ज्ञान के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिये।

ज्ञान के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिये।

अथवा ज्ञान के प्रकार पर चर्चा कीजिए।
अथवा ज्ञान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। ज्ञान के विभिन्न प्रकारों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा ज्ञान से आपका क्या अभिप्राय है ? ज्ञान के विभिन्न प्रकारों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा ज्ञान के प्रकार बताते हुए वैज्ञानिक ज्ञान तथा धार्मिक ज्ञान का अध्ययन कीजिये।
अथवा ज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा बताइये ।
उत्तर—ज्ञान की अवधारणा – सामान्यतया हमें निरन्तर अनुभव होते रहते हैं, क्योंकि हम चेतन हैं। ये अनुभव हमारी पाँच इन्द्रियों के माध्यम से आते हैं जिनमें नेत्र, कान, जिह्वा, नाक एवं त्वचा सम्मिलित हैं। इन्द्रियों के माध्यम से आए हुए ये अनुभव हमारे मन-मस्तिष्क में जाते हैं और वहाँ मन एवं मस्तिष्क इन्हें व्यवस्थित करते हैं। श्रेणियों एवं कोटियों में इन्हें व्यवस्थित करने के लिए वर्गीकरण, पृथक्करण एवं योगीकरण किया जाता है।
किन्तु मन-मस्तिष्क द्वारा ऐसा करने में कुछ ‘नया’ घटित हो जाता है। कारण यह कि मन-मस्तिष्क के पास अपनी-अपनी शक्ति होती है व इनका अनुभवों पर लागू होने से अनुभवों का वह रूप नहीं रहता जैसा वह पहले था। इन शक्तियों को हम ‘संयुक्त करने की शक्ति’ और ‘जटिल बनाने की शक्ति’ कह सकते हैं; जैसे दो अनुभव जो अलगअलग आए हैं, उन्हें जोड़ने का काम ‘मनस’ करता है और मस्तिष्क उन्हें अपनी शक्ति के अनुसार बनाई गई कोटियों और श्रेणियों में विभाजित एवं वर्गीकृत करके नया रूप देता है। इस तरह ज्ञान अनुभवों का संश्लेषणात्मक एवं विश्लेषणात्मक रूप होता है।
यथार्थानुभव प्राप्त करने के लिए भारतीय चिन्तन में विभिन्न साधनों की चर्चा की गई है, इनमें प्रमुख हैं—प्रत्यक्ष अनुमान, उपमान एवं शब्द |
अब हमें वास्तविक ज्ञान प्राप्ति के साधनों को सरल रूप से समझना ठीक रहेगा; जैसे—प्रत्यक्ष का अर्थ देखने, सूँघने, चखने, सुनने एवं स्पर्श के अनुभव से है। इसी तरह जब दो वस्तुओं को किसी नित्य सम्बन्ध या अनिवार्य सम्बन्ध के अन्तर्गत देखते हैं तो एक के न होने पर भी दूसरे का ज्ञान होना प्रत्यक्ष के कारण नहीं; अपितु ‘अनुमान’ के कारण होता है; जैसे—पानी भरे उमड़ते-घुमड़ते बादलों को देखकर वर्षा होने का अनुमान या धुआँ देखकर आग का अनुमान।
किन्हीं दो वस्तुओं के गुण, आकृति, प्रभाव आदि की समानता के आधार पर तुलना करने से प्राप्त ज्ञान को ‘उपमान’ कहा जाता है; जैसेचन्द्रमा की सुन्दरता से चेहरे की सुन्दरता का ज्ञान तुलना करने से प्राप्त होता है। वास्तविक या यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने का चौथा साधन है। इसका अर्थ है विश्वसनीय एवं विशेषज्ञ व्यक्तियों के कथनों से प्राप्त ज्ञान। कई विषय क्षेत्रों का ज्ञान प्रत्यक्ष अनुमान एवं उपमान से न होकर ‘शब्द’ साधन से होता है। दुनिया में चीन नामक देश है, इसका ज्ञान यदि प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान से न हो, किन्तु ‘शब्द’ से अर्थात् विश्वसनीय व्यक्ति के कथन से हो तो इसका ज्ञान हो सकता है। इस तरह के ज्ञान को ‘ शब्द ज्ञान’ कहा जाता है, किन्तु वह वाकई में यथार्थ का अनुभव ही है इसे निर्धारित करने के लिए कुछ कसौटियों पर खरा उतरना आवश्यक होता है।
