अनुशासनात्मक ज्ञान का अर्थ एवं संकल्पना की स्पष्ट कीजिए |
अनुशासनात्मक ज्ञान का अर्थ एवं संकल्पना की स्पष्ट कीजिए |
उत्तर — अनुशासनात्मक ज्ञान शीर्षक का अध्ययन करने से पूर्व, हमें Disciplinary शब्द पर हमारा ध्यान केन्द्रित करना चाहिये। सामान्यतया “Discipline” से तात्पर्य “वह अभ्यास या प्रशिक्षाम है जिससे हम मानवों को नियमों और कानूनों का अनुसरण करना सिखात हैं, इसमें दण्ड भी शामिल है।” इसमें व्यवहार और स्थिति की नियंत्रित करना भी समन्वित है, जो उस प्रशिक्षण का ही परिणाम है। यद्यपि इस शब्द का प्रयोग शिक्षा क्षेत्र में विस्तार से, इसी दृष्टि से किया गया है, फिर भी जहाँ तक इस शीर्षक का सम्बन्ध है, यहाँ हमारा अर्थ कुछ भिन्न है। हमारा सम्बन्ध शैक्षिक विषयगत अवधारणा से है। इससे हमारा तात्पर्य ज्ञान के क्षेत्र या विषय से है जो व्यक्ति अध्ययन करते हैं या शिक्षण करते हैं, विशेषकर शैक्षणिक संस्थाओं में संकाय या अध्ययन क्षेत्र एवं विषय ज्ञान और सूचना के विस्फोट के द्वारा, हम हमारे चारों ओर नये नये विषय देखते हैं, इसीलिए यह आवश्यक हो गया है कि हम संकाय (Discipline) और विषय के अन्तर – को स्पष्ट करें।
संकाय (Discipline) और विषय; पूर्ण और अंश की दृष्टि से एक-दूसरे से सम्बन्धित है। एक संकाय (Discipline) विश्व में समस्त ज्ञान के क्षेत्र को समाविष्ट करता है। उदाहरण के लिए विज्ञान का संकाय (Discipline), विज्ञान के क्षेत्र के समस्त ज्ञान को समन्वित करता है। इसके विपरीत, विषय (Subject), संकाय (Discipline) का एक छोटा अंश है। इसी प्रकार कला के संकाय (Discipline) में भाषा, दर्शनशास्त्र, मानवशास्त्र, इतिहास, भूगोल आदि विषय है, ये सभी कला के विस्तृत क्षेत्र में प्रतिबिम्बित होते हैं।
एक शैक्षणिक संकाय (academic discipline) ज्ञान की ही एक शाखा है। यह विशिष्टता, व्यक्ति, प्रायोजना, समाज, चुनौतियों, अध्ययन, जानकारी और अनुसंधान के क्षेत्र को समाविष्ट करती है, जो कि सुदृढ़ता से निर्धारित शैक्षणिक संकाय (Discipline) में दिए गए हैं। उदाहरण के तौर पर विज्ञान की शाखा में सामान्यतया भौतिक शास्त्र, गणित, कम्प्यूटर विज्ञान आदि हैं। एकाकी रूप से सम्बन्धित संकाय में सामान्यतया विषय विशेषज्ञ होते हैं।
जब शैक्षणिक संकाय स्वयं ही कम और अधिक अभ्यास कार्य पर जोर देती है, जैसे—बहुविषयी, अन्त:विषयी, स्थानान्तरित विषयी अथवा परे विषयो, तब वे बहुमुखी विषयवस्तु से कुछ शैक्षिक दृष्टिकोण या विचार ग्रहण करती हैं। इस प्रकार वे किसी समस्या को उठाते हैं और अध्ययन के किसी क्षेत्र पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं, क्योंकि किसी एक विषय पर भी भिन्न-भिन्न मत हो सकते हैं, फिर शैक्षणिक संकाय के सन्दर्भ में अपना दृष्टिकोण रखते हैं।
अध्ययन क्षेत्र अथवा संकाय का इतिहास (History of Discipline)—अध्ययन क्षेत्र अथवा संकाय की अवधारणा (Concept of Discipline) सबसे पहले उस समय अस्तित्व में आई जब अधिगम का विभिन्न ज्ञानात्मक क्षेत्रों में विभाजन करने का प्रयास किया गया । प्राचीन भारत में विभिन्न प्रकार के अध्ययनों (संकाय) की व्यवस्था थी, विनमें शिक्षा को विभाजित किया गया था, जैसे दर्शन शास्त्र, तर्कशास्त्र, औषधि शास्त्र, रेखा गणित, ज्योतिष आदि ।
आधुनिक समय में, पाश्चात्य देशों में, पेरिस विश्वविद्यालय में 1231 में, ज्ञान को चार अध्ययन क्षेत्रों (संकायों) में विभाजित किया गया धर्मशास्त्र, औषधि विज्ञान, कानून और कलाएँ ।
Discipline ‘शब्द’ विशेष तौर से शैक्षिक संस्थानों में ही प्रयुक्त किया जाता था, यह सूचना प्राप्त करने के लिए कि वैज्ञानिकों ने किस प्रकार की नवीन सूचनाएँ विस्तारित की है और जिसके परिणामस्वरूप 9वीं शताब्दी के प्रारम्भ में ही विभिन्न प्रकार की अध्ययन सामग्री बनाई गई हैं ।
19वीं शताब्दी के मध्यकाल से ही परम्परागत पाठ्यक्रम की वृद्धि करते हुए उसे नवीन भाषा व साहित्य से जोड़ दिया गया है, जिसमें सामाजिक विज्ञान, जैसे—राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और लोक प्रशासन तथा प्राकृतिक विज्ञान व तकनीकी विज्ञान जैसे—भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान और अभियांत्रिकी आदि हैं । इस प्रकार तीन विशिष्ट क्षेत्र या संकाय बने—
(1) भाषा और साहित्य (Language and literature)
(2) सामाजिक विज्ञान (Social sciences )
(3) औचित्य मूलक विज्ञान (Proper sciences).
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