ज्ञान और बोध (समझ) पर एक लेख लिखिए।
ज्ञान और बोध (समझ) पर एक लेख लिखिए।
उत्तर- ज्ञान और समझ (बोध) ज्ञान वह माध्यम है जिसमें किसी तथ्य, वस्तु एवं अवधारणा को उसी रूप में समझा जा सकता है जिस रूप में वह है इसका आशय ‘जानने’ से है। समझ या बोध प्राप्त ज्ञान की प्रति लचीले ढंग से प्रदर्शन करने की योग्यता है। जब मनुष्य किसी वस्तु या विचार को बोध, अनुभूति, तर्क एवं अनुभव के आधार पर स्वीकार कर लेता है तभी ज्ञान का सृजन होता है।
दूसरे शब्दों में ज्ञान का अर्थ उन सूचनाओं का संग्रह है जो किसी वस्तु, परिस्थिति व अनुभवों की समझ को विकसित करने में सहायक होते हैं अर्थात् ज्ञान अनुभवों की समझ पर आधारित सूचनाएँ हैं।
ज्ञान और समझ का पारस्परिक सहसम्बन्ध है, ज्ञान के आधार पर ही समझ व सूझ का विकास होता है। ज्ञान प्राप्त करने की अनेक प्रविधियों जैसे मास्तष्क उत्प्लावन, वाद-विवाद, समस्या समाधान इत्यादि के माध्यम से पाठ्य-वस्तु सम्बन्धी ज्ञान एवं व्यावहारिक ज्ञान की समझ उत्पन्न होती है तथा विद्यार्थी अपने दैनिक व व्यावहारिक जीवन में इस समझ व सूझ का उपयोग अपने प्राप्त किए गए ज्ञान के आधार पर सतत् रूप से व्यवहार में लाते हैं।
अवबोध एक विषय (Topic) की समझ के प्रति लचीला (नम्य) प्रदर्शन की क्षमता से है। इसमें लचीलेपन पर अत्यधिक जोर दिया जाता है। इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए छात्र अधिगम को उचित प्रकार से सीखते हैं तथा आवश्यकतानुसार लचीले ढंग से प्रस्तुत करते हैं; जिससे तथ्यात्मक एवं अवधारणात्मक ज्ञान सभी को समझ में आ जाए; जैसे—छात्र न्यूटन के विभिन्न नियमों के बारे में विस्तारपूर्वक अध्ययन करते हैं और जब उनसे इसके बारे में पूछा जाए उस समय छात्र उसके बारे में पूर्ण जानकारी दे देते हैं, तो कहा जाएगा कि छात्रों को न्यूटन के नियमों का ज्ञान है । परन्तु यदि ये पूछा जाए कि न्यूटन के प्रथम नियम से क्या अभिप्राय है ? न्यूटन के प्रथम एवं अन्तिम नियम में कोई अन्तः सम्बन्ध है या नहीं ? यदि छात्र इन प्रश्नों के उत्तर सरलता के साथ व्याख्यायित रूप में उदाहरण के साथ दे पाता है, तो कहा जाता है कि छात्र में समझ विकसित हो रही है। इससे स्पष्ट है कि अवबोध ज्ञान से तुलनात्मक रूप से अधिक जटिल या सूक्ष्म है। इस आधार पर अवबोध की मुख्य विशेषताओं को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है—
(1) विशेष विषय या स्थिति को ज्ञान एवं योग्यता के आधार पर मापन (Judge) करना ।
(2) एक अनौपचारिक अनुबन्धन (विभिन्न तथ्यों/विषयों) में।
(3) लोगों के व्यवहार एवं इच्छाओं को जानना एवं उन्हें गलती करने पर माफ करना।
(4) तथ्यात्मक ज्ञान को अवधारणात्मक समझ में परिवर्तित करना ।
(5) ज्ञान के विभिन्न अवयवों में अन्तर्सम्बन्ध स्थापित करना। उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि अवबोध को विभिन्न विद्वान् विभिन्न प्रकार से समझते या बताते हैं; जैसे—कुछ शिक्षक चाहते हैं कि उनके छात्र विषयों को ‘अच्छे से समझें।’ दूसरों की इच्छा होती है कि उनके छात्र ‘ज्ञान को आत्मसात करें’ तथा अन्य चाहते हैं कि उनके छात्र “मूल ज्ञान या सार को समझें।’ यहाँ पर सब एक ही बात को विभिन्न तरीके से कह रहे हैं अर्थात् सभी चाहते हैं कि उनके छात्र प्रत्येक विषय, तथ्य या अवधारणा को ठीक से समझें अर्थात् सैद्धान्तिक ज्ञान के साथ व्यावहारिक रूप में विभिन्न तथ्यों को समझें।
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