ज्ञान का अभिप्राय – ज्ञान वह बौद्धिक अनुभव है जो ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त होता है। ‘ज्ञान’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृति के ‘ज्ञा’ धातु से हुई है जिसका अर्थ है जानना, बोध एवं अनुभव आदि। इससे स्पष्ट है कि ज्ञान वह माध्यम है जिसमें किसी तथ्य, वस्तु एवं अवधारणा को उसी रूप में समझा जा सकता है जिस रूप में वह है। ज्ञान नॉलेज (Knowledge) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है जिसका आशय ‘जानने’ से है। ज्ञान प्राप्त करने हेतु बुद्धि का होना आवश्यक है।
पृथ्वी पर मनुष्य ही एक मात्र ऐसा चेतन प्राणी है, जो विचार, चिन्तन, मनन, मन्थन एवं अनुभव प्राप्त करने में समर्थ है जिसके आधार पर वह नए तथ्यों व तत्त्वों से अवगत होता है और ज्ञान प्राप्त करता है। ज्ञान उत्पत्ति में दो प्रमुख पक्ष होते हैं— ज्ञाता एवं ज्ञेय । ज्ञान ज्ञाता के ही आस-पास घूमता है, अत: ज्ञाता के अभाव में ज्ञान का अस्तित्व सम्भव नहीं है। जब मनुष्य किसी वस्तु या विचार को अनुभूति, बोध, विश्वास, तर्क एवं अनुभव के आधार पर स्वीकार कर लेता है तभी ज्ञान का सृजन होता है।
दूसरे शब्दों में ज्ञान का अर्थ उन सूचनाओं का संग्रह है जो किसी वस्तु, परिस्थिति और अनुभवों की समझ को विकसित करने में सहायक होते हैं। ज्ञान समस्त शिक्षा का आधार है। शिक्षा किसी भी प्रकार की हो चाहे विद्यालयी औपचारिक या अनौपचारिक ज्ञान साधन एवं साध्य दोनों ही रूपों में पाया जाता है।
ज्ञान किसी परिस्थिति एवं प्रक्रिया से सम्बन्धित तथ्य और सत्य है। इन परिस्थितियों और वातावरण की लक्ष्यपूर्ण जानकारी ज्ञान कहलाता है जो वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों के लिए सदैव परिमार्जित एवं परिशोधित रूप में हस्तान्तरित होता रहता है। ज्ञान अनुभवों की समझ पर आधारित सूचनाएँ है। सभी को जीवन में अनुभव होते रहते हैं और इन अनुभवों का जब हम सामान्यीकरण कर लेते हैं और एक सिद्धान्त और नियम के रूप में विकसित कर लेते हैं तो यह ज्ञान बन जाता है और यही ज्ञान सम्पूर्ण समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो जाता है।
उदाहरण के लिए— महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन आदि ने जो अनुभव किया उन तथ्यों को सिद्धान्तों के रूप में कर दिया और आज वे सिद्धान्त विज्ञान के आधारभूत ज्ञान के रूप में विद्यमान है।
आदे बुदरो के अनुसार, “ज्ञान को ज्ञान रूप में इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि यह को वस्तु है जो किसी प्रदत्त सन्दर्भ में सत्य पाया गया और यही सत्य किसी क्रिया को कराती है यदि कोई बाधा उपस्थित न हो तो।”
सुकरात के अनुसार, “ज्ञान सर्वोच्च सद्गुण है।”
ज्ञान के विभिन्न प्रकारों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित हैं—
(1) विषयक ज्ञान
(2) पाठ्यक्रम सामग्री का ज्ञान
(3) स्थानीय/ देशज ज्ञान
(4) वैश्विक ज्ञान
(5) वैज्ञानिक ज्ञान
(6) धार्मिक ज्ञान
(1) विषयक ज्ञान-विषयक ज्ञान शब्द का प्रयोग विभिन्न प्रकार के ज्ञान, विशेषज्ञता, कौशल, लोगों, परियोजनाओं, समुदायों, समस्याओं, चुनौतियों, अध्ययन, जाँच, दृष्टिकोण एवं अनुसंधान जो अकादमिक स्तर से जुड़े हों (शैक्षणिक विषय) या अभ्यास के व्यावसायिक क्षेत्र के लिए किया जाता है। उदाहरणार्थ- गुरुत्व की संकल्पना दृढ़ता के साथ भौतिकी के अकादमिक विषय के साथ जुड़ी हुई है और इसीलिए गुरुत्व को भौतिकी के विषयक ज्ञान का हिस्सा माना जाता है।
