संवाद के द्वारा ज्ञान के निर्माण में शिक्षक की स्पष्ट कीजिये ।

संवाद के द्वारा ज्ञान के निर्माण में शिक्षक की स्पष्ट कीजिये ।

उत्तर – संवाद के द्वारा ज्ञान निर्माण में शिक्षक की भूमिकाशिक्षक छात्रों की समस्याओं का निदान करता है तथा उनके विभिन्न क्रियाओं पर दृष्टि रखता है। वह छात्र के दिशा निर्देशन एवं उसकी समझ के विकास के लिए विभिन्न माध्यमों से शिक्षण करता है। वह इन्हीं माध्यमों के द्वारा छात्रों में ज्ञान का निर्माण करता है। इन्हीं माध्यमों में संवाद भी एक माध्यम है। जिसके द्वारा शिक्षक छात्रों में ज्ञान का निर्माण करता है। शिक्षक संवाद के निम्नलिखित प्रकार से छात्रों में ज्ञान का निर्माण करता है—
( 1 ) प्रारम्भिक संवाद प्रारम्भिक संवाद के अन्तर्गत शिक्षक छात्रों से सामान्य ज्ञान को साझा करता है। इसमें छात्र को विभिन्न विषय सम्बन्धी मूल ज्ञान को मौखिक रूप में प्रदान करता है। शिक्षक नवीन ज्ञान देने से पूर्व उसकी भूमिका का निर्माण करता है। इस भूमिका का निर्माण वह संवाद के माध्यम से करता है तथा छात्रों में रुचि उत्पन्न करता है।
( 2 ) पाठ वितरण संवाद —इस संवाद के द्वारा शिक्षक पाठ के ज्ञान का वितरण एवं प्रसारण छात्रों में करता है। शिक्षक सम्पूर्ण पाठ को व्याख्या के माध्यम से प्रस्तुत करके तैयार कराता है। अध्यायों को पुस्तकों से पढ़कर व्याख्या विधि द्वारा प्रस्तुत करता है। इसमें प्रबोधक के माध्यम से शिक्षक पाठ के विवरण में अन्तर करता है।
( 3 ) चिन्तनशील संवाद — इसमें छात्रों को एकीकृत एवं सामान्यीकरण करने के लिए स्वीकृत तर्क दिए जाते हैं। इसके माध्यम से उनमें चिन्तनशील बनाने से सम्बन्धित ज्ञान का निर्माण संवाद के माध्यम से करता है। छात्र इसके द्वारा अधिगम कर उस ज्ञान का प्रयोग अथवा पुनरावृत्ति करते हैं तथा अपने अनुभवों के द्वारा पाठ को तैयार करते हैं। संवाद प्रक्रिया परिणामों को प्राप्त करने के लिए होती है।
( 4 ) प्रत्याशित संवाद—संवाद की इस स्थिति में शिक्षक भावी अथवा प्रत्याशित ज्ञान को देने के लिए तैयार रहता है ताकि छात्र उसका अधिगम करने के लिए प्रतिबद्ध रहे। शिक्षक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध रहते हैं, शिक्षक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उनकी समस्याओं का समाधान करता है तथा आगे के ज्ञान को मौखिक अथवा संवाद के रूप में प्रदान करता है इसमें शिक्षक छात्रों को विभिन्न कार्यों में सहभागी बनने के लिए प्रोत्साहित करता हैं इसमें संवादों के विस्तार में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होता है।
(5) आलोचनात्मक संवाद— आलोचनात्मक संवाद छात्रों की कमियों अथवा त्रुटियों में सुधार तथा प्रेरित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके द्वारा किसी विषयवस्तु का आलोचनात्मक मूल्यांकन कर छात्रों को उसके विषय में ज्ञान कराया जाता है। शिक्षक नवीन विचारों को विस्तार से बताता है, तर्क-वितर्क करने में वृद्धि करता है एवं एक दूसरे 5 दृष्टिकोण को चुनौती के रूप में स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
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