सामान्य संभावना वक्र पर संक्षिप्त नोट लिखिये ।
सामान्य संभावना वक्र पर संक्षिप्त नोट लिखिये ।
अथवा
सामान्य सम्भावना वक्र का अर्थ स्पष्ट कीजिये । सामान्य सम्भावना वक्र के प्रकार, गुण और दोषों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर – सामान्य सम्भावना वक्र का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Normal Probability Curve)— किसी प्रयोग के माध्यम से किसी चर के प्राप्त आँकड़ों का आवृत्ति वितरण बनाए तो इस आवृत्ति वितरण को परीक्षण आवृत्ति वितरण या अवलोकित आवृत्ति वितरण कहते हैं। इस वितरण की सहायता से सम्बन्धित आँकड़ों द्वारा जो वक्र बनाया जाता है उसे परीक्षण वक्र या अवलोकित वक्र कहा जाता है। अवलोकित वक्र बनाए जाए तब इस प्रकार के अवलोकित वक्र, सामान्य सम्भावना वक्र कहलाते हैं। सामान्य सम्भावना वक्र की आकृति घण्टे के आकार के समान होती है। अधिकतर आँकड़े बीच में स्थित होते हैं परन्तु यदि हम बीच में दोनों तरफ किनारों की ओर चले तो आँकड़ों की संख्या लगातार कम होती चली जाती है । यदि हम समूह का आकार और बड़ा करें तो इससे प्राप्त सामान्य सम्भावना वक्र का आकार बिल्कुल घण्टे के आकार का हो जाता है। अत: इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि समूह में आँकड़ों की संख्या जितनी अधिक होगी सामान्य सम्भावना वक्र का रूप उतना ही अच्छा होगा। सामान्य संभावना वक्र के समीकरण का प्रतिपादन अब्राहम डी. माइवर ने सन् 1933 में किया था। यह वक्र एक आदर्श गणितीय वक्र है ।
चैपलिन के अनुसार, “सामान्य सम्भावना वक्र वह वक्र है जो आवृत्ति को इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि उसके साथ घटित होने वाले चर, संयोग के नियमों द्वारा संचालित होते हैं। “
गैरट के अनुसार, “घण्टों के आकार की आकृति सामान्य सम्भावना वक्र या केवल सामान्य वक्र कहलाती है । “
सामान्य सम्भावना वक्र की विशेषताएँ / गुण (Characteristics/Properties of Normal Probability
Curve)– सामान्य सम्भावना वक्र की कुछ मूलभूत विशेषताओं का उल्लेख निम्न प्रकार से किया गया है—
(1) एक ऐसा वक्र एक ऐसा वक्र है जिसमें x भुजा पर विस्तार तथा y भुजा पर ऊँचाई का निर्धारण एक गणितीय सूत्र के माध्यम से किया जाता है। इसे सामान्य संभावना वक्र का समीकरण भी कहते हैं।
उपर्युक्त सूत्र को देखकर यह पता चलता है कि y का मान केवल x के मान के अनुसार परिवर्तित होता है क्योंकि e तथा का एक निश्चित मान होता है तथा N तथा का मान एक निश्चित आँकड़ों के लिए स्थिर रहता है। अतः समीकरण में x का मान का वर्ग लिया गया है। अतः y का मान प्रत्येक स्थिति में धनात्मक ही •प्राप्त होगा तथा जब x का मान कम होगा तो y का मान अधिक प्राप्त होता है परन्तु जब x का मान अधिक होगा तो y का मान कम होता चला जाता है। उपर्युक्त सूत्रानुसार y का मान सममित (symmetrical) स्वरूप का होगा।
(2) सामान्य सम्भावना वक्र के समीकरण को देखकर पता चलता है कि इस वक्र का आकार घण्टाकार होता है अर्थात् बीच में प्राप्तांक बहुत ज्यादा तथा दोनों छोर की तरफ प्राप्तांकों की आवृत्ति बहुत कम होती चली जाती है एवं वक्र का आकार y-अक्ष के सापेक्ष सममित होता है।
(3) यदि सामान्य सम्भावना वक्र के मध्यमान से लाभ उठाया जाए तो यह वक्र दो समान भागों में विभाजित होता है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। मध्यमान के दाँई ओर सिग्मा दूरी धनात्मक तथा मध्यमान के बाँई ओर सिग्मा दूरी ऋणात्मक होती है तथा मध्यमान से दोनों ओर आँकड़ों की संख्या 50% – 50% होती है।
(4) सामान्य सम्भावना वक्र में केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप अर्थात् मध्यमान, मध्यांक तथा बहुलांक का मान समान रहता है अर्थात् ये तीनों x – अक्ष के एक ही बिन्दु (जो कि मध्य में स्थित होता है तथा मूल बिन्दु कहलाता है) पर स्थित होते हैं।
(5) सामान्य सम्भावना वक्र में मापन की इकाई सिग्मा दूरी ( ० दूरी) होती है तथा सम्पूर्ण सामान्य सम्भावना वक्र 30 से + 30 दूरी तक फैला होता है अर्थात् कुल 60 दूरी में फैला होता है।
(6) सामान्य सम्भावना वक्र के पूर्णतः सममित होने के कारण इस वक्र का विषमता गुणांक (Coefficient of Skewness) शून्य होता है।
(7) चूँकि सामान्य सम्भावना वक्र का आकार सममित होने के कारण वक्र के दाहिने भाग का आकार वक्र के बाँई ओर के आकार के बिल्कुल समान होता है।
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