहायक होगा।
सतत् मूल्यांकन का अर्थ (Meaning of Continuous Evaluation)—
सतत् मूल्यांकन से तात्पर्य नियमित एवं निरन्तर होने वाले मूल्यांकन से है। सतत् शब्द का प्रयोग शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया के सम्पूर्ण समन्वित आंकलन के लिए किया गया है। शिक्षा की प्रक्रिया विद्यार्थी के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करती हुई निरन्तर आगे बढ़ती रहती है और यही निरन्तरता मूल्यांकन में भी होनी चाहिए।
व्यापक मूल्यांकन का अर्थ (Meaning of Comprehensive Evaluation )—
व्यापक मूल्यांकन प्रक्रिया को ऐसी प्रक्रिया के रूप में समझा जाता है जो विद्यार्थी के ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं संज्ञानात्मक सभी पक्षों का सम्पूर्ण एवं व्यापक आंकलन करती है। इसमें विद्यार्थी के आंकलन के लिए विविध उपकरण एवं तकनीकी का प्रयोग किया जाता है। सभी शैक्षिक क्षेत्रों से सम्बन्धित योग्यताएँ तथा सभी गैर शैक्षिक व्यवहार के क्षेत्रों की प्रगति के मूल्य निर्धारण को व्यापक मूल्यांकन कहा जा सकता है। सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन का सम्प्रत्यय वास्तव में परीक्षण सुधार के निम्न सिद्धान्तों पर आधारित है—
(1) जो व्यक्ति शिक्षण कार्य करता है, उसी व्यक्ति के द्वारा विद्यार्थियों का मूल्यांकन किया जाए, बाह्य परीक्षक द्वारा नहीं ।
(2) मूल्यांकन कार्य सत्र के अन्त में न होकर सम्पूर्ण सत्र में निरन्तर होता रहे।
(3) मूल्यांकन द्वारा विद्यार्थियों के व्यक्तित्व के बहुआयामी पक्षों की जानकारी प्राप्त हो ।
अतः इसके सम्प्रत्यय के सम्बन्ध में कहा जा सकता है कि सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन विद्यार्थी की वह समग्र रूपरेखा है जो अधिगम समय या सब की पूरी अवधि के शैक्षिक एवं सहशैक्षिक पक्षों के नियमित आंकलन द्वारा प्राप्त होता है ।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन का महत्त्व (Importance of Continuous and Comprehensive Evaluation)—
(1) यह अध्यापक को प्रभावी अध्यापन कार्यनीतियाँ बनाने में सहायता देती हैं ।
(2) निरन्तर मूल्यांकन से छात्र की प्रगति (विशिष्ट शैक्षिक और सह शैक्षिक क्षेत्रों के संदर्भ सहित क्षमता और उपलब्धि) सीमा और स्तर के नियमित मूल्यांकन में सहायता मिलती है ।
(3) निरन्तर और व्यापक मूल्यांकन मनोवृत्ति और रुचि के क्षेत्रों को अभिज्ञात कराता है। यह मनोवृत्तियों व मूल्य प्रणालियों में बदलावों को अभिज्ञान करने में सहायता देता है।
(4) यह भविष्य में विषयों, पाठ्यक्रमों और कैरियर के विषय में निर्णय लेने में सहायता देता है।
(5) इससे शैक्षिक और सह शैक्षिक क्षेत्रों में छात्रों की प्रगति पर सूचना/रिपोर्ट मिलती है और इस प्रकार छात्रों की भावी सफलताओं का अनुमान लगाने में मदद मिलती है।
(6) निरन्तर मूल्यांकन द्वारा बच्चे अपनी क्षमताओं और कमियों को जान सकते हैं। इससे बच्चे को अपने अध्ययन का वास्तविक स्वयं मूल्यांकन करने में सहायता मिलती है। इससे बच्चों की पढ़ाई की अच्छी आदतें विकसित करने, गलतियों को सुधारने और अपने कार्यकलापों की वांछित लक्ष्यों की प्राप्तियों की ओर निर्देशित करने की प्रेरणा मिलती है। यह अनुदेशन के उन क्षेत्रों को निर्धारण करने में छात्र की सहायता करता है, जिस पर और अधिक बल देने की आवश्यकता है।
(7) निरन्तर मूल्यांकन से कमियों का निदान किया जा सकता है और अध्यापक छात्र की क्षमताओं कमियों और जरूरतों को इससे सुनिश्चित कर सकते हैं। इससे अध्यापकों को तत्काल फीडबैक मिलता है, जो यह निर्णय ले सकते हैं कि एक विशेष इकाई या संकल्पना पूरी कक्षा को दोबारा पढ़ाने की जरूरत है या कुछ ही छात्रों को उपचारात्मक अनुदेशन की आवश्यकता है।
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