कक्षा की प्रक्रिया तथा ‘अध्यापक-विद्यार्थी’ पारस्परिक क्रिया में होने वाली लिंग असमानता को उजागर करें। लिंग समानता को बढ़ावा देने के लिए शिक्षक द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियाँ सुझाइए।

कक्षा की प्रक्रिया तथा ‘अध्यापक-विद्यार्थी’ पारस्परिक क्रिया में होने वाली लिंग असमानता को उजागर करें। लिंग समानता को बढ़ावा देने के लिए शिक्षक द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियाँ सुझाइए।

उत्तर — अध्यापक विद्यार्थी अन्तः क्रिया — जब हम कक्षागत प्रक्रिया की बात करते हैं तब उसके अन्तर्गत छात्र और शिक्षक के बीच की आपसी अन्तःक्रिया को शामिल करते हैं। छात्र शिक्षक अन्तः क्रिया उस समय की अवस्था कही जाती है जब किसी प्रत्यय को समझाने के लिए शिक्षक अपने सम्मुख बैठे छात्रों से बात करते हैं। इसे कक्षागत प्रक्रिया का एक अंग माना जाता है कक्षा में प्रश्न पूछने पर लड़केलड़कियों में विभिन्न प्रतिक्रियाएँ आती है। जहाँ एक तरफ उत्तर देने के लिए लड़के शोर मचाने लगते हैं और हाथ खड़े करके सबसे पहले उत्तर देने की कोशिश करते हैं, वहीं लड़कियाँ शान्त भाव से उत्तर माँगे जाने की प्रतीक्षा करती हैं। विद्यार्थियों की तरफ से पूछे जाने वाले प्रश्नों के लिए लड़कों की संख्या ज्यादा होती है। इसकी वजह प्रभुत्व ही है। समाज में लैंगिक रूढ़िवादिता (Gender Sterotypes) के कारण पहल करने का परम्परागत कार्य लड़कों द्वारा ही सम्पन्न किया जाता है। अनुशासन के सम्बन्ध में भी लड़कों को शारीरिक दण्ड देने की प्रवृत्ति देखी जाती रही है पर अब कानून की बाध्यता के कारण शारीरिक दण्ड तो नहीं दे सकते पर सख्त एवं कठोर शब्दों के माध्यम से उन्हें अनुशासित करते हैं जबकि लड़कियों को उनके व्यवहार सम्बन्धी उलाहना या आदर्श स्थिति में रहने के लिए कहते हैं क्योंकि लड़कियों को रोना बहुत जल्दी आ जाता है इसलिए भी उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक व्यवहार या प्रतिक्रिया नरम प्रकृति की ही होती है।
( 1 ) पाठ्य सामग्री का चुनाव – पितृसत्तात्मक लैंगिक रूढ़िवादी भूमिका के आधार पर शिक्षक पाठ्यचर्या सामग्री या विषय-वस्तु का चुनाव करते हैं। जैसे–
(i) रमेश के पिताजी बाजार गए और सब्जियाँ खरीद कर लाए ।
(ii) रमेश की माताजी ने मेले में जाने के लिए रमेश के पिताजी से रुपये माँगें ।
इन उदाहरणों में परम्परागत लैंगिक भूमिका और कार्य की पुनरावृत्ति करके लैंगिक असमानता को बढ़ाया जा रहा है। उपर्युक्त उदाहरणों के अतिरिक्त कई ऐसे विषय-वस्तु हैं जो हमारे पाठ्यचर्या में शामिल कर लिए गए हैं और शिक्षक उनको वैसे ही विद्यार्थियों को पढ़ा देते हैं । अपने उदाहरणों में भी शिक्षक ‘पुरुष प्रधान’ उदाहरणों या घटनाओं का विवरण देते हैं। शिक्षक को यह सावधानी बरतनी चाहिए कि महिला एवं पुरुष के परम्परागत भूमिकाओं को छात्रों के पास जाने से रोका जाए। बल्कि इसी बात को उल्टा करके उनकी परम्परागत भूमिका से अलग भूमिका का बोध कराया जाए।
