लैंगिक पूर्वाग्रह एवं लैंगिक रूढ़िवादिता में क्या अन्तर है ?

लैंगिक पूर्वाग्रह एवं लैंगिक रूढ़िवादिता में क्या अन्तर है ?

 उत्तर—  लैंगिक पूर्वाग्रह एवं लैंगिक रूढ़िवादिता में लैंगिक पूर्वाग्रह से हमारा अभिप्राय बालक एवं बालिका में व्याप्त लैंगिक असमानता से है। बालक एवं बालिकाओं में उनके लिंग के आधार पर भेद किया जाता है जिसके कारण बालिकाओं को समाज में शिक्षा में एवं पालन-पोषण में बालकों से कम (निम्न स्थिति में) रखा जाता है जिससे वे पिछड़ जाती हैं। यही लैंगिक पूर्वाग्रह है क्योंकि बालिकाओं एवं बालकों में यह विभेद उनके लिंग को लेकर किया जाता है। प्राचीन काल से ही बालकों को श्रेष्ठ, कुल का तारनहार, कुल का नाम आगे बढ़ाने वाला माना जाता है जिसके कारण बालिकाएँ उपेक्षा का पात्र बनती हैं। इस प्रकार प्राचीन मान्यताओं, सामाजिक कुप्रथाओं आदि के कारण लिंग के आधार पर किया जाने वाला भेदभाव लिंगीय विभेद ‘कहलाता है।

प्रो. एस. के. दुबे के अनुसार, “लैंगिक पूर्वाग्रह का आशय उन कल्पनाओं, विचारों, झुकाव एवं प्रवृत्तियों से होता है जो समाज के द्वारा रूढ़िबद्धता एवं प्राचीन परम्पराओं के रूप में स्वीकृत होती हैं एवं उनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है । यह पुरुष प्रधानता की ओर संकेत करती हैं। “
रूढ़िबद्धता से अभिप्राय समाज में व्याप्त विभिन्न असामाजिक क्रियाएँ एवं कुरीतियों से है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में अपने मूल रूप में स्थानान्तरित होती रहती हैं। इसकी सामाजिक उपयोगिता न होते हुए भी वर्ग एवं समुदाय इसको मान्यताएँ प्रदान करता है। रूढ़िबद्धता समाज, समुदाय एवं देश के विकास में बाधक है। रूढ़िबद्धता के अन्तर्गत होने वाली क्रियाओं को व्यक्ति समाज, धर्म, ईश्वर एवं अलौकिक शक्ति से जोड़कर सम्पादित करता है जबकि आज की आधुनिकता, विकासशील एवं मशीर्नीकरण के युग में इसकी न तो उपयोगिता है और न ही सार्थकता ।
रूढ़िबद्धता एक सामाजिक मानदण्ड है अर्थात् रूढ़िबद्धता के पीछे समाज की स्वीकृति होती है। रूढ़िबद्धताएँ, जनरीतियों की ही तरह अनौपचारिक सामाजिक मानदण्ड होती हैं। जनरीतियों से ही रूढ़ियों का निर्माण होता है। जब कोई जनरीति बहुत अधिक व्यवहार में आने पर समूह के लिए अति आवश्यक समझ ली जाती है तब वह रूढ़ियों का स्वरूप धारण कर लेती है ।
ग्रीन के अनुसार, “कार्य करने के वे सामान्य तरीके जो जनरीतियों की अपेक्षा अधिक निश्चित व उचित समझे जाते हैं तथा जिनका उल्लंघन करने पर गम्भीर व निर्धारित दण्ड दिया जाता है, रूढ़ियाँ कहलाती हैं।”
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