समूह परिचर्चा को परिभाषित कीजिए। इसके आयोजन के चरणों का वर्णन करिए।
समूह परिचर्चा को परिभाषित कीजिए। इसके आयोजन के चरणों का वर्णन करिए।
उत्तर – समूह परिचर्चा (Group Discussion) – किसी विषयवस्तु, समस्या या विषय पर गहराईपूर्वक विचार करने की सामूहिक प्रक्रिया को परिचर्चा (Discussing) के नाम से पुकारा जाता है।
एक ही शिक्षक से एक ही विषय के सभी प्रकरणों के विशिष्ट ज्ञान की अपेक्षा करना ठीक नहीं है। अतः प्रकरण के अनुसार विशेषज्ञों को आमंत्रित कर परस्पर चर्चा करके नवीन तथ्यों को प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक है । इसके लिए सामूहिक वाद-विवाद (Group Discussion) बहुत उपयोगी है।
इसके माध्मय से कई जटिल एवं गूढ़ विषयों का सम्यक् विश्लेषण, अवबोध एवं मूल्यांकन होता है। परिचर्चा में भाग लेने वाले सभी छात्र एवं शिक्षक तल्लीनता के साथ हर मुद्दे पर सोचते हैं और अपना मत व्यक्त करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को अपना विचार या मत प्रकट करने की पूरी स्वतंत्रता रहती है और इस प्रकार प्रत्येक की राय को दृष्टिकोण रखते हुए बहुमत के आधार पर विषय या समस्या के बारे में निर्णय लिए जाते हैं। भिन्न मत रखने वाले व्यक्तियों के सुझाव या असहमति को पूर्ण वस्तुनिष्ठतापूर्वक अंकित कर लिया जाता है। अल्पमत रखने वाले सहभागियों के प्रति कोई भेदभाव नहीं किया जाता। इसलिए परिचर्चा को मूलत: लोकतांत्रिक व्यवस्था का लघु रूप कहा जाता है।
सामूहिक वाद-विवाद का अर्थ (Meaning of Group Discussion ) – वाद-विवाद विधि में शिक्षण का कार्य विशेषज्ञों के समूह द्वारा आपसी चर्चा के माध्यम से किया जाता है। इसमें चर्चा कराये जाने का नेतृत्त्व एक समूह के हाथ में होता है।
राइट के अनुसार-” “वाद-विवाद विचार-विमर्श को आधुनिक विधि है जिसमें चर्चा का नियंत्रण समूह द्वारा किया जाता है। “
ली के अनुसार-“शैक्षिक समूह क्रिया है। इसमें छात्र सहयोगपूर्वक एक-दूसरे से किसी समस्या पर विचार करते हैं।”
एन.सी.ई.आर.टी के अनुसार- “शिक्षक को यह स्मरण रखना चाहिए कि बालक तथ्यात्मक ज्ञान के प्रस्तुतीकरण को केवल निष्क्रिय होकर सुनने की अपेक्षा स्वयं क्रिया कर खोज कर अधिक प्रभावी सीख सकता है।”
हरबर्ट गुली के अनुसार, “परिचर्चा उस समय होती है जब का एक समूह आमने-सामने एकत्रित होकर मौखिक अन्तर्क्रिया द्वारा सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं या किसी सामूहिक समस्या पर निर्णय लेते हैं।”
समूह परिचर्चा के चरण (Steps of Group Discussion)—
(1) अनुदेशक – अनुदेशन का कार्य अधिक महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि उसे वाद-विवाद की सम्पूर्ण व्यवस्था करनी होती है; यथावाद-विवाद प्रकरण, समय, स्थान, समूह सदस्य एवं अध्यक्ष । इसके अतिरिक्त वाद-विवाद का पूर्व अभ्यास भी कराता है। सम्पूर्ण कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की जाती है।
(2) अध्यक्ष– अध्यक्ष की भूमिका वाद-विवाद के समय अधिक महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि समूह के सदस्यों के वाद-विवाद का संचालन करता है और बीच-बीच में उनकी अन्तर्क्रिया व तर्कों का संक्षेपीकरण एवं सुधार करता है।
(3) समूह के सदस्य– समूह के सदस्य की संख्या चार से दस होती है। वाद-विवाद प्रारम्भ करने में अध्यक्ष प्रकरण समस्या के सम्बन्ध में ऐसे बिन्दुओं की ओर संकेत करता है जिससे सदस्यगण तथा श्रोतागण उसके स्वरूप को जान सकें। सामान्यतया परिचर्चा किसी शैक्षिक समस्या, पाठ्यचर्या सम्बन्धी समस्या, विद्यालय संगठन सम्बन्धी समस्या आदि पर होती है। समूह के अध्यक्ष का यह दायित्व होता है कि परिचर्चा को विषयवस्तु अथवा समस्या से दूर न जाने दे, सभी को परिचर्चा में सक्रिय भाग लेने के लिए समान रूप से अवसर प्रदान करें तथा सभी को स्वतंत्रतापूर्वक अपने विचारों को अभिव्यक्ति करने की अनुमति दें।
(4) श्रोतागण – जब वाद-विवाद समाप्त हो जाता है उसके अन्त में श्रोतागण प्रश्न पूछते हैं। श्रोतागण अपना दृष्टिकोण तथा अनुभवों को भी प्रस्तुत करते हैं। श्रोतागणों के प्रश्नों का उत्तर तथा उनकी शंकाओं का समाधान पहले समूह के सदस्य देने का प्रयास करते हैं। यदि सदस्यगण उत्तर देने में असमर्थ होते हैं तो ऐसी स्थिति में अध्यक्ष अपनी प्रतिक्रिया तथा समाधान प्रस्तुत करता है।
अन्ततः अध्यक्ष वाद-विवाद (परिचर्चा) के निष्कर्षों का संक्षेपीकरण करता है तथा अपने दृष्टिकोण सभी के सम्मुख प्रस्तुत करता है। समूह के सदस्यों के प्रति आभार प्रदर्शित करता है और श्रोतागणों को धन्यवाद देता है।
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