राष्ट्रीय महिला आयोग का वर्णन कीजिए।

राष्ट्रीय महिला आयोग का वर्णन कीजिए।

उत्तर — राष्ट्रीय महिला आयोग –  राष्ट्रीय महिला आयोग [National Commission for Women (NCW)) भारतीय संसद द्वारा 1990 में पारित अधिनियम के तहत जनवरी 1992 में गठित एक संवैधानिक निकाय है। यह एक ऐसी इकाई है जो शिकायत या स्वतः संज्ञान के आधार पर महिलाओं के संवैधानिक हितों एवं उनके लिए कानूनी सुरक्षा उपायों को लागू कराती है। आयोग की पहली प्रमुख सुश्री जयंती पटनायक थी। 17 सितम्बर, 2014 को ममता शर्मा का कार्यकाल पूरा होने के पश्चात् ललिता कुमारमंगलम को आयोग का प्रमुख बनाया गया है।

राष्ट्रीय महिला आयोग की गतिविधियाँ – राष्ट्रीय महिला आयोग का उद्देश्य भारत में महिलाओं के अधिकारों का प्रतिनिधित्व करने के लिए और उनके मुद्दों और चिंताओं के लिए एक आवाज प्रदान करना है। आयोग ने अपने अभियान में प्रमुखता के साथ दहेज, राजनीति, धर्म और नौकरियों में महिलाओं के लिए प्रतिनिधित्व तथा श्रम के लिए महिलाओं के शोषण को शामिल किया है, साथ ही महिलाओं के खिलाफ पुलिस दमन और गाली-गलौज को भी गंभीरता से लिया है।
बलात्कार पीड़ित महिलाओं के राहत और पुनर्वास के लिए बनने वाले कानून में राष्ट्रीय महिला आयोग की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। अप्रवासी भारतीय पतियों के जुल्मों और धोखे की शिकार या परित्यक्त महिलाओं को कानूनी सहारा देने के लिए आयोग की भूमिका भी अत्यन्त सराहनीय रही है।
राष्ट्रीय महिला आयोग के कार्य और अधिकार – आयोग के कार्यों में संविधान तथा अन्य कानूनों के अन्तर्गत महिलाओं के लिए उपबंधित सुरक्षा उपायों की जाँच और परीक्षण करना है। साथ ही उनके प्रभावकारी कार्यान्वयन के उपायों पर सरकार को सिफारिश करना और संविधान तथा महिलाओं के प्रभावित करने वाले अन्य कानूनों के विद्यमान प्रावधानों की समीक्षा करना है। इसके अलावा संशोधनों की सिफारिश करना तथा ऐसे कानूनों में किसी प्रकार की कमी, अपर्याप्तता अथवा कमी को दूर करने के लिए उपचारात्मक उपाय करना है। शिकायतों पर विचार करने के साथ-साथ महिलाओं के अधिकारों के वंचन से सम्बन्धित मामलों में अपनी ओर से ध्यान देना तथा उचित प्राधिकारियों के साथ मुद्दे उठाना शामिल है। भेदभाव और महिलाओं के प्रति अत्याचार के कारण उठने वाली विशिष्ट समस्याओं अथवा परिस्थितियों की सिफारिश करने के लिए अवरोधों की पहचान करना, महिलाओं के सामाजिक आर्थिक विकास के लिए योजना बनाने की प्रक्रिया में भागीदारी और सलाह देना तथा उसमें की गई प्रगति का मूल्यांकन करना इनके प्रमुख कार्य हैं।
साथ ही कारागार, रिमांड गृहों जहाँ महिलाओं को अभिरक्षा में रखा जाता है, आदि का निरीक्षण करना और जहाँ कहीं आवश्यक हो उपचारात्मक कारवाई किए जाने की माँग करना इनके अधिकारों में शामिल है। आयोग को संविधान तथा अन्य कानूनों के तहत महिलाओं के रक्षा उपायों से सम्बन्धित मामलों की जाँच करने के लिए सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
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