समावेशी शिक्षकों की दक्षताओं की विस्तृत व्याख्या कीजिए ।

समावेशी शिक्षकों की दक्षताओं की विस्तृत व्याख्या कीजिए ।

उत्तर – समावेशी शिक्षकों की निम्न दक्षताएँ हैं—
(1) विषयवस्तु सम्बन्धी दक्षताएँ – किसी भी अध्यापक को अपने पढ़ाये जाने वाले विषय में पूरा अधिकार (Mastery) हो । यही नहीं, उसे सम्बन्धित विषयों का भी ज्ञान हो । सामान्य ज्ञान तो होना ही चाहिए अध्यापक जितना ही विषय पर अधिकार रखता होगा वह छात्रों के लिए उतना ही प्रिय बन जाता है।
(2) संकल्पना को स्पष्ट करने की दक्षता – अध्यापक के लिए आवश्यक है कि उसमें जटिल संकल्पनाओं को सरल ढंग से स्पष्ट करने की दक्षता होनी चाहिए।
अध्यापन कार्य प्रारम्भ करने से पहले हमें छात्र की आवश्यकताओं को समझ लेना चाहिए और यह भी कि उसको पूर्व ज्ञान कितना है, तभी प्रभावशाली ढंग से अध्यापन प्रारम्भ हो सकेगा। केवल विषय-वस्तु की संकल्पनाओं में दक्षता प्राप्त कर लेने से काम नहीं चल पाता, बल्कि शिक्षण विधियों की संकल्पनाओं में भी दक्षता होनी चाहिए, कभी-कभी केवल व्याख्यान विधि उबाऊ साबित हो सकती है, जबकि अवलोकन एवं प्रायोगिक विधियाँ अधिक शीघ्रता से सीखने को प्रेरित करती हैं। व्याख्यान विधि को ही प्रश्नों द्वारा, प्रभावी भाषा द्वारा, प्रायोगिक विधि द्वारा तथा स्वयं करके सीखने की विधि से प्रभावकारी अधिगमन का काम करता है।
(3) समुदाय एवं अन्य संगठन सह-कार्य दक्षताएँ–  विद्यालयों को लघु समाज का रूप दिया जाता है। विद्यालय समाज में होने वाली क्रियाओं का प्रतिमान है। अध्यापक-पालक संघ, विद्यालयों में आयोजित राष्ट्रीय एवं सामाजिक पर्व, शाला विकास समिति, समाज एवं समाज विद्यालय में रिश्तों को उद्घाटित करता है।
विद्यालय को भवन चाहिए, लाइब्रेरी, जल-व्यवस्था, समुचित कार्यकर्त्ता एवं अध्यापक चाहिए उन्हें समाज उपलब्ध कराता है। समाज को चत्रिवान, पढ़े-लिखे संस्कारित व्यक्ति चाहिए जो समाज का विकास कर सकें, चेतना दे सकें तथा सामाजिक परिवर्तन प्रदान कर सकें।
यदि अध्यापक अपने कर्त्तव्यों की पूर्ति नहीं करते तो निश्चित ही उन्हें वह प्रतिष्ठा नहीं मिल पायेगी, जिसकी वह आस लगाये बैठे हैं।
(4) सन्दर्भगत दक्षताएँ – सभी विषय, परन्तु विशेष रूप से विज्ञान जैसे विषयों को पढ़ाते समय मूलभूत या आधारभूत प्रत्यय स्पष्ट करने हेतु सन्दर्भगत दक्षता प्राप्त करना आवश्यक है।
यह दक्षता इस बात पर जोर देती है कि हम जब तक यवस्तु के सन्दर्भ बिन्दुओं को समझ नहीं लेते, तब तक विषय-वस्तु भी समझ में नहीं आती। किसी घटना को तब ही हम भली-भाँति समझ सकते हैं जब हम उस सन्दर्भ की परिस्थितियों (आर्थिक, सामाजिक या सांस्कृतिक) को समझ लेते हैं ।
(5) भाषायी प्रतिबद्धता – अध्यापक में एक गुण, जो आवश्यक रूप से होना चाहिए, वह है उसका भाषायी ज्ञान एवं मृदुभाषिता । किस समय, काल एवं परिस्थिति में किससे कैसी बात करनी चाहिए, इसका ज्ञान एक अच्छे अध्यापक को होता है। भाषायी दक्षता एवं अभिव्यक्ति का गुण सामाजिक क्रियाकलापों एवं नेतृत्व गुणों को व्यावहारिकता प्रदान करता है ।
(6) शिक्षण अधिगम सामग्री निर्माण में दक्षताएँ –अधिगम के सम्प्रेषण के लिए आवश्यक है कि छात्राध्यापक/छात्राध्यापिकाएँ ऐसे उपकरण बनाने में दक्ष हों, जिससे बालक विषयवस्तु को शीघ्रता से सीखें, जैसे—घड़ी न होने पर नाड़ी की धड़कन से समय का मापन करना।
