स्वतंत्रता से अब तक लिंग के सन्दर्भ में पाठ्यक्रम में किये गये कार्यों का विश्लेषण कीजिए।

स्वतंत्रता से अब तक लिंग के सन्दर्भ में पाठ्यक्रम में किये गये कार्यों का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर – स्वतंत्रता से अब तक लिंग के सन्दर्भ में पाठ्यक्रम में किये गये कार्य – भारत सरकार ने शिक्षा के लिए जो विभिन्न आयोग एवं समितियों का गठन समय-समय पर किया; उनमें महिला सदस्यों को भी सम्मिलित किया गया जिससे बालिका शिक्षा के लिए आवश्यक सुझाव प्राप्त हो सके। इसके अतिरिक्त शिक्षा विभाग में भी महिला सदस्यों की संख्या को बढ़ावा दिया गया। एन. सी. ई. आर. टी., .एन. सी. टी. ई. जैसी संस्थाओं में भी महिलाओं को सम्मिलित किया गया । ये संस्थाएँ सरकार को बालिका शिक्षा के सन्दर्भ में नवीन एवं उपयुक्त सुझाव देती हैं। इन संस्थाओं के सुझावों के अनुसार ही पाठ्यचर्या में विभिन्न प्रेरणादायक, विदुषी, स्वतंत्रता सेनानी, वैज्ञानिक, कवयित्री इत्यादि महिलाओं से सम्बन्धित अध्यायों को सम्मिलित किया जाता है ।
इसके अतिरिक्त महिला आयोग, महिला एवं बाल कल्याण विभाग, समाज कल्याण विभाग आदि भी समय-समय पर बालिकाओं एवं स्त्रियों के कल्याण एवं विकास के लिए कार्यक्रम प्रारम्भ किए हैं। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित हैं-
(1) जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम – इस योजना का प्रमुख उद्देश्य बालिकाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति कामकाजी बच्चों, शहरी वंचित बच्चों, विकलांगों आदि की शिक्षा के लिए विशेष सहयोग उपलब्ध कराना है। बालिकाओं एवं अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए विशेष रणनीतियाँ हैं, तथापि इन समूहों को शामिल करने के लिए समेकित रूप में वास्तविक लक्ष्य भी निर्धारित किए गए हैं। एनआईईपीए द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार डीपीईपी जिलों के स्कूलों में 60 प्रतिशत से अधिक बच्चे अनुसूचित जाति/जनजाति के हैं।
( 2 ) शिक्षाकर्मी कार्यक्रम – एसकेपी का लक्ष्य बालिका शिक्षा पर प्रमुख रूप से ध्यान देने के अतिरिक्त राजस्थान के दूर-दराज के अर्धशुष्क एवं सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा के सार्वत्रीकरण एवं गुणवत्ता में सुधार लाना है। यह उल्लेखनीय है कि शिक्षाकर्मी स्कूलों में अधिकतर बच्चे अनुसूचित जाति / जनजाति एवं अन्य पिछड़े वर्गों के हैं।
( 3 ) कस्तूरबा गाँधी बालिका योजना – कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना के अन्तर्गत मुख्य रूप से प्राथमिक स्तर पर अनुसूचित जाति/जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यकों की बालिकाओं के लिए दुर्गम क्षेत्रों में आवासीय सुविधाओं के साथ 750 विद्यालय खोले जा रहे हैं। यह योजना शैक्षिक रूप से पिछड़े (ईबीबी) केवल ऐसे विकास खण्डों में लागू की जा रही है, जहाँ वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार महिला साक्षरता की दर राष्ट्रीय औसत से कम और लैंगिक भेदभाव का स्तर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। ऐसे विकास खण्डों में कम महिला साक्षरता वाले अथवा स्कूल न जाने वाली अधिकतर बालिकाओं वाले जनजातीय क्षेत्रों में विद्यालय खोले जा रहे हैं ।