(2) व्याख्या या पाठ समझाते समय लैंगिक भेदभाव – शिक्षक अक्सर विषय-वस्तु को समझाते समय जो उदाहरण देते हैं, उनमें लैंगिक भेदभाव देखने को मिलता है। यदि शिक्षक किचन या घरेलू कार्यों से सम्बन्धित कुछ समझाता है तो कहता है, “आपने अपनी मम्मी को सब्जी काटते हुए देखा होगा। यदि चाकू से सब्जी काटते समय हाथ में चोट लग जाए तो आप क्या करोगे ?” इस वाक्य में मम्मी को परम्परागत कार्य करते हुए चित्रण किया गया है।
( 3 ) निर्देशात्मक भाषा के प्रयोग में सावधानी–शिक्षण करते समय शिक्षक अक्सर अपने स्वयं जेंडर की भाषा का प्रयोग करता है। जैसे— “तुम घर पर क्या करती हो” की बजाय “तुम क्या करते हो” वाक्य का ज्यादा प्रयोग करता है क्योंकि यदि शिक्षक पुरुष है तो वह अपने जेंडर का प्रयोग तो करेगा ही। यदि शिक्षक को यह कहना है कि “I am eating” तो इसको हिन्दी में शिक्षक यही बोलता है—“मैं खा रहा हूँ।” जबकि कक्षा में लड़कियाँ भी बैठी होती है। उन्हें इन वाक्यों से अपने ज़ेंडर का बोध नहीं होता इसलिए शिक्षक द्वारा निर्देशात्मक भाषा के लैंगिक होने का प्रमुख कारक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और भाषा का स्वरूप होता है। जैसे—अंग्रेजी भाषा में जाती हूँ, जाता हूँ, शब्दों का प्रयोग नहीं होता इसलिए उसमें इस प्रकार की समस्या नहीं आती पर हिन्दी भाषा में इस प्रकार की समस्या आ जाती है।
(4) पाठ्यचर्या विभाजन एवं पाठ्येत्तर क्रियाविधि में भेदभाव — विद्यालयों में जब पाठ्यचर्या का विभाजन और आवंटन किया जाता है तो भी लैंगिक रूढ़िवादिता का प्रभाव देखा जा सकता है। जैसे— शारीरिक शिक्षा एवं संगीत विषय के विभाजन के समय शारीरिक शिक्षा विषय प्राय: लड़कियों को न तो दिया जाता है और न ही लड़कियाँ इसमें रुचि रखती है। शारीरिक शिक्षा में शारीरिक शक्ति को आधार बनाया जाता है और लड़कियों को एहसास दिलाया जाता है कि यह विषय उनके लिए उपयुक्त नहीं है जबकि संगीत पाठ्यचर्या को उनके लिए उपयुक्त बताकर आवंटित कर दिया जाता है। लड़कियों के घर वाले भी संगीत को उनके लिए उपयुक्त मानते हैं । लड़कियाँ लैंगिक रूढ़िवादिता (Gender Stereotypes ) की शिकार होकर संगीत जैसे विषयों को ले लेती हैं ।
पाठ्य-सहगामी क्रियाओं में भाग लेने में लैंगिक रूढ़िवादिता देखने `को मिलती है। जैसे—नृत्य व गायन के लिए अधिकतर लड़कियों को ही प्राथमिकता दी जाती है जबकि नाटकों एवं ड्रम बजाने, पर्दा खींचने आदि में लड़कों को जगह मिलती है। इतना ही नहीं खेल के मैदान में, खेलकूद के पीरियड में, खेल के सामानों पर लड़कों का आधिपत्य हो जाता है। लड़कियों को न तो खेल का मैदान उपयुक्त मात्रा में मिलाता है और न ही खेल का सामान ।’
लिंग समानता को बढ़ावा देने के लिए शिक्षक द्वारा अपनाये जाने वाले उपाय ( नीतियाँ ) – कक्षागत अन्तः क्रिया को लैंगिक समानता आधारित बनाने के निम्नलिखित उपाय हैं—
