1991 की नई आर्थिक नीति की समीक्षा करें। क्या यह राष्ट्रहित के अनुकूल हुआ ?

1991 की नई आर्थिक नीति की समीक्षा करें। क्या यह राष्ट्रहित के अनुकूल हुआ ?

उत्तर-1991 के आर्थिक संकट के बाद भारत ने आर्थिक सुधारों के लिए कई क्षेत्रों में नई-नई नीतियाँ बनायी जिसे सम्मिलित रूप से नई आर्थिक नीति के नाम से जाना जाता है।
भारत द्वारा विश्व व्यापार संगठन की सदस्यता स्वीकार करने के साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्वीकरण का प्रभाव पडना प्रारंभ हो गया। विश्व की बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भारत के द्वार खुल गये और भारतीय कंपनियाँ भी पूरे विश्व में फैलकर व्यापार करने लगी। इसके पक्ष या विपक्ष में भारत के अर्थशास्त्रियों के विचार अलग-अलग हैं। कुछ इसे राष्ट्रहित में मानते हैं और कुछ इसे राष्ट्रहित में नहीं मानते।
राष्ट्रहित के अनुकूल मानने वालों का कहना है कि-

(i) इससे उत्पादकता बढ़ेगी।
(ii) लोगों का जीवन-स्तर सुधरेगा।
(iii) प्रतिस्पर्धा के कारण कार्यकुशलता में वृद्धि होगी।
(iv) अर्थव्यवस्था की संरचना में सुधार होगा।
(v) अच्छी वस्तुएँ भी कम मूल्य पर उपलब्ध हो सकेंगी।
(vi) राष्ट्रीय संसाधनों का समुचित उपयोग होगा।

राष्ट्रहित के प्रतिकूल मानने वालों का कहना है कि –

(i) पूँजी-प्रधान उद्योगों का महत्त्व बढ़ने से कंप्यूटर आदि का उपयोग बढ़ेगा और रोजगार का अवसर घटेगा। बेरोजगारी बढेगी।
(ii)भारत में लघु और कुटीर उद्योग की बहुलता है। विश्व बाजार की कड़ी प्रतिस्पर्धा में ये टिक नहीं पायेंगे और लघु एवं कुटीर उद्योग के लिए । वह शुभ घड़ी न होगी।
(iii) महँगाई बढ़ेगी, गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों के लिए कठिन घड़ी होगी। बाजार माँग के अनुसार नकदी फसल का उत्पादन बढ़ेगा और खाद्यान्न का उत्पादन कम हो सकेगा।

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