स्व के अंगों का विस्तार से वर्णन कीजिए ।

स्व के अंगों का विस्तार से वर्णन कीजिए ।

उत्तर— स्व के अंग–स्व के अंगों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से हैं—
(1) स्वयं की पहचान – वैश्विक समझ व्यक्ति की स्वयं की पहचान को दर्शाता है। स्वयं की पहचान अपेक्षाकृत स्थायी आत्म आंकलन से बना है। किसी व्यक्ति का कौशल एवं क्षमता, उसका व्यवसाय एवं शौक तथा शारीरिक गुणों के विषय में जानने की जागरूकता ही उसके, स्वयं के व्यक्तित्व की पहचान होती है। इस प्रकार स्वयं की पहचान प्रस्तुत करने के लिए कोई निश्चित प्रतिबन्ध नहीं है। स्वयं की पहचान में व्यक्ति का अपना भूतकाल एवं भविष्यकाल सम्मिलित होता है। इसमें व्यक्ति अपने भविष्य में क्या करना चाहता है, उसके क्या विचार है, वह क्या बनने से डर रहा है वह स्वयं के लिए क्या सम्भाव्य समझता है, आदि तथ्यों का प्रतिनिधित्व किया जाता है। व्यक्ति की स्वयं की सम्भावनाएँ व्यावहारिक भविष्य के लिए प्रोत्साहन के रूप में कार्य करती हैं तथा वर्तमान समय में भी स्वयं के मूल्यांकन के लिए व्याख्यात्मक स्वरूप मुहैया कराती है। उदाहरण के लिए-“मैं आलसी हूँ” यह उक्ति आत्म मूल्यांकन की आत्म अवधारणा के लिए योगदान देता है। इसके विपरीत “मैं थक गया हूँ” यह उक्ति सामान्य रूप से किसी के आत्म अवधारणा का हिस्सा माना जाएगा क्योंकि यह एक अस्थायी स्थिति है जबकि आलसी होना स्थायी स्थिति है।
(2) आत्म सम्मान – स्व शासन स्वयं के विषय में लगभग सभी अन्य सकारात्मक भावनाओं एवं मान्यताओं को महसूस करने की क्षमता ही एक सबसे महत्त्वपूर्ण भावनात्मक अनुभव है। आत्म सम्मान किसी एक बिन्दु पर एक व्यक्ति के समग्र मूल्यांकन या उसके स्वयं की योग्यता का मूल्यांकन करने के लिए संदर्भित करता है। सामान्यतः संसार में उच्च जीवन जीने का दृष्टिकोण भावनात्मक परिणाम है। इस प्रकार आत्म सम्मान मन की एक सामान्य स्थिति है आत्म सम्मान व्यक्ति की भावनाओं को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिये-जब व्यक्ति में आत्म विश्वास की कमी होगी तो उसके आत्म सम्मान में भी कमी होगी। लम्बे समय तक का नकारात्मक अनुभव बने रहने से आत्म सम्मान की क्षति होती है। यदि आपके अनुभव सकारात्मक भावनाओं से युक्त है तो आत्म सम्मान में भी वृद्धि होगी। साधारण शब्दों में, जब स्वयं के अनुभव से घटनाओं या परिस्थितियों का समर्थन करते हैं तो आपका आत्म सम्मान स्वयं बढ़ जाएगा। जबकि इसके विपरीत व्यवहार करने पर व्यक्ति के आत्म सम्मान में स्वतः कमी आ जाती है।
(3) स्वयं की पहचान सीमा – व्यक्ति के स्वयं की पहचान सीमा एक सम्पत्ति की सीमा रेखा के समान है। यह स्वयं के पहचान की स्पष्ट एवं परिभाषित सीमा है कि व्यक्ति अपनी स्वयं की पहचान के लिए अपने घर या सम्पत्ति के आधार पर जाना जा सकता है। संक्षेप में स्वयं की पहचान की सीमा अपनी प्राथमिकताएँ या नियम हैं। व्यक्ति की स्वयं की पहचान किस सीमा तक है इस विषय की स्पष्ट जानकारी स्वयं प्राप्त करना मुश्किल है क्योंकि—
(i) आप स्वयं के प्रति अपने व्यवहार को स्वीकार नहीं करेंगे
(ii) आप अपनी क्षमता के अनुसार स्पर्धाओं या कथनों के लिए हाँ या नहीं करते हैं।
उदाहरण के लिये—किसी भी व्यक्ति को सामाजिक रूप से जो चीजें चारों तरफ से आनन्द दे रही हैं वही चीजें कभी-कभी अवैध तरीके से बात करने के कारण दूसरे व्यक्तियों को वित्तीय या भावनात्मक रूप से चोट पहुँचाती हैं। इसीलिए व्यक्ति को अपनी स्वयं की पहचान के लिए गैर न्यायिक अवयवों को नहीं अपनाना चाहिए तथा स्वयं की सन्तुष्टि के लिए दूसरों की मदद करनी चाहिए।
(4) आत्मा छवि–स्व पहचान का यह अवयव एक ऐसी संरचना या ढाँचा प्रस्तुत करता है जिससे एक व्यक्ति स्वयं की जानकारी प्राप्त करने के लिए स्व को संगठित करता है। स्वयं को समझने के लिए विश्व जगत् में किस प्रकार कार्य हो रहा है तथा कैसे यह संरचित है आदि का अनुभव व्यक्ति स्वयं प्राप्त करना चाहता है वह एक समग्र व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान प्रदर्शित करना चाहता है। समग्रता का तात्पर्य वह सब कुछ है जो व्यक्ति के चारों तरफ विद्यमान है। समग्रता के अन्तर्गत भौतिक जगत, पृथ्वी, जीवन, मन, समाज एवं संस्कृति भी सम्मिलित है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को विश्व का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा मानता है। इसलिए “हम कौन हैं” इस प्रश्न का उत्तर बुनियादी तरीके से विश्व को देखने के लिए प्रस्तुत करना चाहिए। जिस विश्व जगत में आप है वहाँ के लोग आपके विषय में कैसी बातें कर रहे हैं तथा आपको किस प्रकार रहना चाहिए आदि व्यक्ति के मानक हैं। यह एक वैश्विक अवधारणा है कि हमें दूसरों के साथ कैसा आचरण करना चाहिए। ये व्यक्ति के मूल्य एवं नैतिकता से सम्बन्धित है। वैश्विक दृष्टि से कार्य करने के कुछ नियम बनाए गए हैं। अधिकांश लोगों का समूह वैश्विक दृष्टि के नियमों एवं दिशा-निर्देशों से काफी हद तक अनभिज्ञ है। कुछ व्यक्ति अनजाने में जीवन के अनुभवों एवं प्रभावों को स्वयं ग्रहण कर लेते हैं तो कुछ लोग परिवार, साथियों, धार्मिक समूहों एवं समाज से ग्रहण करते हैं। अतः आत्म छवि एक ऐसा निस्यंदन (Filter) है जो दूसरों की पहचान को निर्धारित करता है। हालांकि व्यक्ति की बुद्धि एवं विचार के आधार पर ही वैश्विक जगत किसी के पहचान की अवधारणाओं को स्पष्ट करता है। इस प्रकार वैश्विक दृष्टि में अपनी पहचान बनाने के लिए सक्रिय गुणों एवं योगदान की आवश्यकता है।
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