भारत में दहेज प्रथा का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
भारत में दहेज प्रथा का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर—दहेज प्रथा-प्राचीन समय में माता-पिता जब बेटी का विवाह करते थे तो यह सोच कर कि वह नए घर में संकोच करेगी, उसकी जरूरत का सामान उसके साथ भेजते थे। यह माता-पिता का सन्तान के प्रति वात्सल्य का प्रदर्शन था। धीरे-धीरे दिखावे ने जोर पकड़ा और यह प्रथा अपनी सम्पदा का प्रदर्शन करने के लिए काम आने लगी। लड़के वाले लालच में आकर दहेज की माँगें रखने लगे। हद तो तब हुई जब लालच पूरा न होने पर वधू के साथ मारपीट, यहाँ तक उसकी हत्या भी होने लगी। संविधान ने इस पर रोक लगाई तो यह कृत्य चोरी छिपे होने लगे हैं। इस प्रथा के कारण लड़की के माता-पिता लड़की के पैदा होने के साथ ही उसके लिए दहेज जोड़ने लगे। इसीलिए वह लड़की को लिखाने-पढ़ाने पर खर्च करने के लिए तैयार नहीं होते क्योंकि उन्हें लगता है इस पैसे को लड़की के विवाह के लिए बचा कर रखना चाहिए। लड़कियों को खर्चे वाले व्यावसायिक पाठ्यक्रम की जगह कम खर्चे वाले कोर्स पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसी तरह मेधावी छात्राओं के लिए मौकों की कमी हो जाती है और वह समान प्रतिभा वाले छात्रों से पीछे रह जाती हैं। यहाँ तक कि लड़की को कोचिंग आदि के लिए भेजना भी माता-पिता को पैसे की बर्बादी लगता है। अगर मातापिता के सर पर दहेज की तलवार न हो तो वह लड़की को अच्छे से पढ़ा सकते हैं। इस कुप्रथा के चलते लड़कियाँ माता-पिता को बोझ लगने लगती हैं। लिंग भेद का यह बहुत बड़ा कारण है।
सरकार ने दहेज प्रथा को समाज से दूर करने के लिए संवैधानिक कानून बनाये हैं। इन कानूनों के अनुसार, दहेज लेना और दहेज देना दोनों ही अपराध की श्रेणी में आते हैं तथा ऐसा करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने का प्रावधान है। परन्तु यह समस्या समाज में जस-के-तस यों ही बनी हुई है। जब तक समाज में जागरूकता नहीं आयेगी तब तक इस समस्या का समाधान असम्भव लगता है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here