स्वास्थ्य की अवधारणा पर एक लेख लिखिए ।

स्वास्थ्य की अवधारणा पर एक लेख लिखिए । 

                                                    अथवा

स्वास्थ्य शिक्षा को परिभाषित करते हुए, इसके महत्त्व एवं लक्षणों को समझाइये ।
उत्तर— स्वास्थ्य शिक्षा – स्वास्थ्य शिक्षा वह शिक्षा है जिसके द्वारा स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान को व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर व्यवहारिक रूप में परिवर्तित करने का प्रयास किया जाता है जिससे न केवल एक व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा हो बल्कि सम्पूर्ण समाज के स्वास्थ्य की रक्षा की जा सके । स्वास्थ्य शिक्षा से अभिप्राय उन समस्त साधनों से है जो व्यक्ति को स्वास्थ्य के सम्बन्ध में ज्ञान प्रदान करे। स्वास्थ्य शिक्षा सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक रूप से सम्पूर्ण विद्यालयी शिक्षा का एक अभिन्न अंग है, क्योंकि शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण सामान्य उद्देश्य स्वास्थ्य निर्माण भी है, इसलिए स्कूल के सभी विषयों को इसमें अपना योगदान करना चाहिए। ऐसा करते समय वे स्वास्थ्य शिक्षा का एक अंग बन जाते हैं। संक्षेप में, स्वास्थ्य शिक्षा वह प्रक्रिया (Process) है जो अर्जित किए हुए ज्ञान का अनुभव कराती है जिसका उद्देश्य ज्ञान के द्वारा शिक्षा और आचरण पर प्रभाव डालना है जो कि व्यक्ति और लोगों के स्वास्थ्य से सम्बन्धित है।
स्वास्थ्य शिक्षा की परिभाषाएँ — स्वास्थ्य शिक्षा के अर्थ को विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है—
डॉ. थामस वुड के अनुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा उन सभी अनुभवों का जोड़ है, जो हमारे व्यक्तिगत, सामाजिक, सामुदायिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित आदतों, प्रवृत्तियों तथा ज्ञान पर लाभदायक प्रभाव डालते हैं।”
स्वास्थ्य शिक्षा समिति (1973) न्यूयॉर्क के प्रतिवेदन के अनुसार, ‘स्वास्थ्य शिक्षा वह प्रक्रिया है जो स्वास्थ्य सूचना और स्वास्थ्य व्यवहारों के मध्य खाई को पाटती है।”
उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार, स्वास्थ्य शिक्षा मनुष्य को अनुप्रेरित (Motivates) करती है कि वह सूचना (Information) लेकर कुछ ऐसा करे जिससे वह अधिक स्वस्थ बनने के लिए हानिप्रद कार्यों की अवहेलना कर सके और ऐसी आदतों का निर्माण कर सके जो उपयोगी हैं।
रूथ ई. ग्राउट का अभिमत स्वास्थ्य शिक्षा के बारे में कुछ और विस्तार से है, उनके अनुसार, “स्वास्थ्य शिक्षा शैक्षिक प्रक्रिया के माध्यम से स्वास्थ्य के विषय में जो कुछ ज्ञात है उसे उचित व्यक्तिगत एवं सामुदायिक व्यवहार के नमूनों में परिवर्तित करने का नाम है । “
यह परिभाषा स्वास्थ्य के बारे में तीनों बातों पर ध्यान आकर्षित करती है—
(i) स्वास्थ्य के विषय में जो ज्ञात है—अर्थात् स्वास्थ्य के विषय में मूलभूत अवधारणाएँ ।
(ii) उचित व्यक्तिगत एवं सामुदायिक व्यवहार के नमूने स्वास्थ्य सम्बन्धी अन्तिम लक्ष्य, तथा
(iii) शैक्षिक प्रक्रिया के माध्यम से परिवर्तन ।