ग्रामीण क्षेत्रों में सब्जियों, फलों एवं खाद्य सामग्री को सुरक्षित रखने के लिए देशी कूलर बनाये गये हैं जो बिना बिजली के आवश्यक ठण्डक देकर खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखते हैं।
एक दक्ष अध्यापक अपने छात्रों को हाथ से बनाये गये अनेक उपकरण बनाने की प्रेरणा दे सकता है। घरेलू सामग्री से मोटर आदि के मॉडल बनाये जा सकते हैं। जल विश्लेषण तथा जल-अपघटन का उपकरण आसानी से बन सकता
(7) अभिभावक सह-कार्य दक्षताएँ –  प्राथमिक विद्यालयों और माध्यमिक विद्यालयों में बीच में ही स्कूल छोड़ देने की समस्या रहती है। अध्यापकगण इस समस्या को सुलझाने में सहायक हो सकते हैं। यह केवल बालक/बालिकाओं के पालकों से मिलकर हल किया जा सकता है । छात्र कक्षा में रुचि नहीं लेता या प्राय: अनुपस्थित रहता है तो बालकों के पालकों को मामले की सूचना देकर बालक को नियमित रूप से विद्यालय भेजने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
पालकों से विद्यालय का सीधा सम्बन्ध होने से उनके बालक विद्यालयों में अनुशासित रहते हैं। बालक का अधिक समय अपने मातापिता के साथ व्यतीत होता है। यदि पालकों का अध्यापकों से निर्भरता होगी तो बालक अनुशासित ही होगा, वे विद्यालयों के लिए भी निकटता बनाये रखेंगे।
विभिन्न राष्ट्रीय कार्यक्रमों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, वार्षिक कार्यक्रमों में पालकों की भागीदारी हेतु नियंत्रित किया जाने से वे विद्यालय की समस्याओं एवं आवश्यकताओं से अवगत होंगे तथा विद्यालय एवं समाज के प्रति भाईचारा बढ़ेगा।
(8) सम्प्रेषण सम्बन्धी दक्षता – शिक्षक कार्य के लिये सबसे मुख्य कार्य जो अध्यापक को करना होता है वह है विषयवस्तु (ज्ञान) का सम्प्रेषण करना अर्थात् ज्ञान को छात्रों तक पहुँचाना, जिससे वे ज्ञान को आत्मसात् कर सकें। तभी अधिगम (सीखना) का स्तर भी बढ़ता है।
(9) मूलभूत मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता – आजकल सामाजिक क्षेत्र में मूल्यों का क्षरण हो रहा है। घोटाला, घूसखोरी, बेईमानी, यौन शोषण जैसी गन्दगी हमारे समाज में तेजी से फैल रही है। ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, सेवाभाव, समयबद्धता का आम जीवन में अभाव हो रहा है।
(10) मूल्यांकन आधारित दक्षताएँ – शिक्षण में मूल्यांकन का अति महत्त्व है। बिना इसमें दक्षता प्राप्त किये अध्यापकीय दक्षता प्राप्त नहीं कर सकता। मूल्यांकन परिमाणात्मक भी होता है और गुणात्मक भी। गुणात्मक मूल्यांकन को परिमाणात्मक रूप देना बिना दक्षता प्राप्त किये नहीं हो सकता। अधिगम की सीमा का उल्लेख किया जाना चाहिए बालक होशियार है, वह कमजोर है, इसका कोई अर्थ नहीं बनता जब तक कि उसकी सीमा दर्शायी न गयी हो ।
एक सफल अध्यापक/अध्यापिका को मूल्यांकन की आधुनिक विधियों का पता होना चाहिए वह उनकी सांख्यिकीय गणना से परिचित हो । मूल्यांकन करते समय मूल्यांकन किये गये प्रश्न, उनके प्रकार व मापन के उद्देश्य से भी अध्यापक को अवगत होना चाहिए। दीर्घ उत्तरीय प्रश्न, लघु उत्तरीय प्रश्न, वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के अलावा ज्ञानात्मक, बोधात्मक प्रश्न, इण्टरव्यू, प्रश्नावली, सर्वे, अनुसंधान विधियों की तकनीक का ज्ञान होना भी आवश्यक है ।