 (4) जनशिक्षण संस्थान  – जेएसएस अथवा जनता की शिक्षा का संस्थान एक ऐसा बहुआयामी अथवा बहुमुखी वयस्क शिक्षा कार्यक्रम है, जिसका लक्ष्य लाभान्वित होने वाले लोगों के व्यावसायिक हुनर और निपुणता में सुधार लाना है। इस कार्यक्रम का लक्ष्य सामाजिक आर्थिकरूप से पिछड़े तथा शहरी/ग्रामीण क्षेत्रों के शैक्षिक रूप से वंचित वर्गों, विशेषकर नवसाक्षरों, अर्ध-शिक्षितों, अनुसूचित जाति/जनजातियों, महिलाओं तथा बालिकाओं, मलिन बस्ती निवासियों, प्रवासी श्रमिकों इत्यादि का शैक्षिक, व्यावसायिक विकास करना है।
(5) महिला समाख्या – महिला समाख्या शैक्षिक पहुँच एवं उपलब्धि के क्षेत्र में लैंगिक अंतर का निराकरण करती है। इसमें महिलाओं (विशेषतः सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़ी एवं वंचित) को ऐसे सशक्तीकरण के योग्य बनाना शामिल है, ताकि वे अलग-थलग पड़ने और आत्मविश्वास की कमी जैसी समस्याओं से जूझ सकें और दमनकारी सामाजिक रीति-रिवाजों के विरुद्ध खड़े होकर अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष कर सकें ।
(6) प्राथमिक स्तर पर बालिका शिक्षा हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम – सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) को वर्तमान योजना के अधीन एनपीईजीईएल प्राथमिक स्तर पर सहायता प्राप्ति से वंचित/पिछड़ी बालिकाओं हेतु अतिरिक्त संसाधन उपलब्धं कराता है। यह कार्यक्रम शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े उन विकास खण्डों में चलाया जा रहा है, जहाँ ग्रामीण महिला साक्षरता की दर राष्ट्रीय औसत से कम है और लैंगिक भेदभाव राष्ट्रीय औसत से अधिक है। साथ ही यह कार्यक्रम ऐसे जिलों के विकास खण्डों में भी चलाया जाता रहा है, जहाँ कम से कम 5 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जाति/जनजाति की है और जहाँ अनुसूचित जाति/जनजाति महिला साक्षरता की दर 1991 के आधार पर राष्ट्रीय औसत से 10 प्रतिशत कम है।
(7) नवोदय विद्यालय समिति  – राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में देश के प्रत्येक जिले में एक मॉडल (आदर्श) विद्यालय खोलने का प्रावधान किया गया था। तदनुसार एक योजना बनाई गई, जिसके अंतर्गत सहशिक्षा आवासीय विद्यालय (अब जवाहर नवोदय विद्यालय) खोलने का निर्णय लिया गया।
नवोदय विद्यालय माध्यमिक स्तर तक शिक्षा प्रदान करने वाले पूर्ण आवासीय सह-शिक्षा विद्यालय । वर्ष 1985-86 में मात्र दो विद्यालयों के साथ प्रायोगिक रूप से शुरू की गई इस योजना के अन्तर्गत देश के 34 राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों में अब तक (31 मार्च, 2007 तक) इनकी संख्या बढ़कर 565 हो चुकी है और 31 मार्च, 2007 तक इन विद्यालयों मैं एक लाख 93 हजार छात्र पढ़ रहे थे। प्रतिवर्ष 30,000 से अधिक छात्र इन विद्यालयों में प्रवेश लेते हैं। इन विद्यालयों में मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों के ऐसे प्रतिभावान, प्रखर एवं मेधावी छात्रों का चयन (पहचान) कर विकास करने का प्रावधान है, जिन्हें इन विद्यालयों के अभाव में अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के अवसरों से वंचित रहना पड़ता है। इसमें यह सुनिश्चित करने के प्रयास किए जाते हैं कि प्रवेश पाने वाले छात्रों में कम से कम एक तिहाई (33 प्रतिशत) बालिकाएँ हों।