विषयक ज्ञान का सम्बन्ध अकादमिक विषयों एवं विशेषज्ञों से भी होता है। ये विशेषज्ञ तथ्यों के बहुआयामी रूपों जो उदार कला या सिस्टम सिद्धान्त से सम्बन्धित होते हैं, के अध्ययन का विरोध करते हैं।
विषयक साइलों उन विशेषज्ञों के मध्य संवाद स्थापित करने में समस्या उत्पन्न करता है जो अलग-अलग भाषा बोलते हैं। श्रम का विभाजन उत्पादन एवं तुलनात्मक लाभ उत्पादन में या समस्या समाधान कौशल के लिए नेतृत्व कर सकता है। लेकिन इसके साथ ही विनिमय की समस्या एवं सम्प्रेषण की समस्या की अनदेखी नहीं की जा सकती है। कुछ लोग व्यापार को बढ़ावा देने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर साइलों (Silos) को स्थापित करते हैं। ये संचार विषयक ज्ञान से इतर संवाद स्थापित करने में सहायता प्रदान करता है।
अकादमिक विषय या शैक्षणिक विषय व्यवसायों की सह प्रणाली विकसित करने में सहायता प्रदान करते हैं। शैक्षणिक विषय एवं व्यवसाय विशेष विषयक क्षेत्रों के लिए अपने ज्ञान का निर्माण करते हैं जो विभिन्न प्राधिकृत संस्थानों द्वारा मान्य होता है।
विषयक ज्ञान की अवधारणा — अवधारणा एक अमूर्त विचार  है जो किसी वस्तु या विषय की मूलभूत विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करता है। अवधारणाएँ अनुभवों के सामान्यीकरण या अमूर्त विचारों या मौजूदा विचारों के परिवर्तन के परिणाम स्वरूप भी उत्पन्न होती है। अवधारणा सभी के द्वारा वास्तविक या सम्भावित मामलों में हो रही चर्चाओं का एक प्रकार से अन्तः परिदृश्य होती है।
अवधारणा की विशेषताएँ-अवधारणा की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(1) अवधारणा से विभिन्न तथ्यों के मध्य सम्बन्ध स्थापित किया जाता है।
(2) इसमें स्मृति के आवश्यक तत्त्व समाहित रहते हैं।
(3) यह विचारों को गति प्रदान करती है।
(4) अवधारणा की प्रकृति एकीकृत होती है।
(5) अवधारणा में लम्बे समय तक जीवित रहने की क्षमता होती
(6) अवधारणा रणनीति को पूरा करती है।
(7) अवधारणाएँ मापनीय एवं लचीली होती हैं ।
(8) वृहद् अवधारणाएँ अपने मूल में सरल होती हैं।
( 2 ) पाठ्यक्रम सामग्री का ज्ञान–पाठ्यक्रम सामग्री के ज्ञान से अभिप्राय है किसी व्यक्ति (शिक्षक) द्वारा विषय सामग्री की अवधारणात्मक समझ तथा ज्ञान के वृहद स्तर पर उस अवधारणा को उससे जोड़ना या सम्बन्ध स्थापित करना। दूसरे शब्दों में कहें तो पाठ्यक्रम विषय सामग्री ज्ञान का तात्पर्य शिक्षक का अपनी विषय-वस्तु के सभी आवश्यक पक्षों की समझ तथा ज्ञान के विभिन्न आयामों के साथ उसका सम्बन्ध स्थापित करना जिससे छात्रों को व्यापक स्तर पर अधिगम कराया जा सके। विषय सामग्री ज्ञान को व्यापक स्तर पर अधिगम कराया जा सके।
विषय सामग्री ज्ञान को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दी जा रही हैं जो निम्नलिखित हैं
हिल एण्ड बाल के अनुसार—पाठ्यक्रम विषय सामग्री ज्ञान एक प्रकार से एक विषय वस्तु (सामग्री) का सामान्य ज्ञान है।
फेरिनी-मण्डी एवं साथियों के अनुसार, पाठ्यक्रम विषय सामग्री का ज्ञान वास्तव में ‘मूल सामग्री ज्ञान’ है ।