(11) आजीविका के प्रति प्रतिबद्धता – अध्यापन कार्य में, यदि अध्यापक की अपने कार्य में दक्षता नहीं है तो वह व्यावसायिक रूप. से सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। इसके लिए उसे अपने कार्य में गर्व का अनुभव होना चाहिए वह राष्ट्र निर्माता है, वह संस्कृति का वाहक है, वह बालकों में ज्ञान सम्प्रेषित कराता है। एक अध्यापक समाज में सम्मान पाता है जहाँ राष्ट्र नेताओं एवं प्रशासनिक अधिकारियों को बनाता है, वही है जो मूल्यों को प्रतिष्ठित करता है। उच्च पद प्राप्त हो जाने के बाद भी बहुत से छात्र अपने अध्यापकों का सम्मान करना नहीं भूलते। अपने आदर्श व्यवहार, चरित्र, नैतिकता एवं उत्कृष्ट गुणों के कारण अध्यापक जीवन-पर्यन्त छात्रों के हृदय में बसा रहता है ।
(12) प्रबन्ध सम्बन्धी दक्षताएँ – विद्यालयों में अच्छे ढंग की पढ़ाई अच्छे अध्यापक, अनुशासन एवं व्यवस्थित प्रबन्धन के कारण ही सम्भव है। अध्यापन कार्य के साथ-साथ अध्यापक सामाजिक मूल्यों को बालकों में प्रेषित कर देता है। राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय, सामाजिक गुण उसे विभिन्न कक्षा – अध्यापन एवं सामूहिक आयोजन द्वारा बताये जाते हैं । राष्ट्रीय पर्वों में राष्ट्रीय ध्वज की मर्यादा, सम्मान तथा राष्ट्रगान के प्रति सम्मान, इन्हीं आयोजनों से बालक सीखता है। विद्यालय में आयोजित पर्वों में अतिथियों का स्वागत, उनके प्रति उचित व्यवहार करने की ट्रेनिंग अध्यापकों द्वारा ही सिखायी जाती है।
खेलकूद में स्वस्थ प्रतियोगिता, कैप्टन के प्रति आदर्शों का सम्मान, समानता, भाईचारे की भावना, लोकतन्त्रीय मूल्यों का ग्रहण करना विद्यालय में ही सीखे जाते हैं। साफ-सफाई, समाज-सेवा, सामूहिक क्रियाकलाप में स्वयं एवं पात्रों की भागीदारी तथा उनमें उत्तरदायित्व की भावना उत्पन्न करना अध्यापकों का ही कर्त्तव्य है।
(13) अन्य शैक्षिक क्रियात्मक दक्षताएँ – विषय-वस्तु का सम्प्रेषण करने के लिए पाठ्येत्तर क्रियाओं की आवश्यकता होती है। हाथों द्वारा बनाये गये उपकरण, इधर-उधर फैले संसाधनों का उपयोग, वैज्ञानिक विधियों का उपयोग, सामाजिक पर्वों का आयोजन, जिससे हम भ्रमण, श्रमदान, सहयोग, विचार-चिन्तन, आपसी भाईचारा सीखते हैं, वहीं छात्राध्यापक/छात्राध्यापिकाएँ अन्य गुणों को भी सीखते हैं जो भावात्मक प्रशिक्षण के रूप में उपयोगी होता है।
(14) अधिगमकर्त्ता (सीखने वाले छात्र/छात्राओं) के प्रति प्रतिबद्धता – छात्रों के लिए सीखने का कार्य प्रायः विद्यालयों में होता है। बालक सीखता तब है जब सीखने का विषय रुचिकर हो । भावी जीवन के लिए रुचिकर, निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति होती है तथा सिखाने वाले की विधि इस प्रकार की हो जिससे बालक बिना किसी थकावट के कम से कम समय में अधिक से अधिक सीख सके। अतः अध्यापक का किसी न किसी रूप में उसका दायित्व होता है कि वह बालक को अधिगम प्रदान करे।
अध्यापक को भी अधिगमकर्त्ता द्वारा पूछे गये प्रश्नों के प्रति सहनशील होना चाहिए तथा उससे एक साथी के रूप में व्यवहार करना चाहिए इसके लिए आत्म-नियन्त्रण का होना जरूरी है। अध्यापकीय व्यवहार बालक के अनुकरणीय होना चाहिए वह छात्रों के लिए मददगार भी हो, पढ़ाई के मामले में ही नहीं, बल्कि खेलकूद, स्कॉलरशिप, लाइब्रेरी, अन्य सुविधाएँ उपलब्ध करने में भी सक्षम हो । तात्पर्य यह है कि अधिगमकर्त्ता के प्रति बहुत सी प्रतिबद्धताएँ अध्यापकों में निहित हैं, बिना इनकी पूर्ति के वे अपने छात्रों के प्रिय नहीं हो सकते ।
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