सरल शब्दों में, बच्चे को स्वास्थ्य सम्बन्धी मूलभूत अवधारणाएँ स्पष्ट होनी चाहिए। उसे यह ज्ञान होना चाहिए कि ‘क्यों करना है’, ‘क्या करना है’ और ‘कैसे करना है’—उदाहरण के तौर पर भोजन करने से पहले हाथ धोना आवश्यक है। क्यों ? क्योंकि यह बीमारी के खतरे को कम करता है।
अतः स्वास्थ्य शिक्षा, निःसन्देह एक मानवीय रचना है। यद्यपि यह कई प्रकार से अपरिपक्व है तो भी यह एक ऐसी अवधारणा है जिसे व्यवस्थित किया जा सकता है।
स्वास्थ्य शिक्षा का महत्त्व – स्वास्थ्य का मानव जीवन के लिए विशेष महत्त्व है । स्वस्थ मनुष्य समाज, समुदाय एवं राष्ट्र का आधारस्तम्भ है। एक स्वस्थ विद्यार्थी स्कूल की सभी क्रियाओं में रुचि लेता है क्योंकि उसका मन स्वस्थ है। कहा भी गया है कि ‘पहला सुख निरोगी काया ।’ स्वास्थ्य विद्यार्थी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर प्रभाव डालता है।
स्वास्थ्य शिक्षा सामान्य शिक्षा का महत्त्वपूर्ण अंग है। स्वास्थ्य वास्तव में हर्ष, उल्लास, अच्छी नागरिकता तथा आनन्दमय जीवन की कुंजी है। स्वस्थ व्यक्ति ही देश व समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है। स्वस्थ प्राणी ही एक अच्छा पिता, अच्छी माता, अच्छा अभिभावक, अच्छा अध्यापक, अच्छा नेता व अच्छा नागरिक बन सकता है। स्वास्थ्य शिक्षा स्वास्थ्य से सम्बन्धित उन मौलिक सिद्धान्तों की जानकारी प्रदान करती है जिनका पालन करके व्यक्ति स्वस्थ आदतें एवं विचार अपनाकर सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है।
स्वास्थ्य शिक्षा हमारी कई तरीकों से सहायता करती है, जिनका उल्लेख नीचे किया गया है—
(1) यह स्वास्थ्य व स्वास्थ्य विज्ञान के विषय में जानकारी देती है। स्वास्थ्य शिक्षा अध्यापकों व विद्यार्थियों को शारीरिक कार्यों, स्वास्थ्य के नियमों और बीमारियों से बचने के लिए जानकारी देती है। स्वास्थ्य शिक्षा का ज्ञान केवल पुस्तकों द्वारा ही नहीं बल्कि चार्ट, चित्र, फिल्म, मॉडल व स्लाइड द्वारा भी दिया जाता है । यह केवल विद्यार्थियों के लिए ही लाभदायक नहीं है, बल्कि अशिक्षित लोगों के लिए भी लाभदायक है।
(2) यह शारीरिक विकृतियों को खोजने में सहायक है। यह शरीर की विभिन्न प्रकार की असामान्यताओं को खोजने व उनको ठीक करने में भी सहायक है ।
(3) स्वास्थ्य सम्बन्धी जरूरी आदतों को बढ़ाने में सहायक है। यह जीवन के सिद्धान्तों व स्वास्थ्य की आदतों को स्थापित करती है, जो व्यक्ति को अधिकतम जीवित रहने एवं श्रेष्ठतम कार्य करने के योग्य बनाती है। यह स्वास्थ्य की कई अच्छी आदतों का विकास करती है, जैसे—ताजी हवा को लेने, स्वास्थ्य भोजन आदि की आदतें इत्यादि ।
(4) यह आदर्श स्वास्थ्य को बनाये रखने में सहायक है। स्वास्थ्य शिक्षा हमें स्वस्थ वातावरण के विषय में ज्ञान देती है। यह सम्पूर्ण सफाई, सही तापमान, पर्याप्त रोशनदान इत्यादि के विषय में बताती है ।
(5) यह मानवीय सम्बन्धों को बढ़ाती है। स्वास्थ्य शिक्षा विद्यार्थियों को यह ज्ञान भी देती है कि किस प्रकार वे अपने दोस्तों, पड़ौसियों, रिश्तेदारों व समुदाय के अच्छे स्वास्थ्य के लिए कार्य कर सकते हैं। इसके साथ-साथ यह भी बताती है कि स्कूल, घर और समाज के मध्य कैसे सम्बन्ध स्थापित करना है ?
