घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की व्याख्या करो ।

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की व्याख्या करो ।

उत्तर—घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 – यह कानून परिवार के अंदर हिंसा की शिकार और संबंधित मामलों से कष्ट पाने वाली महिलाओं के अधिकारों को प्रभावी सुरक्षा देने के लिए लागू किया गया है। इस कानून का लाभ घरेलू संबंध में रहने वाली महिलाओं के लिए अन्य मौजूदा कानूनों की तुलना में तत्काल राहत देता है। इस कानून के तहत आवेदन का निपटान दंडाधिकारी द्वारा सूचना की तिथि से 60 दिनों के अंदर किया जाता है। इस कानून के प्रावधान घरेलू हिंसा के पीड़ित को एक अल्पावास गृह में रहने की सुविधा, तुरंत चिकित्सा सहायता और घर के बाहर रहने पर दी जाने वाली अन्य समान समर्थन सेवाएँ देते हैं ।

घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को कानूनी सहायता – यह राज्य का कर्त्तव्य है कि वे गरीब, दरिद्र, महिलाओं और बच्चों को कानूनी सहायता प्रदान करें, जिनके पास घरेलू हिंसा संरक्षण कानून 2005 के तहत राहत हेतु कानूनी कार्यवाही के पर्याप्त साधन नहीं हैं।
महिलाएँ और बच्चें दोनों दण्डाधिकारी के पास शिकायत देकर कानूनी सहायता ले सकते हैं और घरेलू हिंसा के मामले में पी. डब्ल्यू. डी. वी. ए. 2005 के तहत राहत पा सकते हैं।
गरीब या बेरोजगार महिलाएँ और उनके बच्चे जिनके पास पर्याप्त साधन नहीं हैं, वकील द्वारा निःशुल्क सलाह और कानूनी सेवाएँ दी जाती हैं।
पूरे देश में मुफ्त कानूनी सहायता देने के लिए राज्य कानूनी सहायता बोर्ड, जिला कानूनी सेवा समिति और तालूका कानूनी सहायता समिति का गठन किया गया है।
राहत — पीड़ित महिला और बच्चों को घरेलू हिंसा से होने वाले खतरों और असुरक्षाओं से सुरक्षित बनाने के लिए दंडाधिकारी द्वारा दिए गये आदेश के परिणामस्वरूप—
(1) घर पर घरेलू हिंसा से बचाव।
(2) घर पर शांति और आराम का माहौल ।
(3) स्त्री धन, गहने आदि वापस पाना ।
(4) चिकित्सा सहायता, सलाह और कानूनी सलाह।
(5) घरेलू हिंसा करने वाले व्यक्तियों द्वारा संविदा या संचार पर नियंत्रण |
(6) शारीरिक और मानसिक चोट या अन्य धन की हानि के लिए मुआवजा ।
(7) विभिन्न अदालती शिकायतों में कानून के तहत कानूनी कार्यवाही का अधिकार ।
भारत के उच्चतम न्यायालय की अपनी कानूनी सेवा समिति और इसका नियन्त्रण करने वाले नियमन हैं, जो घरेलू हिंसा के मामले में अपील करने वाली जरूरतमंद महिलाओं और बच्चों को सलाह और सहायता देते हैं, और इनकी सुनवाई उच्चतम न्यायालय में की जाती है।
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