परिवार में यौन उत्पीड़न की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।

परिवार में यौन उत्पीड़न की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – परिवार में यौन उत्पीड़न — यौन उत्पीड़न जो परिवार में होता है उसका मुख्य कारण भावात्मक सहयोग है। भावात्मक सहयोग के द्वारा घर में रहने वाले सदस्य एक-दूसरे के दिल में जगह बना लेते हैं तथा मौका पड़ते ही यौन उत्पीड़न करते हैं।
परिवार में यौन उत्पीड़न एवं शोषण के कारण–परिवार में यौन उत्पीड़न के कारण निम्नलिखित हैं—
( 1 ) पुरुष प्रधान परिवार – भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज है। अतः परिवार का मुखिया पुरुष ही होता है। यदि परिवार के मुखिया की सोच आदर्शवादी एवं सकारात्मक नहीं है तो वह अपने परिवारजनों पर अपना अनावश्यक आधिपत्य स्थापित करने की कोशिश करता है । अपने आश्रितों को यौन उत्पीड़न का शिकार बनाता है क्योंकि उसके पास परिवार की पूरी शक्ति होती है जिस कारणवश उसका कोई विरोध नहीं करता है। वह
( 2 ) अशिक्षा की स्थिति–अशिक्षा भी पारिवारिक शोषण का एक बहुत बड़ा कारक होता है। ऐसा परिवार जिसके सदस्य अशिक्षित हों या थोड़ा-बहुत ही पढ़े-लिखे हों ऐसे परिवारों में यौन शोषण की सम्भावनाएँ ज्यादा होती है क्योंकि उनमें जागरूकता का अभाव होता है। ऐसे परिवार के सदस्य रूढ़िवादी होते हैं उनके अनुसार घर की स्त्रियाँ पुरुषों की सेवा के लिए ही होती हैं। इसी कारण वे उनका शोषण करते हैं ।
( 3 ) नैतिक मूल्यों का अभाव – परिवार के लोगों में यदि नैतिक मूल्यों का अभाव होता है तो ऐसे परिवार के आचरण की स्थिति अच्छी नहीं होती है। नैतिक मूल्यों के अभाव के कारण परिवार के सदस्य स्वार्थी हो जाते हैं तथा यौन शोषण जैसी गतिविधियों में संलग्न हो जाते हैं।
(4) आदर्शवादिता का अभाव – प्रत्येक व्यक्ति, देश, समाज, संस्था के अपने-अपने आदर्श होते हैं उन्हीं आदर्शों के आधार पर वे कार्य करते हैं। उन्हीं आदर्शों के बल पर वे सफलता को प्राप्त करते हैं लेकिन परिवार, समाज आदि में आदर्शों की कमी होती है तो वहाँ आचरण की स्थिति अच्छी नहीं होती है। ऐसे परिवार के सदस्यों के मध्य स्वार्थ की भावना विकसित हो जाती है। पुरुष प्रधान परिवार होने के कारण सभी शक्तियाँ परिवार के पुरुषों के पास होती है। यदि पुरुष आदर्शवादी नहीं है तो वह महिलाओं का विविध प्रकार से शोषण करने का प्रयत्न करता है जिसमें यौन शोषण प्रमुख है।
( 5 ) संकीर्ण सोच–संकीर्ण विचारधारा भी परिवार में यौन शोषण का आधार होती है। ऐसी मानसिकता वाले लोग केवल अपना स्वार्थ एवं सुख देखते हैं। अपनी अनैतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए वह परिवार के सदस्यों को भी वैसा आचरण करने के लिए विवश करता है। इसके लिए विविध प्रकार के अमर्यादित उपायों एवं धमकियों को अपनाता है। उसके इस आचरण से परिवार में शोषण एवं उत्पीड़न का वातावरण उत्पन्न होता है जो कि परिवार के विकास को अवरुद्ध करता है।
( 6 ) नारी जागरुकता का अभाव – अभी भी कई ऐसे स्थान पाए जाते हैं जहाँ नारी जागरुकता का अभाव पाया जाता है। यहाँ पर बचपन से ही उन्हें यह सिखाया जाता है कि घर का मुखिया अर्थात् पुरुष जो कहेंगे वही होगा इसलिए बड़े होकर वे बिना विरोध के पुरुषों की अधीनता स्वीकार्य कर लेती है। ऐसी स्थितियों में पुरुषों का पक्ष प्रबल हो जाता है और वे अपनी मनमानी करते हैं। वे घर की स्त्रियाँ एवं अन्य सदस्यों का शारीरिक एवं मानसिक रूप से शोषण करने का प्रयास करते हैं ।
(7) समाज का भय — अनेक अवसरों पर यह देखा जाता है कि स्त्रियों के साथ बलात्कार जैसी घटनाएँ होने पर उन्हें चुप रहने के लिए कहा जाता है क्योंकि इससे समाज में उनकी बदनामी होगी। इस भय से अनेक स्त्रियाँ अपने विरुद्ध होने वाले शोषणपूर्ण व्यवहार को सहन करती रहती है क्योंकि उन्हें समाज का भय दिखाकर शान्त करा दिया जाता है।
 ( 8 ) संयम का अभाव – परिवार के सदस्यों में जब संयम का अभाव होता है तब भी उसमें घरेलू हिंसा, यौन शोषण आदि घटनाएँ उत्पन्न हो जाती है। परिवार के सदस्यों में जब अपनी भावनाओं एवं विचारों पर नियन्त्रण नहीं होता है तो घर के सदस्यों में आपस में लड़ाई झगड़े, मार-पीट, यौन शोषण जैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है ।
( 9 ) धार्मिक मूल्यों का अभाव – समाज में प्रत्येक सम्बन्ध के लिए धर्म का निर्धारण होता है। जैसे— स्त्री का पति के लिए तथा पति का पत्नी के लिए सामाजिक सम्बन्ध के साथ-साथ एक धर्म सम्बन्ध भी होता है। इसी प्रकार पुत्र – पुत्री, भाई-बहन तथा सभी सम्बन्धों में एक धार्मिक भावना का समावेश होता है। यदि परिवार में किसी व्यक्ति को धर्म ज्ञान नहीं होगा तो उस परिवार में एक-दूसरे के शोषण का प्रयत्न किया जाएगा। इस स्थिति में शारीरिक एवं मानसिक शोषण की सम्भावनाएँ प्रबंल हो जाती है ।
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