( 3 ) स्थानीय / देशज ज्ञान – ऐसा ज्ञान जो किसी स्थान विशेष का अवलोकन करने में विशेष रूप से पाया जाता हो तथा स्थानीय विशेषताओं एवं सूचनाओं पर आधारित होता है, स्थानीय ज्ञान कहलाता है। इस प्रकार के ज्ञान को सभी स्थानों के लिए उपयुक्त नहीं समझा जाता क्योंकि स्थानीय ज्ञान को स्थानीय परिप्रेक्ष्य में ही समझा जाता है। दूसरे शब्दों में परम्परागत ज्ञान को स्थानीय या देशज ज्ञान के नाम से भी जाना जाता है।
इसमें भी बुद्धि, ज्ञान एवं इन समुदायों की शिक्षाओं को शामिल किया जाता है (विकीपीडिया)। लुईस ग्रेनियर के अनुसार स्वदेशी/ स्थानीय ज्ञान एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले पुरुषों एवं महिलाओं द्वारा विशिष्ट परिस्थितियों में विकसित किया गया अद्वितीय, पारम्परिक या स्थानीय ज्ञान है।
स्थानीय ज्ञान, शहरी एवं ग्रामीण लोगों की मानवीय बौद्धिक सम्पदा है जिसका वे अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष करने में प्रयोग करते हैं।
स्थानीय ज्ञान, क्रमिक अंतःक्रिया से उत्पन्न ज्ञान है जो किसी स्थान विशेष के लोगों द्वारा अपने प्राकृतिक, सामाजिक व आर्थिक वातावरण के अवलोकन के फलस्वरूप विकसित किया जाता है।
स्थानीय / स्वदेशी ज्ञान दैनिक गतिविधियों के बारे में स्थानीय निर्णय लेने से सम्बन्धित होता है जैसे—शिकार एवं सभा, मत्स्य पालन, कृषि, पशुपालन, जल संरक्षण एवं स्वास्थ्य आदि से सम्बन्धित निर्णय। औपचारिक वैज्ञानिक ज्ञान के विपरीत स्थानीय ज्ञान आमतौर पर मौखिक ज्ञान के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को स्थानान्तरित किया जाता है। परन्तु कभी-कभी दस्तावेज या अन्य माध्यमों का भी सहारा लिया जाता है।
स्थानीय ज्ञान की विशेषताएँ — स्थानीय ज्ञान की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—
(1) स्थान विशेष के अवलोकन से प्राप्त ज्ञान स्थानीय ज्ञान होता है।
(2) स्थानीय ज्ञान का विकास अस्तित्व के संघर्ष के कारण हुआ।
(3) स्थानीय ज्ञान, एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होने के कारण, बिना उपयुक्त व व्यवस्थित दस्तावेज के विद्यमान होता है जो संस्कृति के माध्यम से अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं।
(4) स्थानीय ज्ञान ही सार्वभौमिक ज्ञान का आधार बनते हैं क्योंकि सार्वभौमिक ज्ञान इन्हीं स्थानीय ज्ञान से मिलकर बनता है।
(5) स्थानीय ज्ञान कई विशिष्ट क्षेत्रों के लिए अधिक लाभप्रद हैं। जैसे—कृषि, पशुपालन, पशु चिकित्सा, वन्य व प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन, आयुर्वेदिक चिकित्सा, सामुदायिक खेल, सामाजिक संरचना आदि।
(6) स्थानीय ज्ञान राष्ट्रीय विकास की दिशा व दशा का निर्धारण करने में सहायक होते हैं। इन्हीं क्षेत्रीय या स्थानीय ज्ञान की सहायता से कोई भी राष्ट्र अपना विकास करता है। स्थानीय ज्ञान जैसा होगा, देश के विकास की दिशा व दशा वैसी ही निर्धारित होती है|
(4) वैश्विक ज्ञान ऐसा ज्ञान जी अपने स्थानीय क्षेत्र को छोड़ पश्चात् किसी व्यक्ति विशेष की प्राप्त होता है उसे वैश्विक ज्ञान कहते है। ऐसा ज्ञान राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सूचनाओं पर आधारित होता है इसीलिए यह वैश्विक ज्ञान कहलाता है। इस प्रकार के ज्ञान का प्रयोग व्यक्ति सभी स्थानों पर एवं किसी भी परिप्रेक्ष्य में कर सकता है क्योंकि ज्ञान की विश्वसनीयता अधिक होती है। वैश्विक ज्ञान के अन्तर्गत विश्व स्तर की समस्याओं, पुरी, पारिस्थितिकी, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं प्रौद्योगिक से लोगों में किसी भी तथ्य को देखने एवं समझने का एक अलग दृष्टिकोण विकसित होता है।