(6) यह बीमारियों से बचाव व रोकथाम के विषय में ज्ञान देती है। यह बच्चों को पर्यावरण प्रदूषण उससे बचाव व रोकथाम आदि के बारे में जानकारी देती है। स्वास्थ्य शिक्षा के द्वारा हमें सफाई के अच्छे प्रबन्ध के विषय में पता चलता है । विभिन्न प्रकार की बीमारियों के लक्षण व फैलने के कारण, उनसे बचाव व उनके उपचार के विषय में स्वास्थ्य शिक्षा से ही जानकारी प्राप्त हो पाती है।
(7) यह हमें प्राथमिक सहायता का प्रशिक्षण देती है। प्राथमिकसहायता का प्रशिक्षण प्रत्येक व्यक्ति के लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति कभी भी संकट की स्थिति में आ सकता है। अगर उसे सही समय पर प्राथमिक सहायता दे दी जाए तो उसका जीवन बचाया जा सकता है।
स्वास्थ्य शिक्षा के लक्ष्य–स्वास्थ्य शिक्षा के प्रमुख लक्ष्य (उद्देश्य) निम्नलिखित हैं—
(1) विभिन्न अभिवृत्तियों का विकास – ज्ञान के पश्चात् अभिवृत्ति का अत्यधिक महत्त्व है। कोई भी विद्यार्थी सफलतापूर्वक अपने लक्ष्यों की पूर्ति नहीं कर सकता, जब तक उसकी अभिवृत्ति उस काम के प्रति न हो। विद्यार्थियों में अच्छी आदतें एवं अभिवृत्तियाँ उत्पन्न करना आवश्यक है।
(2) चिकित्सा के प्रति कदम उठाना – यदि शरीर की डॉक्टरी जाँच करवाई जाए तो विकलांगता, विरूपता तथा कई अन्य रोगों का पता लग जाता है, जिसके निवारण के लिए चिकित्सा का सुझाव दिया जाता है। विद्यालयों का कर्त्तव्य है कि वह इन बीमारियों का पता लगाए और उनके लिए उचित चिकित्सा की व्यवस्था करें ।
(3) विद्यार्थियों में नागरिक के उत्तरदायित्व की भावना का विकास – विद्यार्थियों में नागरिक उत्तरदायित्व की बहुत कमी पाई जाती है। वे प्रायः न तो अपने साथियों की और न अन्य नागरिकों की आवश्यकता पड़ने पर सहायता करते हैं। वे दूसरों के दुःख-दर्द में सहभागी बनकर उन्हें दूर करके प्रसन्नता का अनुभव नहीं करते। स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों को कहीं भी थूकने, छींकने, नशीली वस्तुओं का सेवन, संक्रामक रोग से पीड़ित व्यक्तियों से दूर न रहने जैसे सामाजिक अपराधों के प्रति सचेत किया जाता है। विद्यार्थियों को प्रारम्भ से ही जन सुविधाओं के प्रयोग का महत्त्व बताना चाहिए तथा इसकी आदत डालनी चाहिए। इन नियमों से वे सफाई का शिक्षा सम्बन्धी मूल्य समझकर अपने आपको तथा दूसरों को स्वस्थ रूप से विकसित करने का अवसर प्राप्त करेंगे ।
(4) अनपढ़ तथा अज्ञानी अभिभावकों को शिक्षित करना – स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों द्वारा अभिभावकों तथा समाज के अन्य सदस्यों को स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों एवं सिद्धान्तों से परिचित कराना चाहिए जिससे वे स्वयं अपने स्वास्थ्य की वृद्धि कर सकें तथा अपने बालकों के लिए उपयुक्त वातावरण का निर्माण कर सकें।
(5) स्वास्थ्य सम्बन्धी स्तर निश्चित करना – प्रत्येक विद्यालय में स्वास्थ्य से सम्बन्धित निश्चित उद्देश्य होने चाहिए, जिनकी प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। ये उद्देश्य अध्यापकों तथा विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करेंगे। इसके अन्तर्गत विद्यालय स्वास्थ्य सेवा, स्कूल जलपान, गृह, प्रकाश, जल, कमरों की सफाई और विद्यालय के आस-पास का वातावरण आदि बातें आती हैं।
(6) स्वास्थ्य विज्ञान के बारे में जानकारी प्रदान करना – इसका उद्देश्य अध्यापकों तथा विद्यालयों को शारीरिक क्रियाओं स्वास्थ्य तथा स्वास्थ्य विज्ञान के नियमों, रोगों से बचाव के उपायों की जानकारी प्रदान करना है। विद्यालयों की बुरी आदतों, अस्वास्थ्यकर जीवन, धूम्रपान और मद्यपान आदि से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की जानकारी प्रदान करना जरूरी है ।
(7) मानसिक और भावात्मक स्वास्थ्य का विकास और सुधार – विद्यालय के स्वास्थ्य कार्यक्रम में मानसिक और भावात्मक स्वास्थ्य का भी महत्त्व है। अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य से विद्यार्थी हृष्ट-पुष्ट रहता है।
(8) शारीरिक विकास – वर्तमान शिक्षा का उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है। मानसिक विकास के साथ-साथ शारीरिक विकास की ओर ध्यान देना आवश्यक है। विद्यार्थियों को अप्रत्यक्ष रूप से समझाना चाहिए कि शारीरिक विकास उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि मानसिक विकास । विद्यार्थियों को स्वास्थ्य के नियमों का ज्ञान देना चाहिए और यह भी सिखाना चाहिए कि वे अपने स्वास्थ्य को किस प्रकार अच्छा बना सकते हैं।
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