(1) शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं के लिए लैंगिक समानता पर आधारित मुद्दों पर बातचीत एवं विचार-विमर्श करने के लिए वर्कशाप इत्यादि का आयोजन किया जाना चाहिए जिसमें इन मुद्दों पर आधारित ज्ञान देने का प्रयास क जाना चाहिए।
(2) विद्यालय को लड़कियों के लिए ज्यादा उपयुक्त स्थल बनाना चाहिए। उनको प्रोत्साहन देने वाली नीतियों का क्रियान्वयन किया जाना चाहिए।
(3) शिक्षण विधियों एवं शिक्षण रणनीतियों की लैंगिक समानता के आधार पर समीक्षा की जानी चाहिए और उनमें आवश्यक परिवर्तन करके कक्षा में इस प्रकार प्रयोग किया जाना चाहिए जिससे लड़के-लड़कियों दोनों को बराबर का अधिगम अक्सर प्राप्त हो।
(4) विद्यालय को समुदाय से सम्बन्धित करना, अभिभावकशिक्षण मीटिंग के दौरान भी इस मुद्दे को रेखांकित किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त शिक्षकों को कुछ NGO से सम्बन्धित करके भी उन्हें वास्तविक परिस्थितियों में अवलोकन करने का अवसर देना चाहिए जिससे उनमें इस मुद्दे के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके ।
(5) शिक्षकों को अपने आप को सिर्फ ज्ञान देने का विशेषज्ञ न मानकर एक प्रणेता और काउन्सलर भी मानना चाहिए जो छात्रों की भावना को समझे ।
(6) कक्षाकक्ष के छात्र-छात्राओं के मध्य आपसी सम्बन्ध अच्छे हो शिक्षकों को ऐसा प्रयास करना चाहिए ।
(7) शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं को ‘भाषा’ एवं शब्द की उपयुक्तता पर आधारित कार्यशाला एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए जिससे कि नीतिगत आधार पर कुछेक शब्दों एवं वाक्यों के प्रयोग से सम्बन्धित नियम बनाया जा सके।
(8) शिक्षण-प्रशिक्षण कार्यक्रम के पाठ्यचर्या में लैंगिक विभेद को समाप्त करने व लैंगिक समानता को प्रोत्साहित करने वाली रणनीतियों को शामिल करके उपयुक्त प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और आन्तरिक मूल्यांकन में उचित अनुपात में इसको भारांकित किया जाना चाहिए जिससे प्रशिक्षणार्थी इस पहलू पर आवश्यक रूप से ध्यान दे सकें ।
(9) शिक्षक सहायक सामग्रियों, जैसे–चार्ट, मॉडल आदि बनाते समय शिक्षक को चाहिए कि वह प्रत्येक क्षेत्र में पुरुष व महिला को साथ-साथ दिखाए । जैसे—खेती का काम करते समय, अस्पताल में इंजीनियर के रूप में आदि ।
(10) गणित, विज्ञान, भाषा, सामाजिक विज्ञान आदि विषयों में उदाहरण देते समय महिला-पुरुष को समान भूमिका में बताना चाहिए।
(11) लड़कियों की अधिक भागीदारी के लिए, भाषा, सामाजिक विज्ञान और विज्ञान विषयों में जहाँ भी सम्भव हो, भूमिका निर्वाह शिक्षण विधि का प्रयोग किया जाना चाहिए।
(12) छात्र-छात्राओं के बीच कार्यों का बँटवारा समान रूप से होना चाहिए।
(13) शिक्षकों को सुस्त अधिगमकर्ता (Slow Learner) की पहचान करके उपचारात्मक शिक्षण कराया जाना चाहिए जिससे कि वे लड़कियाँ जिनका प्रदर्शन कमजोर हो, सुधारा जा सकता है।
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