वैश्विक ज्ञान की विशेषताएँ -वैश्विक ज्ञान की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—
(1) स्थानीय सीमा से बाहर किसी क्षेत्र विशेष के अवलोकन से प्राप्त ज्ञान वैश्विक ज्ञान होता है।
(2) वैश्विक ज्ञान के द्वारा व्यक्ति के सीमित ज्ञान में विकास होता है क्योंकि इसमें व्यक्ति को नए तथ्यों एवं सूचनाओं की जानकारी प्राप्त होती है।
(3) कोई भी राष्ट्र विश्व स्तर पर अपना विकास वैश्विक ज्ञान के आधार पर कर सकता है।
(4) वैश्विक ज्ञान का हस्तान्तरण होने से दिन प्रतिदिन इसके क्षेत्र में विस्तार होता रहता है।
(5) वैश्विक ज्ञान के प्रयोग द्वारा ही हम विभिन्न देशों से वैश्विक स्तर पर सम्बन्ध स्थापित कर सकते हैं।
(6) व्यापार, वाणिज्य, आर्थिक आदि कुछ विशेष क्षेत्रों के ज्ञान के लिए वैश्विक ज्ञान अत्यन्त लाभकारी हैं।
(7) स्थानीय ज्ञान के परिवर्तित होने पर वैश्विक ज्ञान के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि लोगों के ज्ञान में और विस्तार होता है।
(8) सामाजिक संरचना, परिस्थिति संस्कृति आदि में भिन्नता होने पर भी वैश्विक ज्ञान सभी को समान रूप से प्राप्त होता है। जैसे—किसी भी नई तकनीकी का विकास होता है तो उसके बारे में सभी को समान रूप से जानकारी प्राप्त जाती है।
(5) वैज्ञानिक ज्ञान–वैज्ञानिक ज्ञान एक ऐसा ज्ञान है जो वैज्ञानिक विधियों पर आधारित होता है तथा जिसका समर्थन विभिन्न वैधताओं (मान्यताओं) के द्वारा किया जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि ऐसा ज्ञान जिसका अध्ययन एक सुव्यवस्थित तरीके तथा मान्य सिद्धान्तों के माध्यम से किया जा सकता है, वैज्ञानिक ज्ञान कहलाता है, जैसेगणित, विज्ञान आदि विषयों का अध्ययन।
वैज्ञानिक ज्ञान के चार चरण या कारक माने गए हैं जो निम्नलिखित
(1) घटना/ विषय वस्तु का अवलोकन।
(2) परिकल्पना को तैयार करना।
(3) भविष्य के परिणाम या अन्य घटनाओं की भविष्यवाणी।
(4) भविष्यवाणी या परिणाम की वैधता का परीक्षण।
(6) धार्मिक ज्ञान-धार्मिक ज्ञान ईश्वर की प्रकृति एवं मनुष्य की प्रकृति का ज्ञान है लेकिन ईसाई धर्म ने इसे एक अलग रूप में वर्णित किया है और बताया है कि ये ईश्वर की प्रकृति तथा मनुष्य के जीवन एवं मृत्यु की प्रकृति का ज्ञान है। ईशु के अनुसार प्रकृति तथा मनुष्य का स्वयं के बारे में ज्ञान धार्मिक ज्ञान है। इसका अभिप्राय यह है कि हमारा पड़ोसियों के साथ कैसा सम्बन्ध है, पर्यावरण के साथ कैसा सम्बन्ध है तथा मनुष्य का ईश्वर के साथ सम्बन्ध तथा ईश्वर का मनुष्य के साथ सम्बन्ध को एहसास करना जिसे हम समझ नहीं पाते हैं। ईश्वर या ईश्वर की प्रकृति का वर्णन हम अपने आस-पड़ोस के साथ काल्पनिक सम्बन्ध तथा अपने स्वयं के बारे में ज्ञान के रूप में भी व्यक्त करते हैं।
धार्मिक ज्ञान केवल जानना नहीं है, यह जानना एवं करना भी है। यह समर्पण की भावना एवं अनुभव तथा सामाजिक अनुभव की एकता है। इसके साथ ही यह दिव्य प्रेम का सर्वोच्च अनुभव तथा लोगों के मध्य उच्चतम अभिव्यक्त के सम्बन्ध का ज्ञान है।
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