समावेशी शिक्षा के विभिन्न सिद्धान्त क्या हैं ?

समावेशी शिक्षा के विभिन्न सिद्धान्त क्या हैं ?

उत्तर- समावेशी शिक्षा निम्नलिखित सिद्धान्तों पर आधारित हैं –
विभिन्नता व्यक्तिगत भिन्नता दो प्रकार की होती है-
(i) दो व्यक्तियों में अन्तर और
(ii) मनुष्य का स्वयं से भेद होना।
(2) माता-पिता का सहयोग- यदि शारीरिक रूप से बाधित बालकों के माता-पिता भी शिक्षण कार्यक्रमों में रुचि लें तो विशिष्ट शिक्षण कार्यक्रमों को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
(3) अविभेदी शिक्षा ऐसे विद्यार्थियों की पहचान करनी चाहिए जो विशिष्ट शिक्षा की आवश्यकता का अनुभव करते हैं जिससे उन्हें दी जाने वाली शिक्षा का उपयुक्त स्वरूप सुनिश्चित किया जा सके। प्रत्येक छात्र की व्यक्तिगत रूप से परीक्षा होनी चाहिए। इसके पश्चात् सभी छात्रों को विशिष्ट शिक्षा के कार्यक्रम में रखा जाना चाहिए। समय-समय पर ऐसे. बालकों की कठिनाइयों, समस्याओं तथा उनकी प्रगति का परीक्षण भी किया जाना चाहिए।
(4) विशिष्ट प्रक्रिया—यह प्रक्रिया प्रदर्शित करती है कि शारीरिक रूप से बाधित बालकों के माता-पिता को विद्यालय की व्यवस्था का निर्धारण तथा विश्लेषण करने का पूर्ण अधिकार है जहाँ पर बालकों को उनकी आवश्यकतानुसार शिक्षा दी जा सके।
(5) वैयक्तिक शिक्षा कार्यक्रम – जिन विद्यार्थियों को विशिष्ट शिक्षा की आवश्यकता है उन्हें व्यक्तिगत शिक्षा या तो विशिष्ट कक्षाओं में दिया जाए या उनसे सम्बन्धित संसाधनयुक्त कक्षों में इस प्रकार की शिक्षा उन बालकों की वर्तमान कार्य प्रणाली और विशेष आवश्यकताओं के अनुरूप होनी चाहिए। वैयक्तिक शिक्षा कार्यक्रम में अभिक्रमित अनुदेश को भी प्रयुक्त किया जा सकता है।
(6) कोई भी निरस्त नहीं—शारीरिक रूप से बाधित सभी बालकों को निःशुल्क उपयुक्त शिक्षा मिलनी चाहिए। सामान्य शिक्षण संस्थाओं में किसी बालक को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने का विकल्प किसी विद्यालय की व्यवस्था में नहीं है।
(7) नियंत्रित वातावरण–जहाँ तक सम्भव हो शारीरिक रूप से बाधित बालकों तथा सामान्य बालकों की शिक्षा एक ही कक्ष में साथ-साथ होनी चाहिए। यह कक्षा सामान्य हो सकती है। सामान्य कक्ष बाधित छात्रों को न्यूनतम विघ्न डालने वाला वातावरण प्रदान करता है।
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