(8) सामुदायिक पॉलीटेक्निक  – सामुदायिक पॉलीटेक्निक की योजना के अन्तर्गत क्षेत्र विशेष में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके ग्रामीण/सामुदायिक विकास गतिविधियाँ चलाई जाती हैं। इसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्र के लोगों/स्थानीय समुदायों को उनके उपयुक्त एवं अनुरूप प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराने के लिए मंच उपलब्ध कराया जाता है। प्रशिक्षण देने में ग्रामीण युवकों, अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्यों, महिलाओं, स्कूल बीच ही में छोड़ चुके व्यक्तियों तथा अन्य वंचित वर्गों को वरीयता दी जाती है और आवश्यकतानुसार रोजगार प्राप्त करने में सहायता दी जाती है। सामुदायिक पॉलीटेक्निकों की योजना कुछ चुनी डिप्लोमा स्तरीय संस्थाओं में 1978-79 से लागू है। इसमें निपुणताउन्मुख अनौपचारिक प्रशिक्षण, तकनीकी हस्तांरण तथा प्रौद्योगिकी समर्थन सेवाओं के माध्यम से विज्ञान और प्रौद्योगिकी का प्रयोग होता है।
(9) साक्षरता दर – राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की वयस्क साक्षरता योजनाएँ देश के लगभग सभी जिलों में लागू की जा रही हैं। अल्प महिला साक्षरता वाले जिलों (45) में जिला साक्षरता समितियों, गैरसरकारी संगठनों, महिला स्वयंसेवी अध्यापकों तथा पंचायतीराज कर्मियों के माध्यम से केन्द्रीकृत प्रयास के रूप में विशेष योजनाएँ शुरू की गई हैं। आजीवन चलने वाले शिक्षा अवसरों के प्रावधान, व्यावसायिक निपुणता प्रदान करने तथा देश के 272 जिलों में चल रहे सतत् शिक्षा कार्यक्रम के माध्यम से नव साक्षरों के लिए आय में वृद्धि पर भी विशेष जोर दिया जा रहा है।
अनुसूचित जाति और जनजाति की साक्षरता में प्राप्त उपलब्धियाँ भी वर्ष 1991 की जनगणना के आंकड़ों, अर्थात् 37.41 प्रतिशत एवं 2941 प्रतिशत की तुलना में उल्लेखनीय हैं। इसके अलावा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में महिला साक्षरता की दर भी पुरुष साक्षरता दर की तुलना में कहीं अधिक है।
(10) इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय – इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना सितम्बर, 1985 में हुई थी। इसका दायित्व देश की शिक्षा व्यवस्था में मुक्त विश्वविद्यालयों को बढ़ावा देना एवं सुदूर शिक्षा प्रणाली प्रारम्भ करने के साथ ही ऐसी प्रणाली में समन्वयन और मानकों का निर्धारण करना है। विश्वविद्यालय का प्रमुख उद्देश्य जनसंख्या के एक बड़े भाग तक उच्च शिक्षा की पहुँच का विस्तार करना, सतत् शिक्षा के कार्यक्रम आयोजित करना और विशेष लक्षित समूहों, जैसे महिलाओं, शारीरिक रूप से विकलांग लोगों तथा पूर्वोत्तर और ओडिशा के पिछड़े जिलों जैसे पिछड़े एवं पर्वतीय क्षेत्रों के निवासियों, मुख्यत: अनुसूचित जाति एवं जनजातीय बहुल क्षेत्रों में उच्च शिक्षा के विशेष कार्यक्रम प्रारम्भ करना है।
इस प्रकार से देखा जाए तो भारत सरकार ने बालिकाओं को शिक्षा एवं स्त्रियों के कल्याण के लिए कई कार्यक्रम स्वतन्त्रता के पश्चात् प्रारम्भ किए। ये कार्यक्रम सम्पूर्ण देश में लागू किए गए। इसके अतिरिक्त राज्य सरकारों ने भी अपने राज्य में बालिकाओं एवं स्त्रियों के कल्याण के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम चलाए। इसके साथ ही विभिन्न स्तरों की पाठ्यचर्या में भी स्त्रियों एवं बालिकाओं से सम्बन्धित अध्यायों को सम्मिलित किया गया है जैसे—सरोजनी नायडू, ऊदा देवी, कल्पना चावला इत्यादि ।
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