समावेशी शिक्षा के दर्शन को स्पष्ट कीजिए। समावेशी शिक्षा में दर्शन की आवश्यकता, उपयोगिता एवं महत्त्व का विवरण दीजिए।
समावेशी शिक्षा के दर्शन को स्पष्ट कीजिए। समावेशी शिक्षा में दर्शन की आवश्यकता, उपयोगिता एवं महत्त्व का विवरण दीजिए।
अथवा
समावेशी शिक्षा के दर्शन को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर— समावेशी शिक्षा का दर्शन – समावेशी शिक्षा मानवतावादी दर्शन पर आधारित है। मानवतावाद शिक्षा को मानव का मूल अधिकार मानता है मानवतावादी दर्शनिकों की दृष्टि से प्रत्येक राज्य को प्रत्येक बालक के लिए, बिना किसी भेद-भाव के शिक्षा की उचित व्यवस्था करनी चाहिए। भारतीय लोकतंत्र इसका सबसे बड़ा समर्थक है । समावेशी शिक्षा में बालकों के प्रति स्थान, जाति, धर्म, संस्कृति तथा लिंग आदि किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता है सबको शिक्षा प्राप्त करने का समान अधिकार है। वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व में मानवतावादी लहर है, सभी मानवाधिकारों के लिए सचेत हैं सही समावेशी शिक्षा का उपयुक्त मूल दर्शन है। शिक्षा मनुष्य के विकास की आधारशिला है। उचित शिक्षा के अभाव में समावेशी शिक्षा में दर्शन जैसे विषय का विकास ही नहीं हो सकता है ।
समावेशी शिक्षा में दर्शन की आवश्यकता — जीवन की कठिन समस्याओं पर दर्शन चिन्तन, मनन एवं मन्थन करता है। इस दृष्टि से बाधित बालकों की शिक्षा के लिए दर्शन- विचार सामग्री उपलब्ध कराता है। समावेशी शिक्षा में दर्शन उन आदर्शों एवं मूल्यों को प्रस्तुत करता है, जिसका अनुसरण करके बालक, समाज एवं राष्ट्र के जीवन को ऊँचा उठा सकते हैं।
समावेशी शिक्षा में भी दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही है। चूँकि विशिष्ट बालकों के सर्वांगीण विकास के लिए भी शिक्षा की आवश्यकता है। जीवन को उन्नत बनाने के लिए शिक्षा का अन्तिम ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। इसी के परिणाम स्वरूप समावेशी शिक्षा में दर्शन की आवश्यकता अनुभव की जा रही है ।
समावेशी शिक्षा में दर्शन की आवश्यकता निम्नलिखित दृष्टिकोणों से अनुभव की जाती है—
(1) दर्शन समावेशी शिक्षा को आधार प्रदान करता है। दर्शन की सहायता के बिना शिक्षण प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो सकती है।
(2) समावेशी शिक्षा की समस्याओं का समाधान करने में दर्शन सहायता करता है। समावेशी शिक्षा के उद्देश्यों का प्रतिपादन, शैक्षिक पाठ्यचर्या का समाज एवं राष्ट्र की दृष्टि से विकास करना तथा शिक्षण विधियों एवं उसकी उपादेयता की प्रक्रिया को ज्ञान प्रदान करना, ये सब दर्शन के माध्यम से ही सम्भव है।
(3) समावेशी शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। समावेशी शिक्षा के अन्तर्गत अपनाए जाने वाले सिद्धान्त, विधियाँ, विश्लेषण आदि सभी दर्शन के विषय है।
(4) प्रत्येक समावेशी शिक्षक का अपना एक दार्शनिक दृष्टिकोण होता है। शिक्षक के दृष्टिकोण का प्रभाव समावेशी बालकों के दृष्टिकोण पर भी पड़ता है। बालकों के प्रति शिक्षकों की भूमिका, उनके कर्त्तव्यों एवं कार्यों का विवरण तैयार करने में दर्शन की आवश्यकता पड़ती है।
(5) समावेशी शिक्षण प्रक्रिया को सार्थक बनाने के लिए शिक्षा दर्शन का ज्ञान आवश्यक है। इसके लिए शिक्षा संस्थाओं का उचित प्रबन्धन एवं प्रशासन के स्वरूप को विकसित किया जा सकता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि समावेशी शिक्षा में दर्शन की आवश्यकता को सभी अनुभव करते हैं क्योंकि दर्शन को समावेशी शिक्षा का पक्ष माना जाता है। समावेशी शिक्षा व्यवस्था के व्यावहारिक पक्ष का प्रेरणास्रोत दर्शन ही है। यही कारण है कि वर्तमान समय में समावेशी शिक्षा में दर्शन के अध्ययन की विशेष आवश्यकता है।
समावेशी शिक्षा में दर्शन की उपयोगिता एवं महत्त्व – समावेशी शिक्षा में दर्शन की विशेष उपयोगिता एवं महत्त्व है क्योंकि समावेशी शिक्षा की विविध प्रकार की समस्याओं को दार्शनिक चिन्तन के आधार पर सुलझाने का प्रयास करता है। अतः समावेशी शिक्षा में दर्शन की उपयोगिता एवं महत्त्व को निम्नलिखित रूप से क्रमबद्ध किया जा सकता है—
(1) समावेशी शिक्षा में दर्शन के माध्यम से शिक्षक अपने कर्त्तव्यों को सुनिश्चित करने में सफल होता है।
(2) समावेशी शिक्षण में शिक्षक को एक दार्शनिक बनकर शिक्षण में प्रतिबद्धता का भाव विकसित करना होता है।
(3) समावेशी शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पाठ्यचर्या निर्माण के सिद्धान्तों के लिए दर्शन की आवश्यकता होती है।
(4) दर्शन ही शिक्षणशास्त्र का विकास करता है जिससे समावेशी शिक्षण की प्रक्रियाओं के सम्पादन हेतु विधियों, प्रविधियों एवं सूत्रों का विकास किया जाता है।
(5) समावेशी शिक्षा में दर्शन के माध्यम से शिक्षा की समस्याओं का दार्शनिक हल प्रस्तुत किया जाता है।
(6) समावेशी शिक्षा में दर्शन के माध्यम से शिक्षा का स्वरूप
एवं उसके उद्देश्यों का विस्तृत ज्ञान प्राप्त होता है।
(7) दर्शन समावेशी शिक्ष के व्यावहारिक एवं सैद्धान्तिक पक्ष को प्रस्तुत करता है।
इस प्रकार समावेशी शिक्षा में दर्शन की उपयोगिता एवं महत्त्व स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है जो समावेशी कक्षाओं में विशिष्ट बालकों की शिक्षा प्रदान करने में शिक्षक की सहायता भी करता है।
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कुसमायोजित बालको की शिक्षा व्यवस्था क्या है ,, इस बिषय पर पोस्ट डालिए
ok.
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