स्व-पहचान’ पद को समझाइये ।

स्व-पहचान’ पद को समझाइये ।

                   अथवा
स्व-पहचान क्या है ?
उत्तर— ‘स्व-पहचान’ – अपने आप की पहचान करना आत्म पहचान कहलाता है। जिस प्रकार हम दूसरे व्यक्तियों के बारे में जानने का प्रयास करते हैं, उसी प्रकार हम अपने आपको जानने का प्रयास करते हैं। हम एक-दूसरे का मूल्यांकन करते हैं और उसकी छवि का निर्माण करते हैं, उसी प्रकार हम स्वयं का भी मूल्यांकन करते हैं तथा इस मूल्यांकन के परिणामस्वरूप अपनी ही अपने प्रति एक विशेष धारणा या छवि का निर्माण करते हैं । अतः अपने आप का प्रत्यक्षीकरण करना, अपने प्रति कोई धारणा निर्मित करना या निर्णय लेना आत्म पहचान कहलाता है। आत्म पहचान के अन्तर्गत व्यक्ति स्वयं के व्यवहारों का निरीक्षण करता है। इन व्यवहारों के कारणों को जानने का प्रयास करता है और इन सूचनाओं के आधार पर अपने बारे में कोई छवि या धारणा बनाता है।
सामाजिक समायोजन के लिए आत्म पहचान बहुत ही आवश्यक होता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अन्य व्यक्तियों को जानने की अपेक्षा स्वयं के बारे में जानना बहुत ही जटिल तथा कठिन कार्य होता है । बेम (1965) के अनुसार, ‘दूसरे व्यक्ति की तुलना में अपनी मनोवृत्तियों, विश्वासों और भावों को जानने के लिए अधिक परीक्षण करना पड़ता है । जिस सीमा तक व्यक्ति स्वयं को जान लेता है, उसी सीमा तक वह दूसरों के साथ स्वयं को समायोजित करने में सक्षम हो जाता है।” मैक्डूगल के अनुसार, “जिन व्यक्तियों में आत्म स्वीकृति और आत्मबोध का गुण होता है, वे लोग मानसिक रूप से भी स्वस्थ होते हैं । ” इस दृष्टि से मानसिक तथा सामाजिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए आत्म पहचान अत्यन्त आवश्यक है।
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